ग्रामीण जलापूर्ति : कठिनाइयों के बीच हर घर जल के प्रयास

Last Updated 21 Jul 2024 01:39:17 PM IST

हाल के विकास कार्यक्रमों में हर घर जल की योजना विशेष तौर पर चर्चित रही है, विशेषकर दूर-दूर के गांवों के संदर्भ में। इन गांवों के परिवारों और विशेषकर महिलाओं के समय का एक बड़ा भाग परिवार की पानी की जरूरतों को पूरा करने में ही जाता रहा है।


ग्रामीण जलापूर्ति : कठिनाइयों के बीच हर घर जल के प्रयास

दिन भर प्रयास करने के बाद भी कई बार पानी जैसी बुनियादी जरूरत की आपूर्ति ठीक से नहीं हो पाती थी और गर्मी के दिनों में तो जैसे जल-संकट का हाहाकार ही मच जाता था।
इस स्थिति में जब भारत सरकार ने हर घर में नल का जल पंहुचाने की समयबद्ध योजना आरंभ की तो स्वाभाविक ही था कि इस योजना से बहुत उम्मीदें जुड़ गई। आज स्थिति यह है कि कहीं इस जल जीवन मिशन की उपलब्धि का उत्साह है तो कहीं अनेक समस्याओं को लेकर चिंता भी है। उपलब्धि और कठिनाइयों के बीच गांव किस स्थिति में है, यह जानने के लिए इन पंक्तियों के लेखक ने हाल में निवाड़ी जिले (मध्य प्रदेश) के अनेक गांवों का दौरा किया।

यह बुंदेलखंड क्षेत्र, विशेषकर गर्मियों के दिनों में, जल-संकट के लिए चर्चा में रहा है। यह सव्रेक्षण भीषण गर्मी के दिनों में किया गया और मौसम सुधरने पर इससे बेहतर स्थिति सामने आएगी। इस क्षेत्र में सुखद स्थिति यह है कि गांव-स्तर की जल समितियों के स्तर पर अनेक गांववासी खुल कर अपनी समस्याओं को उठा रहे हैं। इस क्षेत्र में परमार्थ संस्था ने ‘जल सहेली’ महिला कार्यकर्ताओं के माध्यम से जल के मुद्दे पर जागरूकता फैलाई है और ग्राम सभाओं तथा पंचायतों में भी उनके विचारों को अधिक महत्त्व मिलने लगा है। इस तरह पानी के मुद्दे पर जनसक्रियता बढ़ी है और लोगों की समस्याओं के समाधान की संभावना बढ़ी है। जल-जीवन मिशन के अंतर्गत जब पाइपलाइनों को बिछाया गया, नल लगाए गए तो इस जागरूकता के कारण लोग बेहतर ढंग से गलतियों को रोक सके और स्थानीय ज्ञान के आधार पर बेहतर व्यवस्था कर सके।

बहेरा गांव में यह सक्रियता अधिक है और अधिकांश परिवारों के नल लग गए हैं, पानी भी पहुंचने लगा है, फिर भी लगभग 12 प्रतिशत घरों में अभी पानी आना शेष है। ऊंचाई में पानी पंहुचाने में कठिनाई है, और स्कूल में भी। स्कूल के बोर में पानी गर्मी के चरम के दिनों में समाप्त हो गया और पास के एक अन्य कुएं में भी समाप्त हो गया। जिन गांवों में पानी आता है, सुबह आधे घंटे आता है। भीषण गर्मी के कारण यह गर्म होता है और पिया नहीं जाता। अत: पीने के लिए अनेक परिवार इस समय भी कुएं या हैंडपंप से ही पानी लाते हैं। नामापुरा गांव में अधिकांश घरों में पानी पहुंच रहा है पर ऊंचाई वाली बस्ती में अभी नहीं पहुंचा है। यहां पानी ले जाने के लिए तैयारी चल रही है।

दो परिवारों ने कहा कि उनके नल भी नहीं लगे क्योंकि उनके घर पाइपलाइन की राह से कुछ हट कर हैं। नामापुरा गांव में नल में जो पानी आ रहा है, वह स्वच्छ नहीं है और लोग इसे पीने के लिए उपयोग में नहीं लाते। वे योजना बना रहे हैं कि टंकी संचालक के पास जाकर पता लगाएं कि गंदा पानी क्यों भेजा जा रहा है। इस तरह गांव अभी पहले के स्रेतों पर ही पेयजल के लिए आश्रित हैं पर इसमें एक बड़ी समस्या यह है कि इस पानी को पीने से पथरी की समस्या उत्पन्न हो रही है। गांववासियों ने बताया कि पांच-छह लोगों का पथरी का ऑपरेशन हो चुका है। पथरी से जुड़े दर्द और परेशानी की शिकायतें तो इससे कहीं अधिक लोगों को है और डॉक्टरों ने बताया है कि पानी के दूषित होने के कारण ऐसा हो रहा है। अब आगे गांव को तैयारी यह करनी है कि कम से कम नई पाइपलाइन का पानी स्वच्छ मिले जिससे वे पेयजल की आवश्यकताएं इससे पूरी कर सकें।

