दुबई : पानी में उतराता स्मार्ट शहर
दिसम्बर 2023 के दूसरे सप्ताह तक दुबई में संपन्न 28वें वैश्विक जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने चेताया था कि दुनिया तबाही के कगार पर है और यह सम्मेलन हमें आखिरी मौका देता है।
दुबई : पानी में उतराता स्मार्ट शहर |
उनकी यह बात 5 महीने बाद ही सच साबित हो गई है जब अरब अमीरात में दुनिया के आधुनिक शहरों में शुमार दुबई भीषण बारिश के कारण पानी में डूब रहा है। 16-17 अप्रैल को 24 घंटे में ही दुबई का रेगिस्तान पानी से लवालव हो गया। सड़कें, चौक चौराहे, दुकानों में पानी भर गया है। गत वर्ष भी दुबई में बाढ़ आई थी। समुद्री रेगिस्तानी देश में इस तरह से अचानक मौसम खराब होने से दुनिया भर के वैज्ञानिक चिंतित हैं क्योंकि यहां जितनी बारिश औसतन एक वर्ष में होती है, उसके बराबर 16-17 अप्रैल की सुबह तक हो गई है।
कैसे होती है कृत्रिम बारिश
रेगिस्तान के इस क्षेत्र में बाढ़ की वजह प्रकृति से छेड़छाड़ मानी जा रही है। यूएई की सरकारी न्यूज एजेंसी ‘वेम’ ने कहा है कि 1949 के बाद यह देश में रिकॉर्ड बारिश है। यह क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे गर्म और शुष्क क्षेत्र है और देश बारिश बढ़ाने के लिए ‘क्लाउड सीडिंग’ (Cloud Seeding) का इस्तेमाल भी करता है। यहां 2002 से क्लाउड सीडिंग प्रारंभ की गई थी। इस कृत्रिम बारिश की प्रक्रिया विमान या हेलीकॉप्टर का उपयोग करके बादलों में सिल्वर आयोडाइड या पोटेशियम आयोडाइड जैसे पदार्थो को शामिल कर किया जाता है।
आशंका है कि इस दौरान भी अधिकतम बारिश के लिए सीडिंग विमानों ने दो दिनों तक सात बार उड़ानें भरी हैं। इस पर सवाल उठ रहा है कि ऐसे रेगिस्तानी इलाके में इतनी बारिश ने जो कहर बरपाया क्या इसका कारण हो सकता है? क्योंकि पहले 12 घंटे में लगभग 100 मिलीमीटर बारिश के होने के बाद अगले 24 घंटे में 160 मिमी. बारिश दर्ज की गई जबकि दुबई शहर में सालाना औसत 88.9 मिमी. बारिश होती है।
विकास के नाम पर खड़े किए गए इस आधुनिक शहर ने दुनिया को संकेत दे दिया है कि अंधाधुंध छेड़छाड़ करने से प्रकृति का रौद्र रूप सामने आता है। इस तरह के शहरों के निर्माण में बेतरतीब इमारतें खड़ी की जाती हैं। जहां पानी की निकासी का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। दुखद है कि दुनिया भर में स्मार्ट शहरों के निर्माण में यही नकल हर देश कर रहा है। इस कारण पानी सूख रहा है और मनुष्य गलती से कृत्रिम बारिश का सहारा लेकर भी धरती के संतुलन शास्त्र को कभी ठीक नहीं कर सकता। विकसित देशों के प्राकृतिक संसाधन बुरी तरह प्रभावित हो गए हैं। उनमें से अधिकांश को पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है। विकासशील देशों की इच्छा है कि वे भी विकसित राष्ट्रों के पद चिह्नों पर चलकर अपने यहां पानी बेचने का बाजार सजाएं। इसी दृष्टिकोण से निवेशकों और पर्यटकों को प्राकृतिक संसाधनों की बिक्री के लिए खुली छूट दी जा रही है।
पश्चिम की तर्ज पर विकास के अंधानुकरण के चलते पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए कानूनों की धार कुंद की जा रही है। जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही गर्मी से आजीविका, स्वास्थ्य, समाज के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन रही है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भारत पर एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें जलवायु संकट के कारण 2011-20 के दशक को औसत से ज्यादा गर्मी और सर्वाधिक बारिश वाला रहा है। इस अवधि में जलवायु परिवर्तन की दर बढ़ी है जो रिकॉर्ड में सबसे अधिक है। एक शोध के मुताबिक उत्तर पश्चिमी भारत, पाकिस्तान, चीन और अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी तट के लिए यह दशक सबसे अधिक गर्म रहा है। ठंडे दिनों की संख्या लगातार घट रही है। पिछले दशक में 1961-90 के दशकों की तुलना में ठंडे दिन 40 प्रतिशत घटे हैं। भारत में बाढ़ की समस्या भी बढ़ गई है। जून, 2013 में भारी बारिश, पहाड़ों की बर्फ पिघलने की वजह से हिमालय क्षेत्र में बाढ़, भूस्खलन, भू-धंसाव की घटनाएं तेजी से बढ़ती जा रही हैं।
2022 तक आईपीसीसी (अंतरसरकार जलवायु परिवर्तन समिति) के 1850 के स्तर से दुनिया का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। अगर यह 1.7 से 1.8 डिग्री तक बढ़ता है तो दुनिया की आधी से अधिक आबादी का जीवन प्रचंड गर्मी बढ़ने से संकट में पड़ेगा। लंबी अवधि की बारिश और ठंड बढ़ेगी। इस सदी के अंत यानी 2100 तक धरती का तापमान 2.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है जबकि धरती पर जीवन बचाने के लिए तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए। इसलिए जलवायु सम्मेलन भी हर साल हो रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि लोग अपने हिस्से के जलवायु संकट से निपटने के लिए वास्तविक दिशा में कदम नहीं बढ़ा पा रहे हैं। कारण है कि विकसित देश प्रकृति का विनाश करके विकास के नाम पर जिस चकाचौंध को सामने लाए हैं, उसी राह पर विकासशील देश भी चल रहे हैं। इस तरह विकास के नाम पर एक दूसरे की नकल करने से दुबई जैसे हालात दुनिया के अन्य स्थानों पर भी पैदा होंगे।
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