जी-20 : दुविधा में रही कांग्रेस
राजधानी नई दिल्ली में आयोजित जी-20 सम्मेलन की सफलता को लेकर किसी ओर से कोई प्रश्न नहीं उठा है।
जी-20 : दुविधा में रही कांग्रेस |
ज्यादातर देशों के नेताओं और राजनयिकों ने भारत की अध्यक्षता, इसकी तैयारी, व्यवस्था, विश्व के छोटे से बड़े प्रासंगिक मुद्दों को समाधानपरक दृष्टि से उठाने तथा सभी देशों के बीच सहमति बनाने में मिली सफलता की प्रशंसा की है। हालांकि देश के अंदर विपक्ष की ओर से इसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है। ऐसा नहीं है कि विपक्ष ने सम्मेलन को असफल बताया या प्रधानमंत्री के भाषण या किसी अन्य पहलू को लेकर बड़े प्रश्न उठाए, किंतु जिस तरह पूरी दुनिया ने भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति और विरासत को समझते हुए विश्व स्तर पर उसकी नेतृत्व क्षमता को स्वीकार किया है, उसी तरह की प्रतिध्वनि भारत के अंदर भी होनी चाहिए थी।
विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के सर्वमान्य शीर्ष नेता राहुल गांधी विदेश में रहे और वहां से मोदी सरकार को अल्पसंख्यक, दलित, कमजोर वर्ग का विरोधी साबित करते रहे। वे पहले भी ऐसा कर चुके हैं। जब स्वयं राहुल गांधी ही जी-20 के इतने बड़े अवसर पर सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रहे थे तो फिर उनकी पार्टी के अन्य नेता ऐसा कैसे कर सकते। परिणामस्वरूप कांग्रेस समझ नहीं पाई कि उसे भारत में आए विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली नेताओं वाले इस सम्मेलन पर क्या स्टैंड लेना चाहिए? क्या सबसे ज्यादा समय तक केंद्र की शासन में रहने वाली और विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी का यह रुख उचित माना जाएगा? हालांकि संपूर्ण कांग्रेस या विपक्ष ने इसी तरह की भूमिका निभाई ऐसा नहीं है।
जी-20 सम्मेलन के पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक विस्तृत साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने भारत की विदेश नीति की प्रशंसा की। उन्होंने यह भी कहा कि अपने जीवन में जी-20 की अध्यक्षता करते भारत को देखना मेरा सौभाग्य है। इसी तरह, कांग्रेस के नेता शशि थरूर ने स्वीकृत दिल्ली घोषणा पत्र को भारत की कूटनीतिक जीत बता दिया। यह प्रधानमंत्री मोदी की शैली है जिसमें वह हर अवसर को श्रेष्ठतम तरीके से करते हुए जनता और विश्व के बीच भारत, सरकार आदि के संदर्भ में जो कुछ संदेश देना चाहते हैं, उसमें अपनी ओर से कोई कमी नहीं छोड़ते।
इससे अगर विपक्ष को समस्या है तो उसे भी प्रधानमंत्री मोदी और उनके नेतृत्व में सरकार और भाजपा की कार्यशैली से सीखना चाहिए। अगर देश में वैचारिक रूप से नरेन्द्र मोदी, भाजपा और संघ को लेकर निर्मिंत की गई विकृत धारणाएं न हों तथा इनको दुश्मन मानकर व्यवहार करने वाले लोग क्षण भर बैठकर भी ईमानदारी से अपने रवैया पर विचार करें तो काफी कुछ बदल सकता है, लेकिन जब आप यह मान लेते हैं कि मोदी, उनका संगठन और मातृत्व संगठन सब बुरे हैं, उनके पास कुछ अच्छा है ही नहीं, ये हमेशा नफरत की सोच रखते हैं और वही व्यवहार करते हैं तो फिर आप कुछ नहीं सीख सकते। यह ऐसा अवसर था जिसे कांग्रेस और दूसरे विपक्ष चाहते तो अपनी राजनीति के लिए भी सकारात्मक उपयोग कर सकते थे। वह इस आयोजन के सहभागी बनते भी दिख सकते थे,आयोजन की सफलताओं को लेकर वक्तव्य दे सकते थे, अपनी ओर से भी दुनिया भर से आए नेताओं का भारत में स्वागत की घोषणा कर सकते थे, मगर वह ऐसा नहीं कर सकी। इससे विपक्ष की एक जिम्मेदार सकारात्मक और राष्ट्रवादी होने की छवि बनती। विश्व के नेता भी यह संदेश लेकर जाते कि भारत का विपक्ष वाकई उत्तरदायित्वपूर्ण है।
