बिहारी जी मंदिर में मौत क्यों!
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन वृंदावन के श्री बांके बिहारी मंदिर में मंगला आरती के समय हुई भगदड़ में दो लोगों की जान गई और कई घायल हुए।
बिहारी जी मंदिर में मौत क्यों! |
सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम वीडियो देखे जा सकते हैं, जहां श्रद्धालुओं की भीड़ धक्का-मुक्की का शिकार हो रही है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर भक्तों को अव्यवस्था के चलते जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, उनसे शायद मथुरा प्रशासन को भविष्य के लिए सबक सीखने की आवश्यकता है।
मंदिरों की अव्यवस्था के चलते हुई मौतों की सूची छोटी नहीं है। 2008 में हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ में डेढ़ सौ से अधिक जाने गई थीं। महाराष्ट्र के पंडरपुर में भी ऐसा ही हादसा हुआ था। बिहार के देवघर में शिवजी को जल चढ़ाने गई भीड़ की भगदड़ में मची चीत्कार हृदय विदारक थी। कुंभ के मेलों में भी अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं। जब से टेलीविजन चैनलों का प्रचार-प्रसार बढ़ा है, तब से भारत में तीर्थस्थलों और धार्मिंक पवरे के प्रति भी उत्साह बढ़ा है। आज देश के मशहूर मंदिरों में पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा भीड़ जाती है। जितनी भीड़ उतनी अव्यवस्था। उतना ही दुर्घटना का खतरा। पर स्थानीय प्रशासन प्राय: कुछ ठोस नहीं करता या वीआईपी की व्यवस्था में लगा रहता है, या साधनों की कमी की दुहाई देता है। हमेशा हादसों के बाद राहत की अफरा-तफरी मचती है।
मथुरा हो या काशी उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार ने इन तीथरे के विकास के लिए पैसे की कोई कमी नहीं होने दी। वृंदावन के जिस बांके बिहारी मंदिर में यह दुखद हादसा हुआ उस मंदिर की गली के विकास के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तो कुबेर का खजोना खोल दिया। वि बैंक से 27 करोड़ की मोटी रकम स्वीकृत करवा कर दी थी परंतु वहां सुविधा के नाम पर भक्तों को क्या मिला यह सबके सामने है। इतने पैसे से तो बिहारी जी के मंदिर और उसके आसपास के इलाके में भक्तों की सुविधा के लिए काफी कुछ किया जा सकता था। परंतु ऐसा नहीं हुआ। ऐसा नहीं है कि वृंदावन में ऐसे हादसे पहले नहीं हुए। ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले बिना हादसों के बड़े-बड़े त्योहार शांतिपूर्वक संपन्न नहीं हुए। मुझे याद है जब 2003 में मुझे माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर इसी बांके बिहारी मंदिर का रिसीवर नियुक्त किया गया था तो मेरे रिसीवर बनते ही कुछ ही सप्ताह बाद हरियाली तीज का त्योहार आ रहा था। उस दिन बिहारी जी के दशर्नों के लिए लाखों की भीड़ आती है। मेरे लिए यह पहला मौका था और काफी चुनौतीपूर्ण था। मैंने अपने संपकरे से पता लगाया कि एसपीजी के कुछ सेवानिवृत्त जवान एक संस्था चलाकर भीड़ नियंतण्रकरने का काम करते हैं। उनसे संपर्क कर उन्हें इस पर्व पर भीड़ नियंतण्रके लिए वृंदावन बुलाया। दिल्ली के एक बड़े मंदिर में जूतों की निशुल्क सेवा करने वाले व्यापारी वर्ग के लोगों को भी बुलाया।
युवा ब्रजवासियों के संगठन ब्रज रक्षक दल के करीब 400 युवाओं को भी इनकी सहायता के लिए बुलाया। मथुरा पुलिस से भी 400 सिपाही लिए। इन सब को तीन दिनों तक वृंदावन के मोदी भवन में भीड़ नियंत्रण की ट्रेनिंग दी की गई। लाखों लोगों ने दशर्न किए पर नतीजा यह हुआ कि बिहारी जी मंदिर के इतिहास में पहली बार न तो किसी की जेब कटी। न किसी को कोई चोट आई और न ही किसी की चप्पल चोरी हुई। बिहारी जी की कृपा से पूरा पर्व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुआ। ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि समस्या का हल खोजने में सभी का योगदान था।
गुरुद्वारों की प्रबंध समितियों और अनुशासित सिख समाज ने गुरुद्वारों की व्यवस्था स्वयं ही लगातार सुधारी है। दक्षिण भारत में मैसूर के दशहरा का प्रबंधन भी देखने के काबिल होता है। तिरुपति बाला जी तो है ही नायाब अपनी व्यवस्था के लिए। मस्जिदों और चचरे में भी क्रमबद्ध बैठकर इबादत करने की व्यवस्था है, इसलिए भगदड़ नहीं मचती।
हिंदू मंदिरों में देव दशर्न अलग-अलग समय पर खुलते हैं। इसलिए दशर्नार्थियों की भीड़, अधीरता और जल्दी दशर्न पाने की लालसा बढ़ती जाती है। दशर्नों के खुलते ही भीड़ टूट पड़ती है। नतीजतन, अक्सर हृदय विदारक हादसे हो जाते हैं। आंध्र प्रदेश में तिरुपति बाला जी, महाराष्ट्र में सिद्धि विनायक, दिल्ली में कात्यानी मंदिर, जालंधर में दुग्रयाना मंदिर और कश्मीर में वैष्णो देवी मंदिर ऐसे हैं, जहां प्रबंधकों ने दूरदर्शिता का परिचय देकर दशर्नार्थियों के लिए सुंदर व्यवस्थाएं खड़ी की हैं। इसलिए इन मंदिरों में सब कुछ कायदे से होता है। भारत के विभिन्न प्रांतों के इन मंदिरों में इतनी सुंदर व्यवस्था बन सकी और सफलता से चल रही हैं, तो शेष लाखों मंदिरों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? जरूरत इस बात की है कि भारत सरकार में धार्मिंक मामलों के लिए अलग मंत्रालय बने जिसमें कैबिनेट स्तर का मंत्री हो। इस मंत्रालय का काम सभी धर्मो के उपासना स्थलों और तीर्थस्थानों की व्यवस्था सुधारना हो। केंद्र और राज्य सरकारें राजनीतिक वैमनस्य छोड़कर पारस्परिक सहयोग से नीतियां बनाएं और उन्हें लागू करें।
अक्सर देखने में आता है कि धर्मस्थान बनवाता कोई और है पर उसके कुछ सेवायत उसे निजी संपत्ति की तरह बेच खाते हैं। धर्म नीति में स्पष्ट होना चाहिए कि यदि किसी धार्मिंक संपत्ति को बनाने वाले नहीं रहते हैं, तो उस संपत्ति का सरकार अधिग्रहरण करके सार्वजनिक ट्रस्ट बना देगी। इस ट्रस्ट में उस धर्मस्थान के प्रति आस्था रखने वाले लोगों को सरकार ट्रस्टी मनोनीत कर सकती है। इस तरह एक नीति के तहत देश के सभी तीर्थस्थलों का संरक्षण और संवर्धन हो सकेगा।
देश में अनेक धर्मो के अनेकों पर्व साल भर होते रहते हैं। इन पवरे पर उमड़ने वाली लाखों करोड़ों लोगों की भीड़ को अनुशासित रखने के लिए एक तीर्थ रक्षक बल की आवश्यकता होगी। यह रक्षा बल आवश्यकतानुसार देश के विभिन्न तीर्थस्थलों पर बड़े पवरे के दौरान तैनात किया जा सकता है। रोज-रोज एक ही तरह की स्थिति का सामना करने के कारण यह बल काफी अनुभवी हो जाएगा। तीर्थयात्रियों की मानसिकता और व्यवहार को सुगमता से समझ लेगा। ये धर्मस्थल हमारी आस्था के प्रतीक हैं, और हमारी सांस्कृतिक पहचान हैं। इनके बेहतर रखरखाव से देश में पर्यटन भी बढ़ेगा और दशर्नार्थियों को भी सुख मिलेगा।
| Tweet |