पर्यावरण संरक्षण : नवाचार से सुधरेंगे हालात
प्राचीन समय से ही मानव समुदाय ने प्रकृति के महत्त्व को समझा है। प्रकृति हमारे जीवन का मूलभूत आधार है। हमें आहार, जल, वायु और अन्य सामग्री प्रदान करती है जो जीवन के लिए आवश्यक है।
पर्यावरण संरक्षण : नवाचार से सुधरेंगे हालात |
मानव पर पर्यावरण के प्रभावों और उसकी और प्रकृति के बीच की जो क्रियाएं हैं, वे मानव को प्रभावित करती हैं। जिस प्रकार मनुष्य प्रकृति के कार्यो में हस्तक्षेप करता है, पुन: दोनों मिलकर अपने-अपने कार्यो का संपादन करते हैं। इसलिए प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण हमारे लिए ही नहीं, बल्कि समस्त जीवों के लिए आवश्यक है।
हम सभी जानते हैं कि प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए प्रकृति के सभी तत्वों का संतुलन आवश्यक है। यदि पारिस्थितिकी तंत्र का किसी भी एक तत्त्व का विनाश होता है तो इससे संपूर्ण मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। वर्तमान समय में मानव जाति के समक्ष पीने योग्य पानी की उपलब्धता, सांस लेने के लिए शुद्ध हवा और भूमि संरक्षण की समस्या भयावह रूप धारण करती जा रही है। अनुमान है कि 2050 तक लवणीय मृदा में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
आज का वैज्ञानिक युग का मनुष्य चांद और मंगल ग्रह पर निवास करने की बात कर अरबों रु पया केवल अंतरराष्ट्रीय कोषों से खर्च कर रहा है, जब की यह गहन चिंतन, मंथन और विचार करने योग्य बात है कि स्वयं हमने ही इस हरी-भरी पृथ्वी के सुंदर कल्याणकारी स्वरूप को विकृत बना डाला है, इसके जिम्मेदार हम ही हैं। आवश्यकता है, स्थलीय पारिस्थितिकीय तंत्र और संपूर्ण भूमंडल पर मानव जाति के आर्थिक क्रियाकलाप के प्रभावों को नियंत्रित करने की और वैिक तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की चुनौतियों को स्वीकार कर मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार कर सुधारने की। प्रकृति, पर्यावरण, और भूसंरक्षण सामाजिक और आर्थिक विकास के महत्त्वपूर्ण पहलुओं में शुमार हैं।
इनके संरक्षण और सुरक्षा के लिए संवेदनशीलता बढ़ रही है, अत: इन्हें शिक्षा प्रणाली के माध्यम से बच्चों और युवाओं को समझाने का प्रयास किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा घोषित, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के कार्यान्वयन से, भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी, समर्पित और सर्वागीण विकास को ध्यान में रखते हुए इसमें शिक्षा के समावेशीकरण, उत्तम तकनीकीयुक्त व गुणवत्तायुक्त शिक्षा और पर्यावरणीय शिक्षा को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसमें विद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई पाठ्यक्रम और उपायों की बात की गई है। नई शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 ने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में पर्यावरण शिक्षा को समावेशीकरण के लिए प्रोत्साहित किया है।
प्राथमिक स्तर पर बच्चों को प्राकृतिक संसाधनों के बारे में सिखाया जाएगा और माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के बारे में गहरी जागरूकता प्राप्त कराई जाएगी। एनईपी ने गुरु कुल प्रणाली को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है, जिसमें छात्रों को प्रकृति के साथ निकटता बनाने का अवसर मिलेगा। इसके माध्यम से वे प्राकृतिक परिवेश में रहकर पर्यावरण के महत्त्व को समझेंगे। उसकी रक्षा के लिए सक्रिय योगदान करेंगे। एनईपी ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी पर्यावरण अध्ययन को महत्त्व दिया गया है। छात्रों को पर्यावरणीय विषयों में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए अवसर प्रदान किया जाएगा ताकि वे पर्यावरण संरक्षण नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकें।
एनईपी में पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के बारे में विस्तृत अध्ययन कराने का प्रस्ताव है। इसमें छात्रों को प्रकृति के साथ संबंधित विषयों में गहरी समझ और जागरूकता प्रदान करने के लिए विशेष पाठ्यक्रम समिल्लित किए गए हैं। एनईपी में विभिन्न समुदायों के साथ सहयोग और सहभागिता को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है, जिसमें स्थानीय समुदायों, स्थानीय प्रशासन और संगठनों के साथ मिलकर पर्यावरण संरक्षण के लिए योजनाएं विकसित की जा सकती हैं और शिक्षा प्रणाली में पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ाया जा सकता है।
यह नीति न केवल छात्रों को अपने पर्यावरण के प्रति सचेत बनाने में मदद करेगी, बल्कि भविष्य के लिए भारतीय समाज को एक साथ और स्थायी पर्यावरण की दिशा में अग्रसर करने में भी महत्त्वपूर्ण योगदान करेगी। आवश्यकता है, हमें साझेदारी, अनुसंधान और नवाचार के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने की। वन्य जीवों का अनुरक्षण, वनस्पति का संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के उचित प्रबंधन से ही हम स्वस्थ और समृद्ध समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस तरह हम न केवल अपने वर्तमान के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की रक्षा कर हम आत्मनिर्भर भारत, उन्नत भारत और विकसित भारत की कल्पना को साकार कर सकते हैं।
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