सामयिक : अमेरिका का पाकिस्तान प्रेम
आप इस प्रकार की बातें कहकर किसी को मूर्ख नहीं बना सकते। हर कोई जानता है कि एफ-16 का कहां और किसके खिलाफ इस्तेमाल किया जाता है।’
सामयिक : अमेरिका का पाकिस्तान प्रेम |
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने यह बात अमेरिकी धरती पर खड़े होकर कही। बीती 25 तारीख को भारतीय अमेरिकी समुदाय की ओर से वाशिंगटन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कुछ लोगों ने उनसे पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिका के रखरखाव पैकेज के संबंध में सवाल पूछा था। यह उसी का जवाब था।
अमेरिका या तो निर्मम तानाशाह है अथवा विशुद्ध व्यापारी। यही कारण है कि भारत द्वारा आपत्ति दर्ज काराए जाने पर उसकी तरफ से जवाब आया कि यह मदद पाकिस्तान की काउंटर-टेररिज्म क्षमता में वृद्धि के लिए दी जा रही है। सवाल उठता है कि क्या वास्तव में पाकिस्तान 450 मिलियन डॉलर की मदद से एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड कर अपनी काउंटर-टेरेरिज्म क्षमता में वृद्धि करेगा या फिर भारत के साथ छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) को प्रभावी बनाने में? एक बात और, वर्ष 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान को दी जाने वाली 2 अरब डॉलर की सुरक्षा सहायता यह कहते हुए स्थगित कर दी थी कि पाकिस्तान अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकी समूहों पर कारगर कार्रवाई करने में विफल रहा है। तो क्या अब बात गलत साबित हो चुकी है? क्या पाकिस्तान का आतंकवाद कनेक्शन अब नहीं रहा? यदि हां, तो फिर जवाहिरी का पता पाकिस्तान को कैसे मालूम था? यदि हां, तो आज भी पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से लेकर दर्जनों आतंकवादी संगठन सीना फुलाए क्यों घूम रहे हैं? आखिर, बाइडेन प्रशासन पाकिस्तान पर इतना मेहरबान क्यों हो रहा है?
अमेरिकी प्रशासन की तरफ से दिया जा रहा तर्क पूरी तरह से आधारहीन और तथ्यहीन है, यह पूरी दुनिया जान रही है और अमेरिका के लोग भी। लगता है कि बाइडेन तो 9/11 से लेकर अब तक अफगानिस्तान-पाकिस्तान समीकरण को भी याद नहीं रख पा रहे हैं। या ऐसा करना नहीं चाहते। फिर तो अमेरिका को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को समाप्त घोषित कर देना चाहिए क्योंकि 450 मिलियन डॉलर की मदद पाकिस्तान पोषित आतंकवाद को नई ऊर्जा ही नहीं नई टैक्टिस भी प्रदान कर सकता है। ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि अमेरिका ने ऐसा फैसला लेते समय भारतीय हितों की चिंता क्यों नहीं की जबकि भारत अमेरिका का ‘मेजर डिफेंस पार्टनर’ है। कुछ विश्लेषक कह सकते हैं कि अमेरिका पाकिस्तान को अल जवाहिरी को मरवाने के बदले में पुरस्कार दे रहा है लेकिन अमेरिकी प्रशासन क्या इसके माध्यम से यह साबित नहीं कर रहा है कि अमेरिका ने अब आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की दिशा मोड़ दी है। अब उसका रवैया आक्रामक नहीं, बल्कि सहयोगात्मक है।
लगता है कि बाइडेन ने भारत को देखने वाला चश्मा बदला नहीं है, वे अभी भी भारत को 1990 के दशक वाले चश्मे से देख रहे हैं। इसलिए जान नहीं पा रहे कि दुनिया ने भारत को देखने का नजरिया बदल लिया है। भारत आज कॉन्टिनेंटल और मैरीटाइम पॉवर है। बाइडेन शायद यह भी भूल गये हैं कि दोनों देशों का रक्षा सहयोग ठोस सामरिक आधार पर विकसित हुआ है। यहां इसकी एक छोटा सा अनुरेखण आवश्यक प्रतीत होता है। दरअसल, पोकरण 2 के बाद भारत-अमेरिका संबंधों की खाई चौड़ी होने के बाद बिल क्लिंटन की यात्रा के साथ दोनों के बीच संबंधों का सामान्यीकरण आरंभ हुआ था। इसी दौर में अमेरिका ने भारत के सामने 4 फाउंडेशनल समझौतों की पेशकश की जो अटल बिहारी वाजपेयी रेजीम से शुरू हुए और नरेन्द्र मोदी रेजीम में ‘2 प्लस 2 वार्ता’ के बाद ‘बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशयल कोऑपरेशन (बेका) यानी अंतिम फाउंडेशनल समझौते तक पहुंचे। यह वाजपेयी रेजीम के भारत-अमेरिका के ‘स्वाभाविक सहयोगी’ से मोदी-ट्रंप रेजीम में प्रमुख रणनीतिक साझीदार तक की यात्रा थी जिसे 21वीं सदी की दुनिया में नई विश्व व्यवस्था के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभानी थी। आयाम थे।
पहला-भारत और अमेरिका भविष्य में महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील खुफिया जानकारी साझा करेंगे और दूसरा, भारत अमेरिका से सबसे उन्नत हथियार और उपकरण खरीद सकेगा। कूटनीति के इस उद्विकास क्रम में रक्षा पर विशेष फोकस की कुछ वजहें रहीं जिनमें प्रमुख थी-बदल रही विश्व व्यवस्था (वर्ल्ड ऑर्डर)। इन्हें रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने, सीरिया में चल रहे संघर्ष और प्रशांत महासागर में चीनी आक्रामकता अथवा इंडो-प्रशांत में भारत-अमेरिका-जापान-ऑस्ट्रेलिया के बीच बन रहे रणनीतिक चतुर्भुज (क्वाड) में देखा जा सकता है। रूस-यूक्रेन युद्ध को भी इसी श्रृंखला में एक कड़ी माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में आवश्यक हो जाता है कि दो देशों (विशेषकर उनके जो विश्व व्यवस्था में अपना स्थान बरकरार रखना चाहते हैं) के बीच स्थापित संबंधों को मुख्य रूप से रक्षा और सामरिक रणनीति की तैयारियों की ओर मोड़ दिया जाए। भारत और अमेरिका ने यही किया भी। नि:संदेह इससे भारत का लाभ मिला। अमेरिका भारत को एसटीए-1 (कंट्रीज एनटाइटल्ड टू स्ट्रैटेजिक ट्रेड अथॉराइजेशन) की श्रेणी प्रदान कर चुका है, जो पहली बार किसी गैर-नाटो देश के रूप में भारत को दी गई है।
कुल मिलाकर बाइडेन प्रशासन का पाकिस्तान प्रेम कुछ और ही संकेत कर रहा है। वह भूल रहा है कि उसके इस पाकिस्तान प्रेम से 9/11 के बाद शुरू हुए ‘वॉर इंड्यूरिंग फ्रीडम’ की हवा निकल जाएगी। शायद यह भी भूल रहा है कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया अमेरिकी वर्चस्ववाद को समाप्त करने में सफल रही है। आगे उसके लिए हर कदम पर कांटे होंगे और सबसे पहला कांटा पाकिस्तान नाम से चुभेगा।
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