हथकरघा : सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

Last Updated 08 Aug 2024 12:02:34 PM IST

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त, 1905 को टाउन हॉल, कलकत्ता (अब कोलकाता) में आयोजित एक बैठक में हुई थी।


हथकरघा : सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण

इस ऐतिहासिक अवसर को याद करने और हमारी हथकरघा परंपरा का जश्न मनाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 2015 में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में घोषित किया गया। हथकरघा क्षेत्र ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण आजीविका का महत्त्वपूर्ण स्रेत है, जो 35 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। इनमें से 25 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं। इस प्रकार यह क्षेत्र महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का महत्त्वपूर्ण स्रेत है। वस्त्र मंत्रालय ने देश भर में हथकरघा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।

मैं आपका ध्यान 28 जुलाई, 2024 को माननीय प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की ओर आकर्षित करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण प्रदान करने में हथकरघा क्षेत्र के महत्त्व पर प्रकाश डाला था। उन्होंने नये स्टार्टअप उद्यमों की ओर भी ध्यान आकर्षित किया था, जो हथकरघा उत्पादों और सस्टेनबल फैशन को प्रोत्साहित करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रहे हैं। उन्होंने नागरिकों से स्थानीय हथकरघा उत्पादों को लोकप्रिय बनाने का भी आग्रह किया था।

पिछले कुछ वर्षो में भारत का हथकरघा क्षेत्र निरंतरता और स्लो फैशन के प्रतीक के रूप में उभरा है। आज, मैं मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता को प्राथमिकता देने के महत्त्व पर जोर देना चाहता हूं, क्योंकि हम हथकरघा के पुनरु त्थान का जश्न मना रहे हैं, अत: इस अवसर पर मैं भारत के लोगों से हथकरघा क्षेत्र में सतत गति बनाए रखने की अपील करता हूं। हथकरघा बुनाई एक विरासत वाली शिल्पकला है, जो स्लो, निरंतर और नैतिक फैशन के सिद्धांतों को मूर्त रूप देती है।

पिछले दशक में लगातार सरकारी प्रयासों से फास्ट फैशन से लेकर स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं में उल्लेखनीय बदलाव हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी गर्व से भारतीय हथकरघा पर बुने हुए कपड़े पहनते हैं, और विश्व स्तर पर उनको बढ़ावा भी देते हैं तथा हथकरघा क्षेत्र की सफलता में काफी हद तक उनका योगदान रहा है। समय आ गया है कि अधिक से अधिक लोग इस आंदोलन में शामिल हों। मैं इस क्षेत्र के उत्थान में कताई, रंगाई और बुनकर के रूप में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करता हूं तथा उनके अमूल्य योगदान की सराहना करता हूं। मैं देश भर के पारंपरिक समुदायों विशेषकर महिलाओं के योगदान को पूरी तरह से मान्यता और सम्मान देता हूं, जिनके बिना हथकरघा क्षेत्र के उत्थान की कल्पना नहीं की जा सकती। उनके योगदान को बनाए रखने और उसे बढ़ावा देने के लिए उनके साथ गरिमापूर्ण एवं सम्मानजनक व्यवहार करना जरूरी है।

बुनाई कौशल, डिजाइन नवाचार और एंटरप्रेन्योर क्षमताओं में सुधार लाने के उद्देश्य से शुरू किए गए शैक्षिक कार्यक्रम और पहल महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाती हैं। नई तकनीकों में निपुणता प्राप्त करके और आधुनिक डिजाइनों को एक्सप्लोर करके महिला बुनकर उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद बना कर समकालीन बाजारों को आकर्षित कर सकती हैं, जो उनके शिल्प की सस्टेनिबलिटी को सुनिश्चित करेगी। एम्ब्रॉइडरी और प्रिंटिंग द्वारा मूल्य संवर्धन के माध्यम से हथकरघा को बढ़ावा देने से पारंपरिक वस्त्रों में नई जान आती है, तथा अद्वितीय और अत्यधिक वांछनीय उत्पाद तैयार होते हैं। एम्ब्रॉइडरी, सुई के काम से जुड़ी एक जटिल कला, जो हथकरघा कपड़ों में गहराई और विशेषता पैदा करती है। जरदोजी, कांथा या चिकनकारी जैसी विभिन्न तकनीकों को शामिल करके कारीगर साधारण हथकरघा वस्त्रों को विस्तृत, अद्वितीय टुकड़ों में बदल देते हैं। इससे न केवल सौंदर्य अपील बढ़ती है, बल्कि उत्पादों का बाजार मूल्य भी बढ़ता है, जिससे कारीगरों को बेहतर आर्थिक अवसर मिलते हैं।

हथकरघा उद्योग में प्रौद्योगिकी और नवाचार का एकीकरण बुनकरों द्वारा अनुभव की जाने वाली कठिनाई को कम करने, उत्पादकता बढ़ाने और इस पारंपरिक शिल्प को संरक्षित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। आधुनिक प्रगति ने हथकरघा बुनाई से जुड़े शारीरिक श्रम को काफी हद तक कम कर दिया है, जिससे यह प्रक्रिया अधिक एफिशएंट और अपेक्षाकृत कम श्रम वाली हो गई है। कंप्यूटर-एडेड डिजाइन (सीएडी) सॉफ्टवेयर बुनकरों को बुनाई शुरू करने से पहले उन्हें जटिल पैटर्न और रंग संयोजनों के सुव्यवस्थित प्रयोग हेतु सक्षम बनाता है। इससे न केवल समय की बचत होती है, बल्कि त्रुटियों का जोखिम भी कम हो जाता है, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले आउटपुट प्राप्त होते हैं।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस (7 अगस्त) के उपलक्ष्य में इस वर्ष मैं सभी से दो प्रतिज्ञाएं लेने का आग्रह करता हूं; पहली, हम सभी हथकरघा उत्पादों के साथ सेल्फी लेंगे और उसे सोशल मीडिया पर साझा करेंगे; दूसरी, हथकरघा को अपने परिधानों एवं दैनिक जीवन में शामिल करेंगे। प्रत्येक हथकरघा वस्तु अद्वितीय है, जिसे सावधानी एवं बारीकी से बुना जाता है, जो इसके बनाने वाले के समर्पण के साथ-साथ उसके शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। हथकरघा उत्पादों का चयन करके हम न केवल पारंपरिक वस्त्रों की सुंदरता और विविधता को सम्मानित करते हैं,  बल्कि कारीगरों की आजीविका में भी महती योगदान देते हैं।

हथकरघा उद्योग में गुणवत्ता, निरंतरता और तकनीक को प्राथमिकता देना महत्त्वपूर्ण है। हर किसी को क्षेत्रीय शिल्पकारों और पारंपरिक बुनाई समुदायों का समर्थन करना चाहिए और उनके कपड़ों की खरीदारी के प्रति जागरूक रहना चाहिए जिससे इन्हें बनाने वाले लोग और यह क्षेत्र लाभान्वित होता है। हथकरघा वस्तुओं के निष्पक्ष व्यापार, रीजनल मैन्यूफैक्चरिंग, सस्टेनिबलिटी और शिल्प कौशल पर ध्यान देने से इस आंदोलन को बढ़ाने में मदद मिलेगी और हथकरघा बुनकरों को उनका हक मिलेगा। हथकरघा उद्योग का समर्थन करके हम न केवल एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए भी प्रयास करते हैं, और साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) 2030 को भी प्राप्त करते हैं।

गिरिराज सिंह
लेखक केंद्रीय वस्त्र मंत्री


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