चीनी जहाज से सतर्क रहना होगा

Last Updated 23 Aug 2022 12:26:36 PM IST

भारत की सुरक्षा चिंताओं और विरोध के बावजूद चीन का जासूसी पोत युआन वांग-5, 16 अगस्त को सुबह सुबह श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पहुंच गया।


चीनी जहाज से सतर्क रहना होगा

श्रीलंका ने 13 अगस्त को चीन के इस जहाज को 16 से 22 अगस्त तक हंबनटोटा बंदरगाह पर ठहरने की अनुमति दी है। इससे पहले इस जहाज को 11 से 22 अगस्त तक रुकने का कार्यक्रम था, लेकिन भारत की सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए श्रीलंका ने चीन को अनुमति देने से इनकार कर दिया था। बाद में श्रीलंका में चीन के राजदूत और श्रीलंका के राट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की अनौपचारिक मुलाकात के बाद श्रीलंका ने भारत की चिंता को दरकिनार करते हुए पोत के आने की स्वीकृति प्रदान कर दी।

गौरतलब यह है कि भारत ने अपनी सुरक्षा चिंताओं से श्रीलंका को पहले ही अवगत करा दिया था, लेकिन श्रीलंका ने देर सबेर आखिर चीन के पोत को ठहरने की अनुमति दे दी। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि इस मामले को मैत्रीपूर्ण, परस्पर विश्वास एवं सार्थक संवाद के जरिए सुलझाया गया है। सभी पक्षों के साथ कूटनीतिक माध्यमों के उच्च स्तर पर व्यापक विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है। श्रीलंका का यह भी कहना है कि रक्षा मंत्रालय ने निर्धारित अवधि के दौरान जहाज में ईंधन भरने के लिए सुरक्षा मंजूरी प्रदान की है।

चीन का जासूसी पोत युआन वांग-5 जब हंबनटोटा पहुंचा तो इसका स्वागत करने के लिए श्रीलंका में मौजूद चीनी राजदूत क्यूई जेंगहांग व श्रीलंका की सत्तारूढ़ पोदूजन पेरामुन पार्टी से अलग हुए कुछ सांसद भी मौजूद थे। पोत के हंबनटोटा पहुंचने के बाद चीन इस विवाद को शांत करने में जुट गया हैं। चीनी राजदूत ने सफाई देते हुए कहा है कि इस तरह के शोध जहाजों की श्रीलंका की यात्रा स्वाभाविक है। इससे पहले ऐसा ही एक जहाज 2014 में आया था।

हालांकि मौजूदा अनुमति को लेकर चीन के विदेश मंत्री वांग वी ने कहा था कि सुरक्षा चिंताओं के नाम पर भारत और अमेरिका श्रीलंका पर अनुचित दबाव बना रहे हैं। इस तरह दोनों देश श्रीलंका के आंतरिक मामलों में गैरजरूरी हस्तक्षेप कर रहे हैं। भारत से हंबनटोटा बंदरगाह की दूरी 160 किलोमीटर है। चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत चीन के लिए यह अहम बंदरगाह है। यह बंदरगाह दक्षिण पूर्व एशिया, अफीका और पश्चिम एशिया को जोड़ता है।

इस बंदरगाह का निर्माण वर्ष 2010 में राट्रपति राजपक्षे के कार्यकाल में हुआ था। इसका पहला चरण चीन के एक्जिम बैंक द्वारा दिए गए कर्ज से तैयार किया गया था। यह बंदरगाह श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो से 250 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। गौरतलब है कि श्रीलंका ने चीन से अपने देश के विकास के लिए ऋण लिया था। इस ऋण को लौटाने में विफल रहने के बाद श्रीलंका ने सन् 2017 में हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल के लिए चीन को लीज पर दे दिया था। चीन के कर्ज से ही हंबनटोटा बंदरगाह पर विकास कार्य किए गए हैं। जबसे श्रीलंका ने इस बंदरगाह को लीज पर दिया है तबसे ही भारत इसके सैन्य इस्तेमाल को लेकर चिंतित है।

हंबनटोटा बंदरगाह से चीन अपने जासूसी पोत युआन वांग-5 की मदद से भारत के ओडिषा राज्य के तट की सभी गतिविधियों पर नजर रख सकता है। उल्लेखनीय है कि भारत की तरफ से मिसाइलों की परीक्षण प्रक्रिया ओडिषा तट के नजदीक अब्दुल कलाम द्वीप पर की जाती है। युआन वांग-5 पोत चीन की सेना पीएलए के तहत काम करता है और पूरी तरह से सेटेलाइट व मिसाइलों की गतिविधियों की निगरानी करने में सक्षम है। इस पोत पर 400 सैनिकों का दल रहता है।

यह एक बड़े ट्रैकिंग एंटीना तथा अत्याधुनिक सेंसर से लैस है। युआन वांग-5 अपनी विशेषता के मुताबिक समुद्री सव्रे भी कर सकता है। इस कार्य से चीन को भविय में हिंद महासागर में पनडुब्बी से जुड़े ऑपरेशन संचालित करने में सहायता मिल सकेगी। यह पोत भारत के दक्षिणी इलाके की अधिक-से-अधिक सामरिक गतिविधियों तथा ढांचागत परियोजनाओं पर नजदीकी निगरानी रखने की क्षमता रखता है। इसके अलावा इस पोत को उपग्रहों एवं अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों को ट्रैक करने की महारत हासिल है।

सामरिक रूप से देखा जाए तो हंबनटोटा बंदरगाह के पास सैन्य कूटनीति की बिसात बिछ गई है। श्रीलंका में चीनी नौसेना पोतों का आना-जाना एवं भारत से भी सैन्य विमानों एवं जहाजों का आवागमन आम बात रही है, लेकिन इस बार युआन वांग-5 पोत के आने का विवाद गहरा गया है। अपनी विशेषता के अनुरूप यह पोत 750 किलोमीटर की दूरी तक नजर दौड़ा सकता है, जिसमें भारत के कई समुद्री तट आते हैं। इनके जवाब तलाशने के लिए हिंद महासागर की सामरिक स्थिति समझने की आवश्यकता है।

चीन के भारत के प्रति सामरिक इरादे किसी से छिपे नहीं है। अब हंबनटोटा पर अपना जासूसी जहाज भेज कर मनोवैज्ञानिक व सामरिक दबाव बनाना शुरू कर दिया है। चीन श्रीलंका में अपनी सैन्य उपस्थिति बनाए रखकर भारत की सामरिक चुनौती को और बढ़ा रहा है। वर्तमान में श्रीलंका की आर्थिक स्थिति काफी खस्ताहाल है और उसे लगता है कि इस समय चीन ही उसकी मदद कर सकता है। ऐसे में भारत को अपनी सामरिक ताकत को मजबूत बनाना होगा।

डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव


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