बादल फटना : केसीआर का दावा तार्किक नहीं
बादल फटना कोई ‘बम फटना’ तो है नहीं। बम तो मानव निर्मिंत हैं, जबकि बादल फटना खालिस प्राकृतिक प्रक्रिया है। अब तक तो इसे ऐसा ही माना जाता रहा है।
बादल फटना : केसीआर का दावा तार्किक नहीं |
फिर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को इसमें ‘विदेशी साजिश’ क्यों नजर आती है? उन्होंने गत दिनों राज्य के बाढ़ प्रभावित भद्राचलम जिले का हवाई सर्वे करने के दौरान कुछ इसी तरह का ‘हवा-हवाई’ बयान दे डाला। उनके इस बयान के बाद गोदावरी नदी में बढ़े पानी के स्तर की तरह ही राज्य की सियासत में भी उबाल आ गया है। केसीआर के नाम से मशहूर तेलंगाना के मुख्यमंत्री के इस बयान को कोई ‘सदी का जोक’ बता रहा है तो कोई कह रहा है कि अगर केसीआर के पास इस तरह की कोई जानकारी है तो उन्हें इसे देश की खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करना चाहिए।
राजनीतिक अदावत में ऐसी प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि केसीआर के बयान को कितनी गंभीरता से लिया जाए? क्या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है? अमूमन बारिश को वाष्पीकरण प्रक्रिया से जोड़कर देखा जाता है। सामान्य ज्ञान-विज्ञान पढ़ते समय ही हमारे अबोध मन में यह बात बैठ जाती है कि सूरज की किरणों पृथ्वी पर मौजूद समुद्र और महासागरों पर जब पड़ती है तो उसका पानी वाष्पित होकर बादल के रूप में हवा में उठने लगता है। फिर ठंडे होने पर यही जल बारिश की बूंदों के रूप में धरती पर वापस आता है। ठीक इसी तरह हर साल मानसून की आमद के साथ ही विशेषकर पहाड़ी इलाकों में होने वाली बादल फटने की घटनाओं ने भी इसको लेकर हम सब की जिज्ञासा दूर कर दी है।
सामान्य अध्यनों से पता चलता है कि जब अत्याधिक नमी वाले बादल एक जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं तो पानी की बूंदे आपस में मिलने लगती है। इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और बारिश के साथ बहुत तेज पानी गिरने लगता है। इसे ही बादल फटना कहते हैं। अर्थात एक घंटे में दो-चार या दस मिली लीटर बरसात हो तो इसे सामान्य बारिश कहेंगे, लेकिन एक घंटे में अगर यही बारिश 100 मिली लीटर तक हो जाए तो इसे बादल फटना माना जाएगा। पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की अधिक घटनाएं होने का कारण यह है कि पहाड़ अत्यंत नमी वाले बादलों का रास्ता रोक लेते हैं और उन्हें ऊपर उठने नहीं देते। इससे जाहिर है कि बारिश और बादल फटने के पीछे पूरी कुदरती प्रक्रिया है और इसे उपरोक्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा भी जा सकता है। तो क्या तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव का विदेशी साजिश वाला आरोप महज एक शिगूफा है? या फिर वाकई ऐसा संभव है? मौसम वैज्ञानिकों की मानें तो कृत्रिम वष्रा संभव जरूर है, लेकिन इसके प्रयोग बहुत ज्यादा सफल नहीं रहे हैं। सामन्यत: ऐसा बादलों में ड्राइ आइस, सिल्वर आयोडाइड और साल्ट पाउडर जैसे बाहरी कणों को डालकर उसकी नमी को बढ़ाया जाता है।
इस प्रक्रिया को ‘क्लाउड सीडिंग’ कहते हैं। इन बाह्य कणों को बादलों में डालने के लिए हवाईजहाजों का उपयोग किया जाता या फिर दीगर माध्यमों से दागा जाता है। माना जा रहा है कि हमारा पड़ोसी मुल्क चीन 2008 से ही मौसम में ऐसी छेड़छाड़ करता रहा है। बीजिंग ओलंपिक से पहले आसमान साफ करने के लिए उसने बारिश को समय से पूर्व करवाने का चमत्कार किया था। धूर्त चीन की इस सफलता पर मन में यह आशंका उठती है कि कहीं इसके पीछे उसी का हाथ तो नहीं है। विशेषकर जम्मू एवं कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखण्ड और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाओं की केसीआर की दलील में दम लगता है, लेकिन अगले ही पल यह विचार भी कौंधता है कि कृत्रिम बारिश कराने के लिए जिन बाहरी कणों को बादलों में छिड़कने के लिए हवाई जहाजों या दीगर माध्यमों का इस्तेमाल किया गया होगा, वह आजतक नजर क्यों नहीं आए? फिर तेलंगाना जैसे बिना किसी दूसरे देश की सरहद से लगने वाले राज्य में अंदर तक घुसकर ऐसा दुस्साहस करना तो बिलकुल भी असंभव है।
हमारे या दुनिया के रडार सिस्टम इतने अक्षम तो नहीं हैं। कृत्रिम वर्षा पर अब तक उपलब्ध अध्यनों से भी पता चलता है कि प्रयोगशाला स्तर पर इस प्रक्रिया के नतीजे उतने उत्साहजनक नहीं रहे हैं। इससे केसीआर का बयान तथ्यों से परे लगता है। ठीक उसी तरह जैसे कुछ बरस पहले तक देश में हुई हर घटना के पीछे विदेशी ताकत बताकर या आईएसआई का नाम लेकर खुद की जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने का चलन रहा है। तेलंगाना में चूंकि अगले बरस ही विधानसभा चुनाव हैं; केसीआर ने इसे विदेशी साजिश बताकर लोगों से खुद की भावनाएं जोड़ने का प्रयास किया है। साथ ही अपनी कमियों पर पर्दा डालने का प्रयास भी किया है। हालांकि अपनी बात को आगे वह खुद ही यह कहकर झुठला रहे हैं कि हमें नहीं पता कि इसमें कितनी सच्चाई है। ज्ञात रहे कि इस अवसर पर उन्होंने गोदावरी के रौद्र रूप को शांत करने के लिए पूजा-अर्चना भी की है। ऐसे में कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे केसीआर के इस बयान का कोई वैज्ञानिक आधार तो नहीं है, अलबत्ता इसके राजनीतिक निहितार्थ जरूर हैं।
| Tweet |