PM Modi के ध्यान साधना पर हंगामा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र प्रधानमंत्री (PM Narendra Modi) का कन्याकुमारी (Kanyakumari) के विवेकानंद शिला स्मारक में ध्यान करना जितने बड़े विवाद और बवंडर का विषय बना उसे बिल्कुल स्वाभाविक नहीं माना जा सकता।
![]() सामयिक : ध्यान साधना पर हंगामा |
भारत सहित विश्व समुदाय को प्रेरणा देने वाले विवेकानंद के ध्यान स्थल से जुड़े इस केंद्र पर प्रधानमंत्री जाकर ध्यान करते हैं तो इसका संदेश सर्वत्र जाता है और लोगों में भी विवेकानंद के जैसा बनने, विपरीत परिस्थिति में ध्यान करने और स्वयं को नियंत्रित कर देश के लिए काम करने की प्रेरणा मिलती है।
विपक्ष ने यद्यपि बुद्धिमत्तापूर्वक कहा कि वे ध्यान साधना का विरोध नहीं कर रहे, क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करने से भाजपा को चुनावी लाभ हो जाएगा। इसलिए इसके टीवी कवरेज पर आपत्ति व्यक्त की गई। अलग- अलग पार्टयिां चुनाव आयोग के पास गई भी। प्रधानमंत्री या कोई नेता चुनाव प्रचार के बाद या बीच में किसी धर्मस्थल या प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल पर जाएं, वहां पूजा, प्रार्थना, ध्यान या अन्य साधना करें उस पर चुनाव आयोग या कोई भी संवैधानिक संस्था कैसे रोक लगा सकती है? विपक्ष के नेताओं ने भी पूरे चुनाव में परिश्रम किया है और उन्हें भी ध्यान साधना और शारीरिक, मानसिक संतुलन व शांति के लिए पहले से ऐसी कुछ योजना बनानी चाहिए थी। भारत में अनेक ऐसे धार्मिंक साधना स्थल हैं जहां जाकर आप शारीरिक-मानसिक थकान से आध्यात्मिक कृतियों के द्वारा मुक्ति पा सकते हैं। ऐसी जगह भी है जहां जाकर एक दो दिनों के विश्राम से आपको विशेष शांति और शक्ति मिलती है।
अगर विपक्ष के नेताओं में ऐसी दृष्टि नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं कि प्रधानमंत्री या कोई भी सत्तारूढ़ पार्टी का नेता उस दिशा में न सोचें न करें। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, प्रियंका वाड्रा, अरविंद केजरीवाल, उद्धव ठाकरे, शरद पवार सभी चाहें तो कहीं न कहीं ऐसी साधना कर सकते थे और उन्हें भी टेलीविजन या मीडिया का कवरेज मिलता। नेताओं में वाकई ध्यान और साधना की प्रतिस्पर्धा हो तो यह देश और संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी होगा।
जब आध्यात्मिक दृष्टि से आपके शरीर और मन के बीच संतुलन स्थापित होता है तो उसके साथ सकारात्मक दृष्टि भी विकसित होती है जहां से केवल सबके कल्याण के भाव से ही विचार पैदा हो सकते हैं। जब 2014 का चुनाव प्रचार समाप्त हुआ तब नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने शिवाजी के रायगढ़ किले में जाकर ध्यान किया था। शिवाजी हमारे देश में भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व की दृष्टि से प्रेरक और आदर्श व्यक्तित्व हैं। शिवाजी जैसे महापुरु ष के प्रति अगर विपक्ष के अंदर ऐसा भाव पैदा नहीं होता तो इसके लिए वही दोषी हैं।
2019 के चुनाव प्रचार की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री उत्तराखंड के केदारनाथ गए थे और वहां उन्होंने गुफा में ध्यान और साधना की। यह मान लेना कि इस प्रकार की ध्यान साधना या पूजा पाठ के मीडिया कवरेज के प्रभाव में आकर पहले से किसी और को मत देने का मन बनाए मतदाता अचानक पलट कर भाजपा को वोट देने लगेंगे उचित नहीं लगता। मतदाताओं के पास भी सही गलत का निर्णय करने का विवेक है। विपक्ष इसे प्रधानमंत्री मोदी के मतदाताओं को आकर्षित करने की रणनीति मानता था तो उसे भी इसकी काट में रणनीति अपनानी चाहिए। विरोधियों ने प्रधानमंत्री की ध्यान साधना को राजनीतिक मुद्दा बना दिया।
