उत्तर प्रदेश : सपा की जीत के मायने

Last Updated 15 Jun 2024 01:29:09 PM IST

अचानक कहीं कुछ नहीं होता, अंदर ही अंदर कुछ घिस रहा होता है, कुछ पिस रहा होता है।’ इन पंक्तियों में कवि ने इस बात पर इशारा किया है कि किसी भी काम का विपरीत अंजाम आने पर हमें ऐसा क्यों लगता है कि ऐसा कैसे हो गया? जबकि उसके पीछे के कारणों पर कोई ध्यान नहीं देता।


उत्तर प्रदेश : सपा की जीत के मायने

 ऐसा ही कुछ हुआ 2024 के उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद। यहां बीजेपी को पहले के मुकाबले इस बार बहुत कम सीटें मिलीं। ऐसा क्या कारण था कि भाजपा का प्रदर्शन इतना बुरा रहा? अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण। अनुच्छेद 370 का हटाना। तीन तलाक को खत्म करना। ये ऐसे कुछ मुद्दे थे जिन पर भाजपा को पूरा विश्वास था कि वह ‘अबकी बार 400 पार’ के अपने नारे को सच कर दिखाएंगे, परंतु ऐसा न हो सका।    

ऐसा माना जाता है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। इस बार के चुनाव में उत्तर प्रदेश का जो परिणाम रहा उसने सत्तारूढ़ दल को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऐसी कौन सी कमी उनकी नीति में थी जो वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने में विफल रही? ऐसा क्या हुआ कि पार्टी कार्यकर्ताओं में वो उत्साह नहीं था जो पिछले दो लोक सभा चुनावों में देखा गया? क्या संगठन के काम करने के ढंग या उनके द्वारा लिये गए गलत फैसलों ने जमीनी कार्यकर्ताओं को हतोत्साहित किया? क्या उत्तर प्रदेश में या अन्य राज्यों में, जहां भाजपा का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था वहां पर उम्मीदवारों के चयन में गलती हुई? हिंदुओं के लिए पूजनीय अयोध्या, रामेरम में मिली हार और प्रधानमंत्री को वाराणसी में पिछली बार के मुकाबले बहुत कम अंतर से मिली जीत भी सवालों के घेरे में है। इन नतीजों के बाद सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत का ‘अहंकार’ की ओर इशारा करना भी क्या इस बुरे प्रदर्शन का कारण बना?  सूत्रों के अनुसार इस बार के चुनाव में कम सीट आने के पीछे भाजपा में अंदरूनी कलह ने भी एक बड़ी भूमिका निभाई।

जिस तरह केंद्र के नेतृत्व द्वारा राज्य की सरकारों व राज्यों के नेताओं की उपेक्षा की गई और वो फिर जनता के सामने आई वह भी इन नतीजों का कारण बनी। भाजपा और संघ के बीच हुए मतभेदों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। यदि केंद्र और राज्य के नेतृत्व में कोई मतभेद थे तो उन्हें समय रहते एक मर्यादा के तहत हल किया जाना चाहिए था। भाजपा और संघ के कार्यकर्ताओं का इस बार के चुनावों में सक्रिय योगदान नहीं दिखाई दिया उससे देश भर में एक संदेश गया है कि राष्ट्रीय नेतृत्व जमीन से कट गया है। इस बार के चुनाव को इतने चरणों में बांटने से भी कार्यकर्ताओं की सहभागिता में कमी नजर आई। कार्यकर्ताओं को इस बात का पूर्ण विश्वास था कि पिछले दस वर्षो में देश में ऐसे कई बदलाव आए हैं, जो तीसरी बार भी मोदी सरकार को पूर्ण बहुमत दिलाएंगे।

इसी के चलते भी कार्यकर्ताओं में उतना उत्साह दिखाई नहीं दिया। वहीं दूसरी ओर देखें तो समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और उनके कार्यकर्ताओं ने जिस तरह उत्तर प्रदेश के चप्पे-चप्पे पर अपनी नजर बनाए रखी और भागदौड़ की वो काफी फायदेमंद रहा। सपा के उम्मीदवारों का चयन और ‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों का उन पर भरोसा, दोनों ही इन चुनावों में सही साबित हुए। यदि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता इसी ऊर्जा और रणनीति से अभी से जुटे रहेंगे तो 2027 के विधान सभा चुनावों में भी उनका प्रदशर्न बढ़िया रहेगा। उत्तर प्रदेश के अगले विधान सभा चुनाव में यदि सही रणनीति और सही उम्मीदवारों का चयन हो, यदि वहां की जनता की समस्याओं के समाधान की एक ठोस योजना हो तो उन मतों को भी अपने पाले में लाया जा सकता है जो बुनियादी मुद्दों से भटका दिये गए हैं।
इतना ही नहीं, जिस तरह समाजवादी पार्टी को एक विशेष वर्ग के लोगों की पार्टी माना जाता था, उसका भी भ्रम इस बार के चुनावों में टूटा है।

सभी हिंदू तीर्थ स्थलों में सपा ने भाजपा को शिकस्त दी है। समाजवादी पार्टी ने जिस तरह ‘एम-वाई’ फैक्टर को नए रूप में पेश किया वह भी काम कर गया है। जिस तरह भाजपा हर समय चुनावी मूड में रहती है यदि विपक्षी पार्टयिां भी उसी मूड में रहें तो भाजपा को कड़ी टक्कर दे पाएंगी। इसके साथ ही सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को ही इस बात पर भी तैयार रहना चाहिए कि यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो गठबंधन की सरकार ही विकल्प होता है। यदि कोई भी दल इस अहंकार में रहे कि वो एक बड़ा और प्रभावशाली राजनैतिक दल है और विपक्ष दशर्क दीर्घा में बैठने के लिए है तो फिर उसे तब झटका लगेगा ही जब उसे सरकार बनाने के लिए अन्य दलों के आगे झुकना पड़ेगा। हर दल को जनता के फैसले का सम्मान करना चाहिए। गठबंधन की सरकार में हर वो दल जिसके पास अच्छी संख्या हो वह किसी न किसी बात पर उखड़ भी सकता है। इसलिए भलाई इसी में है कि अपनी गलतियों से सबक लिया जाए और ‘सबका साथ और सबका विकास’ अमल में लाया जाए।

रजनीश कपूर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment