ग्लोबल फाइनेंस : देश, प्रदेश और सिंगापुर
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने यह बात बहुत पहले कह दी थी कि महत्त्वपूर्ण यह नहीं कि कोई अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है।
ग्लोबल फाइनेंस : देश, प्रदेश और सिंगापुर |
बड़ी बात यह है कि प्रतिस्पर्धा के दौर की चुनौती और जोखिम से निपटने के लिए उस अर्थव्यवस्था की डोर थामने वाले नीति-नियंताओं की दृष्टि कितनी चौकन्नी है, कितनी दूरदर्शी है। अर्थव्यवस्था की इस दूरदर्शिता और चौकन्नेपन का कम्पास पिछले कुछ समय से लगातार एशियाई देशों की तरफ ध्यान खींच रहा है।
इंस्टीट्यूट फॉर मैनेजमेंट डवलपमेंट (आईएमडी) के वार्षिक वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक में सिंगापुर ने बेहतर स्थान पर पहुंच कर सबका ध्यान खींचा है। सिंगापुर दुनिया के छोटे देशों में शुमार है। महज 720 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला सिंगापुर क्षेत्रफल में दिल्ली से भी तकरीबन आधा है पर अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में लगातार चमकदार नक्षत्र की तरह अपनी हैसियत और संभावना को बरकरार रखे हुए है। अर्थ के क्षेत्र का यह नक्षत्र आज भारत की अंदरूनी अर्थव्यवस्था में दिलचस्पी ले रहा है। सिंगापुर ने उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरू में प्रस्तावित ग्लोबल इन्वेस्टर समिट का फर्स्ट कंट्री पार्टनर बनने की इच्छा जाहिर की है। हाल में प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात के दौरान भारत में सिंगापुर के उच्चायुक्त सिमोन वोंग ने इस आशय का प्रस्ताव रखा। वोंग ने बताया कि सिंगापुर की विभिन्न कंपनियों ने उत्तर प्रदेश में 250 मिलियन यूएस डॉलर का निवेश किया है। वोंग ने जोर देकर कहा कि सितम्बर, 2021 से अब तक सिंगापुर के प्रतिनिधिमंडल ने कई बार इन्वेस्ट-यूपी के अधिकारियों से भेंट की है। यहां के बेहतर औद्योगिक माहौल को देखते हुए सिंगापुर की कंपनियां यहां निवेश को इच्छुक हैं। सिंगापुर की नई आर्थिक दिलचस्पी को समझने के लिए देश के सबसे बड़े सूबे में आर्थिक महत्त्वाकांक्षा के साथ हो रहे बदलाव को समझना होगा।
भारत आज अपने विकास के उस चरण में है, जब उसके कई राज्य एक साथ बड़ी आर्थिक छलांग के साथ सामने आ रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से इस लिहाज से गुजरात की चर्चा ज्यादा होती थी पर देश के सबसे बड़े सूबे का नया आर्थिक उभार भारत के विकास को आधारभूत संघीय संकल्पना के साथ नया विस्तार दे रहा है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में ‘ईज ऑफ डूईग बिजनेस’ को लेकर आंकड़े जारी किए हैं। अचीवर्स कैटेगरी वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश हैं। एस्पायर कैटेगरी में असम, केरल और गोवा सहित सात राज्य शामिल हैं।
इमर्जिंग बिजनेस इकोसिस्टम कैटेगरी में शामिल किए गए 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में दिल्ली, पुडूचेरी और त्रिपुरा, बिहार, अंडमान और निकोबार, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली, जम्मू और कश्मीर, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा को शामिल किया गया है। राज्यों के बीच विकास की ललक और होड़ का नतीजा है कि राज्य सरकारें अपने यहां पूंजी निवेश को लेकर एकीकृत पहल को चुस्ती देने में लगी हैं। हाल में विश्व आर्थिक मंच के शिखर सम्मेलन के पहले दिन तेलंगाना कई कंपनियों से निवेश आकर्षित करने में सफल रहा। इन कंपनियों में लुलू समूह ने 500 करोड़ रुपये जबकि स्पेन की केमो फार्मा ने अगले दो साल में 100 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की। इसी तरह दो दिवसीय बंगाल ग्लोबल बिजनेस समिट में कुल 137 एमओयू साइन हुए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि बीजीबीएस में इस बार 3,42,375 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आए हैं।
आलम यह है कि भारत जहां पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होने की बात कहता है, तो उसका सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश अपने को विकास के चुस्त मानकों पर खरा उतारना और अपनी अर्थव्यवस्था को 2027 तक एक ट्रिलियन डॉलर यानी करीब दस खरब तक ले जाना चाहता है। देश के विकास को अगर उसके प्रदेशों से जोर और गति मिलने लगे तो विकास का चरित्र केंद्रीय न होकर विकेंद्रित हो जाता है। विकेंद्रीकरण का सिद्धांत जितना लोकतंत्र के लिए जरूरी है, उतना ही अर्थशास्त्र के लिए भी। भारत के राजनीतिक हालात को लेकर कई तरह की चर्चा, आशंका और भविष्यवाणी के बीच देश के विभिन्न सूबों में चल रही आर्थिक गतिविधियों को नई समझ के साथ देखने की जरूरत है। बड़ी बात यह है कि देश के विकास और आर्थिक क्षेत्र में आए इस बदलाव के नतीजे भी सामने आ रहे हैं।
दिलचस्प है कि ऐसे दौर में जब दुनिया के कई वित्तीय सूचकांक लगातार हरे निशान में दिख रहे हैं, भारत में विदेशी पूंजी का प्रवाह लगातार बना हुआ है। सेंसेक्स गगनचुंबी कीर्तिमान की तरफ अग्रसर है। कोरोना की गंभीर चुनौती के बाद बदली आर्थिक परिस्थिति और नये वित्तीय दबाव के बीच देश-प्रदेश से निकलता विकास का संदेश भारत की आर्थिक सुदृढ़ता की दिशा में चमकदार रुझान है।
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