नो एंट्री का बोर्ड लगाना सीखें महिलाएं

Last Updated 11 Sep 2022 01:34:26 PM IST

पिछले दिनों फिनलैंड एक अजीब गहमागहमी के दौर से गुजरा। दरअसल, वाकया फिनलैंड की सबसे कम उम्र की प्रधानमंत्री सना मारिन के एक विडियो से जुड़ा है, जिसमें वे अपने पारिवारिक मित्रों और कुछ घरेलू संबंधियों के साथ एक आयोजन में झूमती-गाती नजर आ रही हैं।


नो एंट्री का बोर्ड लगाना सीखें महिलाएं

उन पर संवैधानिक पद पर बने रहते हुए ड्रग्स लेने का आरोप लगा वीडियो वायरल कर दिया गया है। सना इस प्रकरण से पहले बीमार थीं। बहुत संभव है कि इसी चलते वे तनाव से निपटने के उद्देश्य से आयोजन में चली गई हों। बहरहाल, उनके निजी पलों को इस तरह वायरल करने से सना आहत हैं। जाहिर है उनकी भी अपनी एक पारिवारिक और निजी जिंदगी है, जिसका वे अपनी सुविधानुसार जब और जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकती हैं। आलोचक इसी बहाने उनके चरित्र पर कीचड़ उछाल रहे हैं।
 भले ही इस मामले से वे खासी नाराज हों पर आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए वे ड्रग्स टेस्ट  देने को भी तैयार हैं। पर सवाल ये है कि महिलाओं के जीवन में बेवजह ताक-झांक करने की अपनी पुरानी आदत से पुरु ष वर्ग कब बाज आएगा? पद, प्रतिष्ठा, मान या सम्मान की कीमत पर निजी जीवन के आनंद को तिलांजलि नहीं दी जा सकती। संवैधानिक, प्रशासनिक या सार्वजानिक पदों की बाध्यता क्या  किसी व्यक्ति को जीने के हक से वंचित कर सकती है ये सोचनीय है। हमारा संविधान सम्मत अधिकार भी तो जीने के अधिकार को सुविचारित रूप से व्याख्यायित करता है। हां ये बात और है कि सार्वजानिक पद की अपनी गरिमा होती है और उन्हें एक हद तक बरकरार भी रखा जाना चाहिए, लेकिन केवल सार्वजानिक जीवन में उपस्थिति मात्र निजता के अधिकार को खत्म नहीं करती। हमारे समाज में विशेषकर महिलाओं के ऐसे पदों पर आसीन होने के बाद उनके व्यक्तिगत जीवन में बाहरी लोगों की अनपेक्षित घुसपैठ अचानक शुरू हो जाती है। राजनैतिक और सार्वजानिक पदों का हवाला देकर उनका छिद्रान्वेषण किया जाने लगता है। चारित्रिक आरोप मढ़कर येन-केन-प्रकारेण उन्हें कलंकित करने की साजिश रची जाती है।

अनुशासन और वर्जनाओं से पैदा हुई घुटन से स्त्री को अब तक जकड़ा जाता रहा है। उसके प्रति स्वेच्छाचारी सामंती दृष्टिकोण के विरोध का एक हल्का सा आभास भी पुरु ष सत्तात्मक समाज को हिला देता है। उनकी स्वतंत्र आस्था, उनका व्यक्तित्व और प्रबुद्धता लाख कोशिशों के बाद भी कठघरे में है। स्वत्व को पहचानने की चाहत भले ही स्त्रियों में दिखती हो, लेकिन आज भी उनके नि:सहायता, निहत्थेपन और अकेलेपन को टुकड़ों में बांट उसके समक्ष ऐसे हालात पैदा किए जा रहे हैं, जिससे उसका हरेक टुकड़ा इस सामाजिक घटाटोप का विरोधी हो उठा है। इस क्रम में हेनरी मिलर के विचार अचानक प्रासंगिक हो उठते हैं। वे कहते हैं कि ‘पुरु ष के मुर्दा हो जाने पर उसे जिलाने का कार्य स्त्रियां करेंगी। वे शक्ति है वे त्रिपुर सुंदरी है। उन्हें देखकर एक अपूर्व विश्वास उठता है।’ अब वक्त आ गया है कि हेनरी की इस बात को सामाजिक जीवन में सर्वकालिकाता के साथ उठाया जाए। भारतीय जीवन का समर्थ रूप तभी उकेरा जा सकेगा, जब-जब स्त्रियां अपने जीवन के दरवाजे पर नो एंट्री का बोर्ड लगाएं। अपने निजी पलों में बेवजह की आवाजाही बंद करें। महिलाएं भी अपनी अस्मिता और स्वाभिमान को कम करने वाले ऐसे हर शै को समय रहते कुचल दे ताकि उनका स्वाभिमान दर्पित हो समस्त आंगिक गुणों के साथ आलोकित हो सके।

डॉ. दर्शनी प्रिय


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