पटरी पर अर्थव्यवस्था मगर..

Last Updated 03 Sep 2022 01:22:26 PM IST

वर्तमान वित्त वर्ष की पहली तिमाही में हाल ही में प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार जीडीपी मे 13.5 फीसद की बढ़ोतरी हुई जो रिजर्व बैंक के अनुमान 16.6 प्रतिशत से कम रही।


पटरी पर अर्थव्यवस्था मगर..

पिछले वित्त वर्ष की इसी तिमाही में विकास दर 21.1 फीसद थी। औद्योगिक विकास दर जो मई 2021 में 27.6 फीसद पर पहुंच गई थी  इस वर्ष मई के महीने में 19.61 फीसद तक ही जा पाई, यद्यपि मैन्युफैक्चरिंग एक्टिविटी की रफ्तार 8 महीने में सबसे तेज दिखी। कृषि विकास दर इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 4.5 फीसद थी जो औसत 3 से 3.5 फीसद के ऊपर थी, सेवा क्षेत्र का विकास दर पिछले वर्ष की अपेक्षा 17.6 फीसद ऊपर आया। 

वैश्विक मंदी, यूक्रेन में चल रहे युद्ध के कारण सप्लाई श्रृंखला में बाधा, कच्चे तेल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों एवं रुपये सहित विश्व की बहुत सारी मुद्राओं की कीमत में डॉलर के मुकाबले में कमी के बावजूद विकास दर 2 अंकों में बना रहा और भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेज बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रही। 28 महीनों बाद पहली बार अप्रैल से जुलाई 2022 के बीच सब्सिडी के भुगतान में बढ़ोतरी और कस्टम ड्यूटी से उगाही में कमी के बावजूद केंद्र सरकार सरप्लस में थी, खर्चे रेवेन्यू से कम थे। 2022-23 की पहली तिमाही मे देश की सकल आय 36.85 लाख करोड़ थी, जो पिछले वर्ष इसी समय की अपेक्षा 4.45 लाख करोड़ अधिक थी।

देश के प्रमुख 8 उद्योगों: कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, फर्टिलाइजर, स्टील, सीमेंट और बिजली- जिनका औद्योगिक सूचकांक में 40 फीसद का भार है-का विकास दर पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही के 21.4 फीसद से घटकर इस वर्ष की पहली तिमाही में 11. 5 प्रतिशत पर आ गया। मई 2022 में विकास दर 19.6 पर पहुंचा।

मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों में अच्छी प्रगति हुई। जुलाई 2022 में उनकी पीएमआई 56.4 थी जो 8 महीने का सबसे ऊंचा स्तर था। पचास के ऊपर की पीएमआई विकास की द्योतक मानी जाती है। सकल स्थाई पूंजी निर्माण (ग्रास कैपिटल फॉरमेशन) जिसे निवेश का मापदंड माना जाता है और अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आवश्यक होता है, 20.1 प्रतिशत से बढ़ा। कंस्ट्रक्शन में 16.8 फीसद की वृद्धि हुई। उद्योग एवं व्यवसाय में निजी निवेश में 20 फीसद से अधिक की बढोतरी हुई, निजी उपभोग में 25.9 फीसद की वृद्धि रिकॉर्ड की गई जो औद्योगिक विकास के लिए शुभ संकेत है। किंतु आम उपभोक्ता विश्वास सूचकांक में, रिजर्व बैंक के सर्वेक्षण के अनुसार मामूली बढ़त हुई, अधिकांश परिवारों ने अपने खर्च में वृद्धि पर चिंता जताई और आशंका व्यक्त की कि आने वाले वर्ष में भी यह जारी रहेगी। सेवा क्षेत्र का विकास पिछले वर्ष की अपेक्षा 17 फीसद से अधिक था किंतु व्यापार, होटल, यातायात, संचार एवं ब्रॉडकास्टिंग, जिनका इस क्षेत्र में रोजगार देने में 15 फीसद का हिस्सा है, धीमी गति से बढ़े। कृषि विकास दर 4.5 फीसद रहा, इस पर प्रश्नचिह्न लगाए जा रहे हैं क्योंकि अनाज,  फल, सब्जियां एवं अन्य कृषि पदाथरे की कीमत में वृद्धि तो हुई साथ-ही-साथ उनके उत्पाद में लगने वाली वस्तुएं जैसे उर्वरक, बीज, औजार आदि सभी महंगे हुए, आम किसान की आमदनी इतनी नहीं बढ़ी जितनी अपेक्षित थी।

