मुद्दा : अब भारत बनाए अपने सूचकांक

Last Updated 29 Jun 2024 01:20:32 PM IST

वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रेटिंग तय करने की दृष्टि से वित्तीय एवं विशिष्ट संस्थानों द्वारा सूचकांक तैयार किए जाते हैं।


मुद्दा : अब भारत बनाए अपने सूचकांक

हाल के समय में इन विदेशी संस्थानों द्वारा जारी किए गए कई सूचकांकों में भारत की स्थिति को संभवत: जान बूझकर गलत दर्शाया गया है। इन सूचकांकों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं अफ्रीका के गरीब देशों की स्थिति को भारत से बेहतर बताया गया है। उदाहरण के लिए हाल में पश्चिमी देशों द्वारा जारी किए गए तीन सूचकांकों की स्थिति देखिए।

सबसे पहले उदार (लिबरल) लोकतंत्र सूचकांक में भारत की रैंकिंग को 104 बताया गया है। इसी प्रकार, आनंद (हैपीनेस) सूचकांक में भी भारत का स्थान 126वां बताया गया है जबकि पाकिस्तान को 108वां स्थान मिला है, जहां अत्यधिक मुद्रास्फीति के चलते वहां के नागरिक अत्यधिक त्रस्त हैं। एक अन्य प्रेस की स्वतंत्रता नामक सूचकांक में भारत को 161वां स्थान मिला है जबकि इस सूचकांक में कुल मिलाकर 180 देशों को शामिल किया गया और अफगानिस्तान को 152वां स्थान दिया गया है अर्थात इस सर्वे के अनुसार, अफगानिस्तान में प्रेस की स्वतंत्रता भारत की तुलना में अच्छी पाई गई है। पश्चिमी देशों में स्थित इन संस्थानों द्वारा इस प्रकार के सूचकांक तैयार करके पूरे विश्व को भ्रमित किए जाने का प्रयास हो रहा है।

इसी प्रकार, भारत में हाल में संपन्न हुए लोक सभा चुनाव पर भी पश्चिमी देशों ने कई प्रकार के सवाल खड़े करने के प्रयास किए थे। जैसे, भीषण गर्मी के मौसम में चुनाव क्यों कराए गए, जिससे सामान्यजन वोट डालने के लिए घरों से बाहर ही नहीं निकले, ईवीएम मशीन में कोई खराबी तो नहीं है आदि, परंतु भारतीय मतदाताओं ने चुनाव में भारी संख्या में भाग लेकर पश्चिमी देशों को करारा जवाब दिया है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव सामान्यत: शांति के साथ संपन्न हो गए। इस सबके बावजूद पश्चिमी देशों ने पश्चिमी लोकतंत्र सूचकांक में 2014 में भारत को 27वां स्थान दिया था और  2023 में भारत की रैंकिंग नीचे गिराकर 41वें स्थान पर बताई गई है, जबकि वास्तव में तो इस बीच देश में लोकतंत्र अधिक मजबूत ही हुआ है।

दरअसल, पश्चिमी देशों में कुछ शक्तियां भारत के हितों के विरुद्ध कार्य कर रही हैं एवं ये ताकतें विभिन्न सूचकांक तैयार करने वाली संस्थाओं को प्रभावित करने में  कोर कसर नहीं छोड़ती हैं। कुछ समय पूर्व एक अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया था। इस सूचकांक में बताया गया था कि भारत की तुलना में श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, इथियोपिया, नेपाल, भूटान आदि देशों में भुखमरी की स्थिति बेहतर है अर्थात सर्वे में शामिल किए गए 121 देशों की सूची में श्रीलंका का स्थान 64वां, म्यांमार का 71वां, बांग्लादेश का 84वां, पाकिस्तान का 99वां, एथीयोपिया का 104वां एवं भारत का 107वां स्थान बताया गया था जबकि पूरा विश्व जानता है कि श्रीलंका, पाकिस्तान एवं म्यांमार जैसे देशों में खाद्य पदाथरे की भारी कमी है। फिर किस प्रकार ऐसे सूचकांक बनाकर वैश्विक स्तर पर जारी किए जा रहे हैं। आभास हो रहा है कि भारत की आर्थिक तरक्की को विश्व के कई देश अब सहन नहीं कर पा रहे हैं एवं भारत के बारे में ऐसे सूचकांक जारी कर भारत की साख को वैश्विक स्तर पर प्रभावित किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। सवाल पैदा होता है कि अब कौन इस प्रकार के सूचकांकों पर विश्वास करेगा।

यह भी बताया जा रहा है कि इस सूचकांक को आंकने के लिए भारत के 140 करोड़ नागरिकों में से 3000 नागरिकों को ही इस सर्वे में शामिल किया गया था। इस प्रकार सर्वे का सैम्पल बनाते समय भारत जैसे विशाल देश के लिए अपर्याप्त संख्या का उपयोग किया गया। वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों की सावरेन क्रेडिट रेटिंग पर कार्य कर रही संस्था ‘स्टैंर्डड एंड पूअर’ ने हाल में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकलन करते हुए भारत के संबंध में अपने दृष्टिकोण को सकारात्मक करते हुए कहा है कि वह भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को अपग्रेड करने के उद्देश्य से भारत के आर्थिक विकास संबंधी विभिन्न पैमानों आधारभूत ढांचे को विकसित करने एवं राजकोषीय घाटे को कम करने से संबंधित आंकड़ों एवं प्रयासों का गंभीरता से लगातार अध्ययन एवं विश्लेषण कर रही है।

वैश्विक पटल पर पश्चिमी देशों की विभिन्न संस्थानों द्वारा भारत के प्रति ईष्र्या का भाव रखने के चलते समय आ गया है कि भारत विभिन्न पैमानों पर अपनी रेटिंग तय करने के लिए अपने सूचकांक विकसित करने पर विचार करे क्योंकि वैश्विक स्तर पर पश्चिमी देशों द्वारा जितने भी सूचकांक तैयार किए जा रहे हैं, उनमें भारत के संदर्भ में वस्तुस्थिति का सही वर्णन नहीं किया जा रहा है।

प्रह्लाद सबनानी


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