जी-7 समिट : वैश्विक शांति में भारत की भूमिका

Last Updated 16 Jun 2024 12:46:24 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश में तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बनने के बाद पांचवीं बार जी-7 सेवन की महत्त्वपूर्ण बैठक में शामिल हुए हैं।


जी-7 समिट, वैश्विक शांति में भारत की भूमिका

निश्चित तौर पर यह बैठक वैश्विक परिदृश्य के लिए महत्त्वपूर्ण होगी। प्रधानमंत्री मोदी जी ने अभी तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मेंक्रो एवं इटली की राष्ट्र प्रमुख मेलोनी तथा यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेन्सकी से अलग-अलग मुद्दों पर द्विपक्षी बैठक संपन्न की है। इसके अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से भी मुलाकात संभावित है। जी-7 के सदस्य देशों ने चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने की बैठक में पुरजोर कोशिश की गई है। इसके अलावा पुतिन पर यूक्रेन के साथ युद्ध विराम करने के लिए भरसक प्रयास किया गया। पर भारत और अन्य जी-7 के सदस्य देश आर्टििफशियल इंटेलिजेंस (एआई) पर गंभीर मुद्दों पर नए पहलुओं पर विचार कर रहे हैं।

भारत हमेशा से शांति सद्भावना और सौहार्द का सर्वकालिक समर्थक रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की तरफ से लगातार प्रयास किए जाते रहे हैं कि युद्ध विराम हो जाए और इसके लिए भारत में अथक प्रयास भी हुए हैं। यह अलग बात है कि विस्तारवादी दृष्टिकोण को लेकर पुतिन और जेलेंस्की अजीब सी राजनीतिक और कूटनीतिक परिस्थितियों में एक-दूसरे के सामने खड़े तथा अड़े हैं। अब इस्रइल-हमास युद्ध में भारत की नीति स्पष्ट रूप से आतंकवादी गतिविधियों और उग्रवाद के विरोध में रही है।

भारत ने आतंकवादी संगठन हमास, हिज्बुल्लाह और फिलिस्तीन इस्लामी जिहाद का खुलकर विरोध किया है। दूसरी तरफ इस्रइल की बमबारी से घायल हुए फिलिस्तिनी नागरिकों के लिए सैकड़ो टन खाद्य सामग्री दवाएं और आवश्यक वस्तुएं तत्काल मुहैया कराई है। भारत के संबंध रूस के साथ-साथ जी-7 के सदस्य देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली जापान, कनाडा और नाटो देशों से भी मधुर हैं। इन परिस्थितियों में अरब देश भारत के प्रति युद्ध विराम की संभावनाओं की तलाश में भारतीय पहल का इंतजार कर रहा है।

अब भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में जॉर्डन के शांति प्रस्ताव में वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया, 120 देशों के मतों से प्रस्ताव पारित हो गया, 45 देशों ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया। चूंकि जॉर्डन हमास को उग्रवादी संगठन नहीं मानता जबकि भारत हमास को कट्टर उग्रवादी मानने की नीति पर चल रहा है। अब भारत के लिए आगे बढ़कर पूरे विश्व का नेतृत्व करने का समय आ गया है। अब तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आहूत शांति प्रयासों तथा शांति निर्वहन संक्रियाओं का समर्थन कर रचनात्मक सहयोग हरसंभव किया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के आह्वान पर कोरिया, वियतनाम, लागोस, मिस्र, सीरिया, लाइबेरिया, युगोस्लाविया,नामीबिया, सोमालिया, सूडान सहित अनिगनत देशों में अपनी सेनाएं वहां पर शांति बहाली के लिए अलग-अलग समय में उपलब्ध करवाई थी।

भारत द्वारा विश्व शांति की स्थापना की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ शांति अभियानों में अनथक एवं बहुत बड़ा सहयोग किया है। उन्होंने कई देशों के मध्य पर्यवेक्षक की भूमिका भी सफलतापूर्वक निभाई है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत को शांति निरीक्षण आयोगों, समितियों तथा अंतरिम विश्वास बहाली कार्यक्रमों में बतौर सदस्य नामित भी किया है। इस भूमिका को भी भारत ने बहुत सफलतापूर्वक निर्वहन किया है, वैसे भी भारत की विदेश नीति सदैव वैश्विक विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रबल पक्षधर रही है। इसीलिए भारत सरकार ने न सिर्फ  संयुक्त राष्ट्र संघ के शांति बहाल अभियान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि विश्व के अनेक तनावग्रस्त संकटग्रस्त एवं युद्ध देशों के मध्य अपनी कूटनीतिक राजनैतिक भूमिका भी कर्मठता से निभाई है। संयुक्त राष्ट्र संघ बहुत महत्त्वपूर्ण होकर जटिल भी होते हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की हर भूमिका को बड़े ही शांति और सौहार्दपूर्ण वातावरण में निपटाने का कार्य बखूबी निभाया है। और भारत राष्ट्र जिस तरीके से आत्मनिर्भर होकर विदेश की सरकारों से अपने संबंध स्थापित किए हैं, उससे यह दिन दूर नहीं जब भारत को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्य बनाकर, वैश्विक शांति के लिए शांतिदूत का दर्जा दिया जाएगा।

संजीव ठाकुर


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