भारतीय रुपये की कीमत में पिछले वर्ष की अपेक्षा डॉलर के मुकाबले लगभग 7 फीसद की गिरावट आई, जो विश्व की अधिकांश मुद्राओं के साथ भी हुआ। जापान, जर्मनी, इटली सहित अधिकांश विकसित यूरोपियन देशों और विकासशील देशों की मुद्राओं की कीमत में कमी आई। कुछ देशों जैसे श्री लंका, पाकिस्तान और अफ्रीका के अनेक देशों की मुद्राओं में भारी गिरावट आई। उनके पास पेट्रोल, डीजल, खाद्यान्न एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं, जिनकी  कीमतें यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद तेजी से बढ़ी, के आयात के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा का अभाव हो गया। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में वृद्धि करके निवेशकों को अमेरिका में निवेश का प्रोत्साहन देकर अन्य देशों के लिए संकठ की स्थिति पैदा की। विदेशी निवेशक खासकर संस्थागत निवेशक (एफआईआई) ने शेयर बाजारों में भारी बिकवाली करके अस्थिरता पैदा कर दी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में समय-समय पर भारी बढ़त और यूक्रेन में युद्ध के कारण सप्लाई श्रृंखला बाधित होने से खाद्यान्नों की कीमत में उछाल से अधिकांश मुद्राओं की क्रय शक्ति में कमी आई।

भारत पर भी असर पड़ा, विदेशी मुद्रा भंडार में 2022 में 60 बिलियन डॉलर की कमी आई। किंतु भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के ऊपर है, चीन, स्विट्जरलैंड और जापान के बाद चौथे स्थान पर है। खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है, समय-समय पर खाद्य संकट से झेलते देशों की मदद भी करता रहा है। कोरोना महामारी के आने से अब तक 80 करोड़ लोगों को देश में मुफ्त राशन दिया जा रहा है। कच्चे तेल की अपनी आवश्यकता का 85 फीसद भारत दूसरे देशों से आयात करता है किंतु रिफाइनरी की क्षमता में वह अमेरिका, चीन और रूस से ही पीछे है। यूक्रेन में युद्ध छिड़ने के बाद जो संकट पेट्रोल और डीजल की सप्लाई पर पड़ा उससे निपटने में भारत सफल रहा, नहीं सप्लाई की कमी हुई और नहीं कीमतें उस स्तर तक पहुंच गई जिन से कई देशों की अर्थव्यवस्था संकट में आ गई।

मुद्रास्फीति जो 7.8 फीसद पर पहुंच गई थी, उसको भी नियंत्रण करने का प्रयास रिजर्व बैंक करता रहा, रेपो रेट में कमी की गई, मार्केट ऑपरेशन से रुपये को स्थिर रखने की कोशिश भी होती रही। भारत का निर्यात जून 2022 में 16.8 फीसद बढ़कर 37.9 बिलियन पर पहुंच गया जो इसी माह पिछले वर्ष 32.4 बिलियन डॉलर था। निर्यात में वृद्धि का यह रिकॉर्ड स्तर है। इस वर्ष की पहली तिमाही में पेट्रोलियम पदाथरे, इलेक्ट्रॉनिक सामान, रेडीमेड गारमेंट्स, ज्वेलरी एवं रक्षा संयंत्रों और सामग्रियों के निर्यात में अच्छी वृद्धि हुई। आयात में भी वृद्धि हुई विशेषकर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों मे वृद्धि के कारण, जिसके फलस्वरूप व्यापार घाटा 9.6 बिलियन डॉलर से बढ़कर 25.6 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया। प्रभावशाली मुद्रा एवं वित्त नीतियों से देश आर्थिक संकट से बचा रहा यद्यपि विकास दर कुछ धीमी रही।

प्रो. लल्लन प्रसाद


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