UCC लागू करने की तैयारी पूरी है
केंद्र सरकार की गतिविधियों को देखने के बाद संदेह नहीं रहना चाहिए कि समान नागरिक संहिता (UCC) संबंधी विधेयक संसद में शीघ्र प्रस्तुत किया जाएगा।
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विधि व न्याय, कार्मिंक और जन शिकायत मामलों की संसदीय समिति में विधि आयोग के सदस्यों एवं कानून मंत्रालय के अधिकारियों का शामिल होना संकेत है कि सरकार इस दिशा में तेजी से बढ़ रही है।
ध्यान रखिए, 22वें विधि आयोग ने केंद्र सरकार को परिवार कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया था। विधि आयोग ने इतना अवश्य कहा था कि इस समय यूसीसी की जरूरत नहीं है किंतु अगस्त, 2018 में आयोग ने सामग्री रिपोर्ट नहीं पेश की क्योंकि उसके पास समय नहीं था। आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष न्यायमूर्ति सेवानिवृत्त बीएस चौहान (BS Chauhan) ने कहा था कि समान संहिता की अनुशंसा करने की बजाय आयोग चरणबद्ध बदलाव की अनुशंसा कर सकता है। स्पष्ट है कि 21वें विधि आयोग के मत को गलत संदर्भ और तथ्यों के साथ उद्धृत किया जाता है। 22वें विधि आयोग द्वारा UCC पर परामर्श मांगने के बाद इन पंक्तियों के लिखे जाने तक की सूचना के अनुसार 19 लाख से ज्यादा सुझाव आ चुके थे। 22वें विधि आयोग को 3 चरणों में 77 हजार के आसपास सुझाव मिले थे।
विधि आयोग ने परिवार कानून और पर्सनल लोन में संशोधन के जो सुझाव दिए थे, वो यूसीसी की ही आधारभूमि तैयार करने वाले थे। ऐसा भी नहीं है कि सब कुछ इस बैठक के बाद ही निर्धारित होगा। विधि आयोग के पूर्व के सुझाव, अलग-अलग संस्थाओं द्वारा यूसीसी के बनाए गए दस्तावेज पर पहले से काम हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने भोपाल (Bhopal) में देश भर के बूथस्तरीय पार्टी कार्यकर्ताओं से संवाद में साफ कहा था कि एक परिवार में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग कानून नहीं चल सकता। उन्होंने संविधान में स्थान देने तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा बार-बार यूसीसी बनाने का निर्देश देने के बावजूद अब तक ऐसा न किए जाने को लेकर पूर्व की सरकारों एवं विपक्ष की तीखी आलोचना की थी।
विरोधी पार्टियों का आरोप है कि सरकार चुनावी राजनीति की दृष्टि से इसका उपयोग कर रही है। इसे एक समुदाय यानी मुसलमानों (UCC against Muslim) के विरुद्ध बताया जा रहा है। कुछ मुस्लिम संगठन और नेता इसे उनके मजहब में हस्तक्षेप बता रहे हैं। अब तक की सरकारें इस दिशा में बढ़ने से बचती रहीं। यूसीसी को लेकर मुसलमानों के अंदर भय पैदा किया जाता है कि यह धार्मिंक मामलों में हस्तक्षेप है, और सरकार इस्लामिक कर्मकांडी पद्धतियों का कानूनी निषेध कर ऐसी व्यवस्था आरोपित करना चाहती है, जो इस्लाम विरोधी होगी। 1985 के शाहबानो मामले के बाद तो सरकारों ने मुस्लिमों से जुड़ी समस्याओं पर विचार करना ही बंद कर दिया।