चुरारा गांव में विभिन्न मुहल्लों में  स्थिति भिन्न है जहां दलित, आदिवासी और कुशवाहा मोहल्लों में अधिक समस्याएं हैं। कुछ कुशवाहा परिवारों ने नल को उतार दिया है क्योंकि उनके अनुसार जब पानी ही नहीं आ रहा है तो इसे क्यों रखें पर कुछ अन्य मोहल्लों में स्थिति बेहतर है। कुछ लोगों ने कहा कि गर्म पानी पिया नहीं जाता। पहले मटके में रखना पड़ता है। फिर बाद में पी सकते हैं। पानी रोज नहीं आता है।

सेन्री गांव में दो दलित मोहल्लों में अभी पाइपलाइन और नल पहुंचे ही नहीं हैं। अन्य मोहल्लों में जहां नल लग गए हैं, वहां पानी रोज नहीं आता है और जब आता है तो उसका समय निश्चित नहीं होता। आदिवासी (सहरिया) मोहल्ले और साईबाबा मोहल्ले में पानी की अधिक कठिनाई है। कुछ अन्य स्थानों में लोगों को बोर और हैंडपंप से आपूर्ति हो जाती है। अत: वे पाइपलाइन के पानी के बारे में विशेष चिंतित नहीं हैं। जहां तक परंपरागत कुओं का सवाल है तो वे लगभग बंद हो चुके हैं। एक समय इन कुओं की गांव की पेयजल आपूर्ति में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका थी पर जिस तरह ये निरंतर उपेक्षित होते रहे तो अब इनकी भूमिका जल आपूर्ति में नगण्य हो गई है।

इस तरह जहां कुछ स्रेत बढ़ रहे हैं तो कुछ कम भी हो रहे हैं। नामापुरा गांव के लोगों ने बताया कि पहले हरियाली बहुत अधिक थी, पेड़ बहुत अधिक थे। इनके बहुत कम हो जाने से जल संरक्षण पर और गर्मी का प्रकोप बढ़ने पर प्रतिकूल असर पड़ा है। कुछ स्थानों पर जल-स्तर तेजी से नीचे गया है। एक ही गांव जैसे सेन्री में एक मोहल्ले की अपेक्षा दूसरे मुहल्ले में जल-स्तर बहुत नीचे हो सकता है और जहां यह बहुत नीचे है वहां बोर विफल हैं, पानी नहीं दे रहे हैं। अधिक कठिनाई उन गांववासियों की है जहां बोर विफल हैं, जल-स्तर नीचे चला गया है और अभी पाइपलाइन का पानी भी ठीक से नहीं मिल रहा है।

इस तरह की अनेक कठिनाइयों के बावजूद कुछ स्थानों पर यह उत्साह है कि कम से कम नल और पाइपलाइन तो आ ही गए हैं और गर्मी का प्रकोप कम होने के बाद स्थिति सुधरेगी तो नल में पानी भी बेहतर और अधिक मिलेगा। इस स्थिति में जिन महिलाओं को दिन भर पानी के लिए खटना पड़ता था, उससे मुक्ति मिलेगी। बहेरा की एक महिला ने कहा कि पहले कभी रिश्तेदारी में जाते थे, उस समय भी यही चिंता लगी रहती थी कि गांव लौट कर पहले पानी लाना है, तभी आराम कर सकेंगे या कुछ और काम कर सकेंगे। अब ऐसी स्थिति से राहत मिलेगी। इस तरह अपने इस आरंभिक दौर में हर घर जल योजना उपलब्धियों और कठिनाइयों के मिले-जुले दौर से गुजर रही हैं। अभी तक जो अनुभव सामने आए हैं, उनका सही आकलन कर उनसे सीखना जरूरी है ताकि भविष्य में जल जीवन मिशन का और सुधरा हुआ रूप लोगों को और भी राहत देने में सफल हो सके।

भारत डोगरा


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