नजूल विधेयक : बेवजह का बवाल

Last Updated 10 Aug 2024 01:46:32 PM IST

बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधान सभा में नजूल संपत्ति अधिनियम पेश किया गया। इस बिल को विधान सभा में तो पास कर दिया गया परंतु उत्तर प्रदेश विधान परिषद में इसका भारी विरोध हुआ जिसके चलते बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी की मांग पर इसे सदन ने पास करने की जगह प्रवर समिति को भेजने का फैसला लेकर इसे फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया।


नजूल विधेयक : बेवजह का बवाल

उत्तर प्रदेश में कड़े फैसले लेने के लिए मशहूर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लिया गया यह निर्णय सही जरूर प्रतीत होता है, परंतु जिस तरह इस विधेयक का विरोध उन्हीं की पार्टी द्वारा किया जा रहा है, तो ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले समय में शायद कुछ संशोधन के साथ इसे पुन: पेश किया जाए।

उल्लेखनीय है कि जिस भी जमीन का कोई वारिस न हो और वो सरकार के अधीन हो, उसे नजूल जमीन कहते हैं। गौरतलब है कि औपनिवेशिक शासन में अंग्रेजों द्वारा भारत में बड़ी संख्या में जमीनों पर कब्जा किया गया था, लेकिन आजादी के बाद जिस भी नागरिक के पास उसकी जमीन के दस्तावेज थे उन्हें उनकी जमीन वापस मिल गई, परंतु ऐसी कई जमीनें थीं जिनकी मिल्कियत के प्रमाण या जीवित स्वामी उपलब्ध नहीं थे। ऐसी जमीनों को सरकार ने अपने पास रखा, जिसे नजूल जमीन कहा गया। आजादी के बाद इस नजूल जमीन पर यदि कोई रह रहा था तो उससे सरकार ने किराया वसूलना शुरू किया और उस जमीन को लंबे समय के लिए लीज पर देना शुरू कर दिया।

इसके बावजूद ऐसी कई नजूल जमीनें हैं जिन पर लोग अवैध कब्जा कर रह रहे हैं, परंतु जैसे ही उत्तर प्रदेश में नजूल संपत्ति अधिनियम पेश हुआ, तो सरकार ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि जिस-जिस नजूल जमीन पर लोग गैरकानूनी ढंग से रह रहे हैं या जिन नजूल जमीनों की लीज का किराया सरकार को नहीं दिया जा रहा, उस नजूल जमीन को उत्तर प्रदेश की सरकार वापस ले लेगी और इस भूमि को सरकारी विकास कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। योगी जी द्वारा उठाया गया ये कदम सही था, परंतु विपक्ष को इस बात पर शक है कि विकास कार्य के नाम पर कहीं प्रदेश की लाखों करोड़ की हजारों एकड़  जमीन को अपने खास चुनिंदा लोगों के बीच बांट दिया जाएगा।

इतना ही नहीं भाजपा के विधायक भी इस अधिनियम के विरोध में उतर आए हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में ऐसी कई जमीनें हैं जिन पर शागिर्द-पेशा वाले परिवार रह रहे हैं, जो सदियों से वहां रह रहे हैं, परंतु उनके पास कोई भी प्रमाण नहीं है। ऐसे में उनका क्या होगा? कई भाजपा विधायकों का तो यह भी कहना है कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री आवास योजना से बेघर लोगों को घर दिए जा रहे हैं और वहीं दूसरी ओर जो गरीब दशकों से यहां रह रहे हैं उन्हें बेघर किया जा रहा है। तो भला ऐसे बिल का क्या औचित्य? जैसे ही इस अधिनियम पर राजनीति तेज हुई विपक्ष भी खुलकर सामने आया।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष, अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर इसका विरोध जताते हुए लिखा, ‘नजूल लैंड का मामला पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फैसला है क्योंकि बुलडोजर हर घर पर नहीं चल सकता है। जनता को दुख देने में भाजपा अपनी खुशी मानती है। जब से भाजपा आई है, तब से जनता रोजी-रोटी-रोजगार के लिए भटक रही है, और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं। क्या भू-माफियाओं के लिए भाजपा जनता को बेघर कर देगी? अगर भाजपा को लगता है कि उनका ये फैसला सही है तो हम डंके की चोट पर कहते हैं, अगर हिम्मत है तो इसे पूरे देश में लागू करके दिखाएं क्योंकि नजूल लैंड केवल यूपी में ही नहीं पूरे देश में है।’ देखा जाए तो इस अधिनियम के विरुद्ध हो रहे विवाद में भाजपा और विपक्षी नेताओं का एतराज सही है।

यदि सरकार को ऐसा अधिनियम लाना ही था तो उसे नजूल भूमि पर सदियों से बसे हुए परिवारों को पुनर्वास करने की योजना भी बनानी चाहिए थी। इसके हर पहलू पर गहन विचार के बाद ही इसे पेश किया जाना चाहिए था। चूंकि उत्तर प्रदेश और केंद्र दोनों ही जगह भाजपा की सरकार है तो योगी जी को प्रधानमंत्री मोदी से इस पर चर्चा करनी चाहिए थी। इसे भाजपा शासित किसी छोटे राज्य में लागू करना चाहिए था। इस अधिनियम को लाने से पहले सरकार द्वारा यहां पर बसे लोगों को पुनर्वास करने की योजना बना लेनी चाहिए थी।

सरकार को इन नजूल भूमि पर किए जाने वाले विकास कार्यों की सूची भी बना लेनी चाहिए थी। सरकार द्वारा नजूल भूमि पर अवैध रूप से पट्टे जारी करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों को दंड देने का भी प्रावधान बनाना चाहिए था। यदि इन सब पहलुओं पर सरकार द्वारा नहीं सोचा गया तो ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को सलाह देने वाले अधिकारियों ने आनन-फानन में इस अधिनियम को पेश करवाया। देखना यह होगा कि आने वाले समय में प्रवर समिति इस अधिनियम पर क्या सुझाव देती है?

रजनीश कपूर


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