बिगड़े बोल : निलंबन ही काफी नहीं
नये संसद भवन के प्रथम और ऐतिहासिक सत्र में 19 सितम्बर 2023 को लोक सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था,‘आज जब हम एक नई शुरुआत कर रहे हैं, तब हमें अतीत की हर कड़वाहट को भुलाकर आगे बढ़ना है।
बिगड़े बोल : निलंबन ही काफी नहीं |
स्पिरिट के साथ जब हम यहां से, हमारे आचरण से, हमारी वाणी से, हमारे संकल्पों से जो भी करेंगे, देश के लिए, राष्ट्र के एक-एक नागरिक के लिए वो प्रेरणा का कारण बनना चाहिए और हम सबको इस दायित्व को निभाने के लिए भरसक प्रयास भी करना चाहिए।’ प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था,‘हमें सारा राष्ट्र देख रहा है। इसलिए हम सभी को संसदीय परंपराओं की लक्ष्मण रेखा का अनुसरण करना चाहिए।’
लेकिन प्रधानमंत्री की सांसदों से की गई इन अपेक्षाओं को दो दिन के अंदर भाजपा के अपने ही सांसद रमेश बिधूड़ी ने तार-तार कर दिया। 21 सितम्बर को विशेष सत्र के दौरान लोक सभा में कुछ ऐसा हुआ जिसकी मिसाल भारतीय संसदीय इतिहास में शायद ही मिलेगी। बिधूड़ी ने चंद्रयान-3 की उपलब्धियों पर चर्चा के दौरान बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली के साथ जो व्यवहार किया वह किसी गुंडई से कम नहीं। बिधुड़ी के अति अशोभनीय शब्दों को भले ही लोक सभा की कार्यवाही से हटा दिया गया हो मगर भारतवासियों के दिलोदिमाग से कोई भी कैसे हटा पाएगा? स्ांसद में हंगामा, नारेबाजी, गरमागरम बहसें, अराजक स्थिति और कभी-कभी आक्रोशित कटु टिप्पणियां नई बात नहीं हैं। छीनाझपटी के कारण एक बार महिला आरक्षण बिल पेश नहीं हो पाया था। इसलिए अब प्रधानमंत्री ने इस तरह के आचरण को पुराने संसद भवन में ही छोड़ने का आह्वान किया था।
ऐसी अवांछित घटनाओं के कारण लोक सभा के पहले स्पीकर जीवी मावलंकर, जिन्हें पीठासीन पदाधिकारियों के लिए आदर्श और अनुकरणीय माना जाता है, ने 15 मई, 1952 को पहली कार्यवाही से पहले कहा था कि सदन में, ‘बहस के उपयोगी, सहायक और प्रभावी होने के लिए खेल भावना, आपसी सद्भावना और सम्मान का माहौल आवश्यक शर्त है।’ लेकिन तब से लेकर अब तक सदन का परिदृश्य ही बदल गया है। जब बिधूड़ी धमकी और गाली-गलौच पर उतर रहे थे तो कुछ सदस्य ठहाके लगा रहे थे।
यद्यपि समाज में लाखों की संख्या में ‘बिधूड़ी’ मौजूद हैं, जो अपने जहरीले विचारों से समाज का महौल बिगाड़ने का प्रयास करते रहते हैं। बिधूड़ी की दुर्भावना का इस तरह संसद में प्रकट होना अत्यंत चिंताजनक है। इसलिए भाजपा द्वारा बिधूड़ी को महज कारण बताओ नोटिस जारी करना नाकाफी होगा। लोक सभा स्पीकर द्वारा रमेश बिधूड़ी को चेतावनी देना और उनके शब्द कार्यवाही से हटाना काफी नहीं है। उनकी सदस्यता निलंबित करना भी काफी नहीं है क्योंकि अनुशासनहीनता पर सदस्यों का निलंबन होता रहता है। पर यह अनुशासनहीनता नहीं है, बल्कि गुंडई है, जिसकी सजा अदालत के हाथ में न होकर मास्टर ऑफ द हाउस, स्पीकर के हाथ में है, या सदन के पास है।
