अस्पताल : रखरखाव में हीलाहवाली क्यों

Last Updated 06 Jun 2024 01:59:07 PM IST

हाल में दिल्ली में बेबी केयर सेंटर में आग लगने से जो हादसा हुआ, उससे नर्सिग होम और बेबी केयर सेंटर्स में बच्चों की सुरक्षा को लेकर सवालिया निशान लग गए हैं। इस हादसे के बाद जांच में बहुत सारी खामियां मिल रही हैं।


अस्पताल : रखरखाव में हीलाहवाली क्यों

बेबी केयर सेंटर नर्सिग होम के पंजीकरण पर संचालित किया जा रहा था और इसका लाइसेंस भी 31 मार्च, 2024 को समाप्त हो चुका था। इसका रिन्यूअल नहीं कराया गया था। मौके पर आग बुझाने का कोई भी उपकरण मौजूद नहीं था और न ही किसी फायर फाइटिंग सिस्टम को लगाने का प्रयास किया गया था। आपातकालीन स्थिति में इमारत से बाहर निकलने के लिए कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था।

इस घटना ने लोगों को दिल्ली में संचालित अन्य निजी नर्सिग होम, बेबी केयर सेंटर, निजी क्लिनिक और अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्थाओं के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। इन अस्पतालों और नर्सिग होम को चलाने के लिए किन नियमों का पालन करना पड़ता है और कहां से लाइसेंस लेना पड़ता है; इस संबध में कुछ जानकारियां हैं: सबसे पहले दिल्ली में नर्सिग होम चलाने के लिए दिल्ली सरकार के डायरेक्टर जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज से नर्सिग होम एक्ट के तहत लाइसेंस लेना होता है।

डीजीएचएस कार्यालय में पंजीकरण के लिए आवेदन करना होता है। इसके बाद डीजीएचएस कार्यालय की ओर से नर्सिग होम बिल्डिंग का निरीक्षण किया जाता है; यदि बिल्डिंग नियमों के तहत सही पाई जाती है, तो नर्सिग होम चलाने का लाइसेंस दिया जाता है। दिल्ली का मास्टर प्लान 2021 के तहत जांच की जाती है कि उस रेजिडेंशियल एरिया, जहां सड़क की चौड़ाई 9 मीटर या उससे अधिक हो, में क्या नर्सिग होम या अस्पताल चलाने के लिए स्वीकृति दी जा सकती है।

दूसरा, दिल्ली के फायर एक्ट के तहत फायर विभाग से नर्सिग होम या अस्पताल चलाने के लिए एनओसी तब लेनी होती है, जब उस बिल्डिंग की ऊंचाई नौ मीटर से ज्यादा हो। बिल्डिंग की ऊंचाई नौ मीटर या उससे कम हो, तब एनओसी की जरूरत नहीं होती। तीसरा, चाइल्ड बेबी केयर सेंटर के लिए अलग से परमिशन की जरूरत नहीं पड़ती। उसे नर्सिग होम के तहत ही पंजीकृत कराकर लाइसेंस लेकर चलाया जा सकता है। डीजीएचएस के जरिए ही बेबी केयर सेंटर को भी नर्सिग होम एक्ट में पंजीकृत कर सकते हैं।

बेबी केयर सेंटर चलाने के लिए प्रशिक्षित पीडियाट्रिशियन, स्पेशलिस्ट डॉक्टर और प्रशिक्षित नर्स की जरूरत होती है। डीजीएचएस द्वारा किसी भी नर्सिग होम या अस्पताल को पहली बार तीन साल के लिए लाइसेंस दिया जाता है। लाइसेंस का समय खत्म होने से दो महीने पहले रिन्यूअल के लिए आवेदन करना चाहिए। इस बीच रिन्यूअल की अवधि समाप्त हो रही हो तो तब तक इंतजार करना चाहिए,जब तक डीजीएचएस से कोई सूचना नहीं आ जाती।  लेकिन जब तक रिन्यूअल के लिए भेजे गए आवेदन को रिजेक्ट नहीं किया जाता, तब तक अस्पताल और नर्सिग होम संचालक अस्पताल चला सकता है। पंजीकरण या लाइसेंस अस्वीकृत होने के बाद ही उसको बंद किया जा सकता है। यदि डीजीएचएस कार्यालय देरी कर रहा है, तो विलंब की बाबत पूछताछ की जा सकती है।

दिल्ली नगर निगम या एनडीएमसी के नक्शे के हिसाब से ही बिल्डिंग बनानी पड़ती है। इस नक्शे और बिल्डिंग को देख कर ही डीजीएचएस की ओर से लाइसेंस दिया जाता है। उसके बाद ही नगर निगम या एनडीएमसी उस बिल्डिंग से हाउस टैक्स लेता है। नर्सिग होम एक्ट के अनुसार 100 वर्ग मीटर के किसी भी प्लाट पर बनी बिल्डिंग में अस्पताल संचालित कर सकते हैं। भारत में अस्पताल स्थापित करने के लिए नैदानिक स्थापना अधिनियम, 2017 के तहत पंजीकरण की व्यवस्था की गई है। यह केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित किया गया है। इसके लिए पंजीकरण की आवश्यकता होती है। पंजीकरण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।

पंजीकरण के लिए अस्पतालों को उस श्रेणी के तहत न्यूनतम आवश्यकता पूरी करनी होती है, जिसके अंर्तगत वह आता है। कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत पंजीकरण में जब अस्पताल ने इसे किसी निगम/कॉरपोरेट  के स्वामित्व में स्थापित किया हो। अधिनियम के लिए आवश्यक है कि निगम पंजीकृत हो और एसोसिएशन के ज्ञापन, लेख, पूंजी संरचना निर्माण, प्रतिभूतियों का आवंटन, खाता ऑडिट आदि जैसे निगमन की आवश्यकता को पूरा करता हो। संपूर्ण भारत में यदि स्वास्थ्य से संबंधित उपचार के लिए अस्पतालों को संचालित करना है, तो हमें स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करना होगा, तभी जनमानस का ध्यान स्वास्थ्य लाभ के लिए अस्पतालों की ओर जाएगा, नहीं तो वे सिर्फ आम नागरिक की जेबों को खलास करने के अतिरिक्त कुछ नहीं करेंगे।

भगवती प्रसाद डोभाल


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