हालांकि हर विवेकशील व्यक्ति को इसका आभास है कि मुस्लिम समाज को भी प्रगति की मुख्यधारा में लाने के लिए मजहबी कर्मकांड एवं परंपराओं में हस्तक्षेप छोड़कर यूसीसी की परिधि में लाना आवश्यक है। किंतु ऐसा करने का साहस किसी ने नहीं जुटाया। मोदी सरकार ने साहसी आचरण किया है। एक साथ तीन तलाक व्यवस्था को कानूनी रूप से अपराध बना दिया गया। अनेक इस्लामिक संस्थाओं, कट्टरपंथियों ने इसे भी इस्लाम विरोधी साबित करने की कोशिश की। दुर्भाग्यवश राजनीतिक पार्टियों ने भी उनका समर्थन किया। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि यह इस्लामी मजहब के अनुरूप नहीं है। विरोधियों ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को भी इस्लाम विरोधी करार दिया।
पर्सनल लॉ बोर्ड का स्टैंड उच्चतम न्यायालय और मोदी सरकार के विरुद्ध ठीक ऐसा ही था। इसके राज्य सभा में पारित होने को लेकर संदेह था क्योंकि मोदी सरकार को वहां बहुमत नहीं है। उस समय भी कई हलकों की टिप्पणियां थीं कि सरकार इसे राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहती है, क्योंकि पारित तो होना नहीं है। सरकार ने संकल्प दिखाया तो कानून बन गया। जम्मू कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 को भी एक वर्ग ने मुसलमानों से जोड़ दिया था। किसी को कल्पना नहीं थी कि मोदी सरकार इसे प्रभावहीन बनाने वाला विधेयक दोनों सदनों से पारित करा लेगी। इसलिए संसद के गणित को आधार बनाकर निष्कर्ष निकालना व्यावहारिक नहीं होगा कि यूसीसी पारित करना संभव नहीं।
मोदी सरकार इस विषय पर लगातार काम कर रही है। यह ऐसा विषय है जिसमें भाजपा और विरोधी दलों के बीच एकता कायम होना संभव नहीं लगता। आम आदमी पार्टी ने संहिता का समर्थन किया है। अलबत्ता, उसने व्यापक विचार-विमर्श एवं परामर्श की बात कही है। लगभग यही बात बसपा प्रमुख मायावती ने भी कही है। शिवसेना उद्धव के नेता संजय राउत ने कहा है कि उनकी पार्टी हमेशा इसके समर्थन में रही है और दिवंगत बाला साहेब ठाकरे भी इसके पक्ष में थे। वैसे भी यूसीसी जनसंघ, भाजपा, संघ या हिन्दू संगठनों का ही एजेंडा नहीं रहा है। वामपंथी पार्टयिां हमेशा यूसीसी कानून की मांग करती रही हैं। समाजवादियों की प्रमुख धारा विशेषकर डॉ. राम मनोहर लोहिया को मानने वाले इसके पक्ष में रहे हैं। कांग्रेस में भी एक समूह मानता रहा है कि यूसीसी होना चाहिए। इसलिए इसके समर्थन करने में नैतिक बाधा या वैचारिक हिचक का आधार नहीं है। यह स्थिति हमने तीन तलाक और धारा 370 संबंधी विधेयकों के दौरान भी देखी।
ऐसे विवादास्पद मामलों में मोदी सरकार का फ्लोर प्रबंधन अतुलनीय रहा है। मोदी ने उन दलों का भी समर्थन प्राप्त किया जिनसे उम्मीद नहीं थी। यूसीसी के मामले में ऐसा नहीं होगा, कैसे कहा जा सकता है? यूसीसी के संदर्भ में हिन्दू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) से लेकर आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं, पूर्वोत्तर के राज्यों के स्तर पर नागालैंड, मिजोरम में इसके असर का प्रश्न उठाया जा रहा है। इस बीच न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित पांच सदस्यीय समिति ने संहिता पर मसौदा तैयार कर सरकार को सौंप दिया है। इस मसौदे में की गई सिफारिशें उत्तराखंड सरकार लागू करती है, तो गोवा के बाद यूसीसी लागू करने वाला यह दूसरा राज्य होगा। न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने कहा है कि हमने हर चीज पर विचार किया है, और यह देश के सेक्युलर ताने-बाने को मजबूत करेगा। न्यायमूर्ति देसाई का यह वक्तव्य भले ही कुछ लोगों के गले नहीं उतरे किंतु सच यही है।
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