बिहार, बंगाल, झारखंड, हिमाचल, तमिलनाडु आदि के मुख्यमंत्री राष्ट्रपति द्वारा आयोजित भोज में शामिल हुए। प्रधानमंत्री मोदी की हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखिवंदर सुक्खू के कंधे पर हाथ रखी और विदेशी नेता से मिलती तस्वीरें वायरल भी हुई। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, हेमंत सोरेन के साथ केंद्रीय मंत्रियों की तस्वीर भी सामने आई। राष्ट्रपति के निमंतण्रका सम्मान देकर इन्होंने भारतीय राजनीति की गरिमा को बचाया है। ऐसा ही कांग्रेस के और विपक्ष के दूसरे मुख्यमंत्रियों ने नहीं किया। अभी व्हाइट हाउस की एक महिला अधिकारी का वक्तव्य इंडिया एब्रॉड सर्विस के माध्यम से दुनिया भर में चल रहा है जिसमें वह कह रही हैं कि उन्होंने राहुल गांधी की कुछ बातें सुनी हैं। वह अपने देश की विदेश में आलोचना करते हैं, जो ठीक नहीं है। उस महिला ने यह भी कहा कि मुझे आश्चर्य है कि भारत के लोग फिर भी उन्हें वोट देते हैं। कांग्रेस की रणनीति है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह विश्व भर में अपनी छवि बनाई और संपर्क विस्तार किया है उसके समानांतर राहुल गांधी को खड़ा होना है तो उन्हें ऐसे अवसरों पर विदेश में जाकर बात करनी चाहिए ताकि कांग्रेस और वे चर्चा मे रहें।
इस रणनीति को उचित नहीं माना जा सकता। सच कहें तो आईएनडीआईए गठबंधन के ज्यादातर घटक ने एक बड़े अवसर को गंवा दिया है। राहुल गांधी ब्रुसेल्स, पेरिस और ओस्लो में यह कह रहे थे कि भाजपा, आरएसएस और मोदी सरकार अल्पसंख्यक को दलित और कमजोर लोगों की अभिव्यक्ति पर अंकुश लगा रही है, विपक्ष को महत्त्व नहीं दे रही है। वस्तुत: वे यह बता रहे थे कि भारत में एक फासिस्ट शासन है, जो एक ही मजहब व विचार को आरोपित करता है और दूसरे मजहब और विचार को स्वीकार नहीं करता। दूसरी ओर, विश्व के नेता मान रहे हैं कि भारत ने प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में जी-20 में ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों को महत्त्व देकर, उनके साथ विचार-विमर्श कर और अफ्रीकी संघ को शामिल कराकर इसे ज्यादा लोकतांत्रिक और सर्व समावेशी बनाया है। तो जो नेतृत्व विश्व संस्था को ज्यादा लोकतांत्रिक और समावेशी बनाने का व्यवहार कर रहा है, वह अपने देश में अलोकतांत्रिक और एकाधिकारवादी होगा यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है?
जी-20 के बाद तो इन नेताओं के मन पर मोदी और उनकी सरकार के बारे में जबरदस्त धाक जमी है। उदाहरण के लिए इटली की प्रधानमंत्री जिओर्जिया मेलोनी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे चहेते नेता हैं। यह बात साबित हो चुकी है कि वाकई वह विश्व के कितने बड़े नेता हैं। इसके लिए उन्हें बहुत-बहुत बधाई। इस तरह की छवि मन में लेने वाले नेता मानेंगे कि राहुल गांधी एक नकारात्मक व्यक्ति हैं, जो महत्त्वपूर्ण अवसर पर भी विदेश में जाकर केवल अपने देश की आलोचना करते हैं। कांग्रेस और विपक्ष जितनी जल्दी यह समझ जाएं उतना उनके एवं देश की राजनीति के लिए भी अच्छा होगा।
| Tweet |