किसी भी देश का शीर्ष ध्यान साधना या अपने आध्यात्मिक कर्मकांड या फिर छुट्टियां मनाने जाएगा तो उसे मीडिया का कवरेज मिलेगा। यह भी सच है कि प्रधानमंत्री को जितना कवरेज मिलेगा उतना किसी अन्य नेता को नहीं मिल सकता, लेकिन दूसरे नेता अपना कार्यक्रम इतने ही प्रेरणादायी व सकारात्मक बनाएं तो मीडिया उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकता। वैसे भी विरोधियों ने प्रधानमंत्री मोदी को खलनायक साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
उत्तर प्रदेश में जब से योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने हैं उनके प्रति भी विरोधियों का रवैया यही है। स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले केवल मोदी बोलते थे अब उसमें योगी को जोड़ दिया। योगी समर्थक यह बोलते हैं कि विरोधियों को उनके भगवा वस्त्र से, अपराधियों के विरु द्ध कार्रवाई से या हिंदुत्व के प्रति प्रखरता से समस्या है तो इसका जवाब उनके पास नहीं होता। विवेकानंद शिला स्मारक पर जाने वाले या उसकी प्रशंसा करने वाले ज्यादातर नेताओं को शायद यह पता नहीं होगा कि उसके निर्माण के पीछे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मुख्य भूमिका थी। 1963 में स्वामी विवेकानंद के जन्म शताब्दी के समय लोगों ने उस चट्टान के पास एक स्मारक बनाने का निश्चय किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। संघ ने अपने उस समय के वरिष्ठ प्रचारक एकनाथ रानडे को इस काम में लगाया। उस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भक्तवत्सलम ने स्मारक में मदद से मना कर दिया। तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर ने भी सहयोग से इनकार किया।
संघ ने निर्णय कर लिया था और उनके लोग लग गए थे तो वे लगे रहे। सांसदों से भेंट की गई। 300 से ज्यादा सांसदों से हस्ताक्षरित समर्थन लिया गया। फिर तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उसके निर्माण की अनुमति दी। 1972 में विवेकानंद केंद्र बना जो वहां अनेक प्रकार के कार्यक्रम करता है। भारत सहित विश्व के हजारों लोगों ने उस स्थान से अपना जीवन बदला या समाज को बदलने का की प्रेरणा लेकर काम किया है। बहुत सारे लोग तो आज अभी कहेंगे कि संघ विवेकानंद की क्यों बात करती है, विवेकानंद के हिंदुत्व से संघ का क्या लेना देना।
कहने की आवश्यकता नहीं कि इस तरह की आलोचना केवल लंबे समय से पाले गए और स्वाभाविक दुराग्रह की परिणति होती है।
वहीं से ऐसे विरोध पैदा होते हैं जिनका आम जनता पर असर न के बराबर होता है। राजनीति और विशेष कर चुनावी रणनीति अपनी जगह है। प्रधानमंत्री द्वारा विवेकानंद शिला स्मारक में किया जा रहा ध्यान और साधना इस देश की शांति समृद्धि का कारण बने ऐसी हम सबको कामना करनी चाहिए। अच्छा हो कि देश के ज्यादातर शीर्ष नेता इसी तरह कोई स्थान चुनकर आत्मोन्नित और भारत राष्ट्र तथा मानवता के कल्याण का लक्ष्य लेकर सिद्ध स्थलों पर ध्यान साधना आदि करें। कल्पना करिए अगर नेताओं के बीच ऐसी सकारात्मक प्रतिस्पर्धा हो जाए तो फिर कितना सुखद वातावरण बनेगा तथा उसका सकारात्मक असर हम सब पर होगा।
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