उभर रहीं कृषि चुनौतियां

Last Updated 15 Sep 2022 01:46:38 PM IST

यद्यपि इस बार पूरे देश में मानसून की बारिश सामान्य से नौ प्रतिशत अधिक रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मणिपुर जैसे राज्यों में सामान्य से कम बरसात होने से कृषि परिदृश्य पर परेशानियां दिखाई दे रही हैं।


उभर रहीं कृषि चुनौतियां

इन प्रदेशों में खरीफ सीजन की खेती प्रभावित हुई है, और खास तौर से धान उत्पादन के लक्ष्यों के साथ-साथ आगामी रबी  फसलों के रिकॉर्ड उत्पादन संबंधी चिंताएं दिखाई दे रही हैं। ऐसे में इस विषय पर सात सितम्बर को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में हुए राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन-2022 में रणनीतिक कदम आगे बढ़ाने पर मंथन किया गया।

गौरतलब है कि अगस्त, 2022 के अंत में पाया गया है कि देश में खरीफ सीजन की बोआई अंतिम दौर में पहुंचने के बावजूद चालू सीजन में फसलों का कुल रकबा पिछले साल 2021 की अपेक्षा थोड़ा कम है। हाल ही में कृषि मंत्रालय एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक दो सितम्बर तक देश में खरीफ फसलों का कुल रकबा 1.6 फीसदी घटकर 1045.14 लाख हेक्टेयर रह गया है जबकि पिछले साल इस समय तक 1061.92 लाख हेक्टेयर में फसलों की बोआई हुई थी।

उल्लेखनीय है कि धान उत्पादक राज्यों में बारिश कम होने के कारण चालू खरीफ सत्र में अब तक धान फसल का रकबा 5.62 प्रतिशत घटकर 383.99 लाख हेक्टेयर रह गया है। एक साल पहले की समान अवधि में धान की बोआई 406.89 लाख हेक्टेयर में की गई थी। धान मुख्य खरीफ फसल है, और इसकी बोआई जून से दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरु आत के साथ शुरू होती है, और अक्टूबर से कटाई की जाती है। लेकिन धान की फसल के विपरीत कपास की बोआई में जोरदार बढ़ोतरी हुई है। चालू सीजन में अगस्त माह के अंत तक देश भर में कपास का रकबा 6.81 फीसदी बढ़कर 125.69 लाख हेक्टेयर पहुंच गया जो पिछले साल समान अविध में 117.68 लाख हेक्टेयर था। कपास का बोआई क्षेत्र सामान्य क्षेत्र 125.57 लाख हेक्टेयर के भी पार पहुंच गया। धान के अलावा चालू खरीफ सत्र में अगस्त माह के अंत तक 129.55 लाख हेक्टेयर के साथ दलहन की बोआई में मामूली गिरावट आई है।

गौरतलब है कि वर्ष 2022 में असमान मानसून और मानसून की बेरु खी ने आगामी रबी सीजन की फसलों के लिए भी गंभीर चुनौती पैदा कर दी है। मिट्टी में नमी की कमी देश के पूर्वी राज्यों में रबी की खेती और जलवायु परिदृश्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। ऐसे में मूडी’ज इनवेस्टर सर्विस (मूडी’ज) ने देश में बढ़ती ब्याज दरों और असमान मानसून के कारण भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को घटा दिया है। इससे पहले मूडी’ज ने मई, 2022 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8.8 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया था, जिसे अब घटाकर 7.7 फीसदी कर दिया है। निश्चित रूप से इस बार के असमान मानसून और मानसून की बेरु खी के कारण देश की कृषि के सामने जो गंभीर चुनौतियां निर्मिंत हो गई हैं, उनसे निपटने के लिए सरकार द्वारा शीघ्रतापूर्वक रणनीतिक तैयारी जरूरी है। जहां अभी रबी सीजन में खेती की तैयारियों में तेजी लाने के प्रयास करने होंगे वहीं खरीफ सीजन की मानसून से प्रभावित खेती के मद्देनजर आवश्यक उपाय भी सुनिश्चित करने होंगे।

इस समय सरकार ने छोटी जोत की चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक खेती के कॉन्सेप्ट को लागू किए जाने के साथ-साथ कम लागत वाली खेती को प्रोत्साहित करते हुए प्राकृतिक और जैविक खेती को भी आगे बढ़ाने का जो अभियान चलाया है, उसे आगे बढ़ाना होगा। यह महत्त्वपूर्ण है कि देश में दलहन और तिलहन की उन्नत खेती में लैब टू लैंड स्कीम के प्रयोग और वैज्ञानिकों की सहभागिता के साथ नीतिगत समर्थन की नीति से तिलहन मिशन को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। देश में उन्नत प्रजाति के बीजों की आपूर्ति के लिए केंद्र सरकार दलहनों और  तिलहनों के किसानों को मुफ्त मिनी किट बांट रही है। इसके लिए जलवायु आधारित चिह्नित गांवों को दलहन गांव घोषित किया गया है, जहां अनुसंधान केंद्रों के विज्ञानियों की देखरेख में दलहनी और तिलहनी फसलों की खेती की जा रही है। ऐसे प्रयासों को कारगर बनाया जाना होगा।

निश्चित रूप से भारत को कृषि में लगातार आगे बढ़ने के लिए अभी खाद्यान्न के अलावा अन्य सभी खाद्य उत्पादनों में आत्मनिर्भरता के लिए मीलों चलने की जरूरत हैं। खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने 11,000 करोड़ रुपये की लागत से जिस महत्त्वाकांक्षी तिलहन मिशन की शुरुआत की है, उसे पूर्णतया सफल बनाने की जरूरत है। तिलहन उत्पादन के लिए नये कदम उठाए जाने होंगे। तिलहन फसलों का रकबा बढ़ाने के साथ ही उत्पादकता बढाने के लिए विशेष जोर जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) उन्नत प्रजाति के हाइब्रिड बीजों पर देना होगा। तिलहनी फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना होगा। कृषि में डिजिटलीकरण बढ़ाना होगा। किसानों और कृषि संबंधी सूचनाओं के बेहतर आदान-प्रदान के लिए कृषि सूचना प्रणाली और सूचना प्रौद्योगिकी तथा राष्ट्रीय ई-गवन्रेस योजना को सुदृढ़ करते हुए प्रोत्साहित करना होगा। किसानों को बेहतर तकनीक उपलब्ध कराने के साथ ही भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण और कीटनाशकों के छिड़काव में ड्रोन तकनीक का अधिक उपयोग करना होगा।

उम्मीद करें कि सरकार वर्ष 2022 में असमान मानसून की चुनौतियों के मद्देनजर विभिन्न कृषि विकास कार्यक्रमों और खाद्यान्न, तिलहन और दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए लागू नई योजनाओं के साथ-साथ डिजिटल कृषि मिशन के कारगर क्रियान्वयन की डगर पर तेजी से बढ़ेगी। उम्मीद करें कि सरकार कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में आधुनिकीकरण और फसलों के विविधीकरण की डगर पर तेजी से बढ़ेगी। ऐसे में विभिन्न उपायों से इस समय असमान मानसून और मानसून की बेरुखी के कारण देश के कृषि मानचित्र पर चुनौतियों का जो चित्र उभर रहा है, उसमें बहुत हद तक सुधार हो सकेगा।

डॉ. जयंतीलाल भंडारी


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