संविधान स्पीकर या लोक सभा को अपने सदस्यों को निलंबित करने का ही नहीं, बल्कि उनकी सदस्यता समाप्त करने का अधिकार भी देता है। संविधान लागू होने के अगले ही साल 1951 में एजी मुल के साथ ऐसा हो चुका है। तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के इस सदस्य पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप था और उनकी सदस्यता की समाप्ति का नेहरू ने पुरजोर समर्थन किया था। 15 नवम्बर, 1976 को सुब्रह्मण्यम स्वामी को देश से बाहर जाकर संसद को लेकर गलत कमेंट करने की वजह से राज्य सभा से निकाल दिया गया। 18 नवम्बर, 1977 को इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रधानमंत्री रहते हुए पद के दुरु पयोग और कई अन्य आरोपों के चलते अविश्वास प्रस्ताव लाया गया तथा संसदीय समिति की जांच के बाद 18 दिसम्बर, 1978 को इंदिरा के खिलाफ वोटिंग हुई और उनकी सदस्यता छीन ली गई।
2005 में नोट फॉर क्वेरीज मामले में लोक सभा में एक स्पेशल कमेटी गठित हुई थी। कमेटी ने पैसा लेकर संसद में सवाल पूछने वाले 10 लोक सभा सांसदों के खिलाफ जांच की और फिर उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई। इनमें 10 सदस्य लोक सभा के थे और एक राज्य सभा का था। इन 10 सदस्यों में 6 बीजेपी के, 3 बसपा के और एक-एक आरजेडी और कांग्रेस के थे। 2016 में विजय माल्या को भी एथिक्स कमेटी की जांच के बाद राज्य सभा से निकाल दिया गया था। संसद से किसी संप्रदाय के खिलाफ विषवमन करना और एक सांसद से निपट लेने की धमकी देना गंभीर अपराध है,और ऐसे व्यक्ति के सांसद रहने या न रहने पर अवश्य विचार होना चाहिए।
बिधूड़ी का यह आचरण पहली बार सामने नहीं आया। इसी साल अगस्त में उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बौना दुर्योधन बता कर बवाल खड़ा किया था। 2015 में पांच महिला सांसदों-रंजीत रंजन (कांग्रेस), सुष्मिता देव (तब कांग्रेस के साथ), सुप्रिया सुले (एनसीपी), अर्पिता घोष (तृणमूल कांग्रेस) और पीके श्रीमती टीचर (सीपीआई-एम) ने लोक सभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन के समक्ष बिधूड़ी द्वारा उनसे गाली-गलौच की शिकायत दर्ज कराई थी। 2019 के लोक सभा चुनाव में केजरीवाल के खिलाफ बार-बार अपशब्दों का प्रयोग करने पर आप नेता राघव चड्ढा की शिकायत पर निर्वाचन आयोग ने बिधूड़ी को नोटिस जारी किया था। बिधूड़ी ने 2017 में कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और बसपा सुप्रीमो पर भी आपत्तिजनक टिप्पणियां कर विवाद खड़ा किया था।
लोक सभा हो या राज्य सभा या विधानसभा, सभी सदनों की अपनी आचरण नियमावली होती है। सदस्यगण शब्दावली-अनुशासन से भी बंधे होते हैं। एक बार स्वयं स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा था कि असंसदीय शब्दों की डिक्शनरी पहली बार 1954 में जारी की गई थी। इसके बाद यह 1986, 1992, 1999, 2004, 2009, 2010 में जारी की गई। 2010 के बाद से इसे हर साल जारी किया जा रहा है। नवीनतम बुकलेट में 1100 पेज हैं। यह लिस्ट लोक सभा-राज्य सभा के साथ ही विधानसभा की कार्यवाहियों के दौरान असंसदीय घोषित किए गए शब्दों को मिलाकर बनती है। चूंकि बिधूड़ी की शब्दावली इतनी निम्न स्तर की है जो असंसदीय शब्दों की डिक्श्नरी में नहीं समा पाएगी इसलिए बिधूड़ी को यथोचित ‘इनाम’ मिलना चाहिए।
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