ना तू सच्चा न मैं झूठा
झल्लन हमें देखते ही बोला, ‘पाय लागन ददाजू, कहां बुड़की मार जाते हो, जाते हो तो हमें बिना बताए चले जाते हो। हम कितने दिन से आपकी बाट जोह रहे हैं और ठीये पे आ-आ के आपकी आहट टोह रहे हैं।’
ना तू सच्चा न मैं झूठा |
हमने कहा, ‘भाई, तेरे पास बैठकर बतियाने-गपियाने के अलावा हमारे पास और भी काम तो हो सकते हैं, कभी इधर-उधर जाना भी हो सकता है, कभी बीमार-सीमार भी हो सकते हैं। खैर, हमारी छोड़ अपनी बता, इस बीच तूने क्या करतब कर डाले हैं, क्या नये झमेले पाले हैं?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हमें आपकी यही बात नहीं सुहाती है, दिमाग से होती हुई दिल में उतर जाती है। हम न चालू नेता हैं, न चालाक अधिकारी हैं, न चतुर व्यापारी हैं, न चाकर पत्रकार पर फिर भी आप हमें झमेलेबाज कहते हैं, जबकि हम झमेलों से कोसों दूर रहते हैं।’ हमने कहा, ‘चल कहा-सुना माफ, अब बता, कुछ कहने-सुनने को लाया है या यूं ही खाली दिमाग चला आया है?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, हमारा दिमाग खाली होकर भी खाली नहीं रहता है, हमेशा देश की चिंता में लगा रहता है और देश में कहां क्या हो रहा है इस पर नजर रखे रहता है।’ हमने कहा, ‘अच्छा बता, तेरी नजर कहां-कहां घूम आयी है, क्या-क्या देख आयी है?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, कुछ दिन पहले तक हमारी नजर दिल्ली की दारू पर लगी रही थी, दारू पीकर आम आदमी पार्टी बीजेपी से पंजा लड़ा रही थी और बीजेपी दारू के नशे में ही आप को कुचिया रही थी। हम सोचे थे कि आम आदमी पार्टी बताएगी कि उसने नयी दारू नीति क्यों बनायी, किसके फायदे के लिए बनायी, किस कायदे के लिए बनायी और अगर बना दी थी तो काहे को हटाई? इन सवालों पर आप पार्टी की चुप्पी हमारे मन में शंका जगा रही थी और लगता है बीजेपी भ्रष्टाचार का जो आरोप लगा रही है वह सही लगा रही थी।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, यह हमारे महान देश के पवित्र लोकतंत्र की पावन परंपरा है कि यहां किसी भी ईमानदार से ईमानदार आदमी को महाभ्रष्ट ठहराया जा सकता है और भ्रष्ट से भ्रष्ट आदमी को ईमानदारी का पट्टा पहनाया जा सकता है। ईमानदारी और बेईमानी का निर्णय न विधायिका कर पाती है, न कार्यपालिका, न न्यायपालिका। यह सिर्फ हमारे ऊपर है कि अपनी चाहत के चलते जिसे हम चाहें उसे ईमानदार मान लें, जिसे न चाहें उसके सर पर बेईमानी की तलवार तान दें। सो, इस देश में कौन ईमानदार है और कौन भ्रष्ट है इस पर अपना दिमाग नहीं खपाना चाहिए, राजनीति में जो गंदगी बह रही है उसे अपने दिमागों तक नहीं लाना चाहिए।’
झल्लन बोला, ‘लेकिन ददाजू, आम आदमी की पार्टी कह रही थी कि बीजेपी ने उसके एक-एक विधायक की कीमत बीस-बीस करोड़ लगा दी थी और उसके चालीस विधायक खरीदने के लिए आठ सौ करोड़ की राशि जुटा ली थी। आप पूछ रही है कि बीजेपी बताए, विधायक खरीदने के लिए ये आठ सौ करोड़ उसके पास कहां से आये?’ हमने कहा, ‘लेकिन आप ने न तो किसी खरीदार का नाम बताया, न उसने यह बताया कि बीस करोड़ और आठ सौ करोड़ का यह आंकड़ा उसके पास कहां से आया, कहीं से आया भी या उसने अपने बकलोली कारखाने में खुद ही बनवाया और जिसे असली सिक्के की तरह चलाना चाहा पर चल नहीं पाया।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम यहीं तो चकरा रहे हैं कि ईमानदारी के ठेके पर चलने वाली आम आदमी की पार्टी झूठ बोल रही है या भ्रष्टाचार को नेस्तनाबूत करने का संकल्प करने वाली भाजपा ही भ्रष्टाचार के झूले में झूल रही है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, राजनीति में न झूठ पूरा झूठ होता है न सच पूरा सच होता है। कहीं सच की गोद में झूठ होता है और कहीं झूठ की झोली में सच होता है।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, पहेली मत बुझाओ, जो समझाना है साफ-साफ बताओ।’ हमने कहा, ‘साफ-साफ ही तो बता रहे हैं, राजनीति का जो चरित्र है वही तो समझा रहे हैं। सत्ताकामी राजनीतिबाजों के लिए जितना जरूरी सच होता है उससे ज्यादा जरूरी झूठ होता है। कभी आप किसी सच के सहारे अपने विपक्षी पर वार करते हैं और कभी अपनी तलवार पर सिर्फ और सिर्फ झूठ की धार धरते हैं। आप और भाजपा में सच और झूठ की ऐसी ही कुश्ती चल रही है, जो चलती चली जाएगी और सच्चाई क्या है वह कभी सामने नहीं आएगी।’ झल्लन बोला, ‘लेकिन ददाजू, यह तो अच्छी बात नहीं है कि दो समझदार पार्टियां इस तरह भिड़ जायें और एक-दूसरे को मिटाने पर अड़ जायें। क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं जिससे इनके आपसी झगड़े निपट जायें?’ हमने कहा, ‘अगर दोनों अपने-अपने झूठ को वापस ले लें और दोनों के पास जो ठोस सच्चाइयां हैं उन्हें लेकर ईमानदारी से एक-दूसरे के पास आयें, ईमानदारी से विचार-विर्मा करें, ईमानदारी से संयुक्त रणनीति बनाएं तो बहुत कम समय में बहुत से टंटे निपट जाएंगे, जनता को राहत पहुचाएंगे।’ झल्लन बोला, ‘रहने दीजिए ददाजू, आपका यह रास्ता न इन्हें सुहाएगा न उन्हें सुहाएगा, सच यही है कि झूठ-सच का जो नंग नाच चल रहा है वही चलता जाएगा।’
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