मुद्दा : हथियारों की होड़ चिंताजनक

Last Updated 27 Apr 2024 01:45:11 PM IST

शांति के तमाम उपायों के बीच दुनिया भर में सैन्य खर्च, शस्त्रीकरण एवं घातक हथियारों की होड़ खतरे की घंटी हैं। शस्त्रीकरण के भयावह दुष्परिणामों से समूचा विश्व भयाक्रांत है।


मुद्दा : हथियारों की होड़ चिंताजनक

हर पल आणविक हथियारों के प्रयोग को लेकर दुनिया डर के साये में जी रही है। इसीलिए आज अयुद्ध, निशस्त्रीकरण एवं शांति की आवाज चारों ओर से उठ रही हैं। शक्ति संतुलन के लिए शस्त्र-निर्माण एवं शस्त्र संग्रह की बात से किसी भी परिस्थिति में सहमत नहीं हुआ जा सकता क्योंकि इससे अपव्यय तो होता ही है, साथ ही गलत हथियारों के हाथों में पड़कर दुरुपयोग की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।

ताजा घटनाक्रम को देखें तो एक ओर रूस और यूक्रेन  आमने-सामने हैं, दूसरी तरफ इस्रइल और ईरान के बीच तल्खी भी चरम पर है। चीन और ताइवान के बीच भी रह-रह कर युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। ऐसे माहौल में सवाल स्वाभाविक है कि क्या सचमुच दुनिया तीसरे विश्व युद्ध की ओर बढ़ते हुए घातक हथियारों की प्रयोगभूमि बन रही है? सवाल और भी हैं। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की हथियारों पर ताजा रिपोर्ट ऐसे ही सवाल खड़े कर रही है। दुनिया सीधे-सीधे दो खेमों में बंट गई है। स्टॉकहोम की रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाने वाले ही नहीं, डराने वाले भी हैं। शांति के तमाम उपायों के बीच दुनिया भर में सैन्य खर्च का बढ़ना एवं नये-नये हथियारों का बाजार गरम होना, चिंताजनक है।

रिपोर्ट में खास बात यह है कि दुनिया में सर्वाधिक सैन्य खर्च करने वाले देशों में भारत चौथे नंबर पर बरकरार है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बन चुका है। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। भारत ने बीते पांच साल में दुनिया में सबसे ज्यादा हथियार खरीदे। रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोप का हथियार आयात 2014-18 की तुलना में 2019-23 में लगभग दोगुना बढ़ा है, जिसके पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध बड़ा कारण माना जा रहा है। इसके अलावा, पिछले पांच वर्षो में सबसे ज्यादा हथियार एशियाई देशों ने खरीदे। इस लिस्ट में रूस-यूक्रेन युद्ध ने देश के रक्षा निर्यात को काफी प्रभावित किया है। इस कारण पहली बार रूस हथियार निर्यात में तीसरे स्थान पर पहुंच गया है तो अमेरिका पहले और फ्रांस दूसरे नम्बर पर हैं। पिछले 25 सालों में पहली बार अमेरिका एशिया और ओशिनिया का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता रहा।

अमेरिका की हथियारों की होड़ एवं तकनीकीकरण की दौड़ पूरी मानव जाति को ऐसे कोने में धकेल रही है, जहां से लौटना मुश्किल हो गया है। अब तो दुनिया के साथ-साथ अमेरिका स्वयं ही हथियारों एवं हिंसक मानसिकता का शिकार है। अमेरिका ने दुनिया पर आधिपत्य स्थापित करने एवं अपने शस्त्र कारोबार को पनपाने के लिए जिस अपसंस्कृति को दुनिया में फैलाया है, उससे पूरी मानवता पीड़ित है। अमेरिका ने नई विश्व व्यवस्था (न्यू र्वल्ड ऑर्डर) की बात की है, खुलेपन की बात की है।

लगता है कि ‘विश्व मानव’ का दम घुट रहा है, और घुटन से बाहर आना चाहता है। विडंबना देखिए, अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक शक्तिशाली और सुरक्षित देश है, लेकिन उसके नागरिक सबसे अधिक असुरक्षित और भयभीत नागरिक हैं। वहां की जेलों में आज जितने कैदी हैं, दुनिया के किसी देश में नहीं हैं। कई वाकये हो चुके हैं कि किसी रेस्तरां, होटल या फिर जमावड़े पर अचानक किसी सिरफिरे ने गोलीबारी शुरू कर दी और बड़ी तादाद में लोगों को मार डाला। 2014 में अमेरिका में हत्या के दर्ज सवा चौदह हजार मामलों में अड़सठ फीसद मामलों में बंदूकों का इस्तेमाल किया गया था।

दरअसल, मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध एवं हथियारों की विभीषिका से मुक्ति दिलाना जरूरी है। युद्धरत देशों में शांति स्थापित कर, युद्ध-विराम करके विश्व को निर्भय बनाना चाहिए। निश्चय ही यह किसी एक या दूसरे देश की जीत नहीं, बल्कि समूची मानव-जाति की जीत होगी। यथार्थ यह है कि अंधकार प्रकाश की ओर चलता है, पर अंधापन मृत्यु-विनाश की ओर। रूस ने अपनी शक्ति एवं सामथ्र्य का अहसास गलत समय पर गलत उद्देश्य के लिए कराया है। युद्ध से तबाही रूस-यूक्रेन की नहीं, बल्कि समूची दुनिया की तबाही होगी, क्योंकि रूस परमाणु विस्फोट करने को विवश होगा जो दुनिया की बड़ी चिंता का सबब है। बड़े शक्तिसंपन्न देशों को युद्ध विराम के प्रयास करने चाहिए। लेकिन प्रश्न है कि जो देश हथियारों के निर्माता हैं, वे क्यों चाहेंगे कि युद्ध विराम हो। जब तक शक्तिसंपन्न देशों की शस्त्रों के निर्माण एवं निर्यात की भूख शांत नहीं होती तब तक युद्ध की आशंकाएं मैदान में, समुद्र में, आकाश में तैरती रहेंगी।

ललित गर्ग


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