वैश्विकी : विदेश मंत्री ब्लिंकन और पेगासस

Last Updated 25 Jul 2021 12:14:52 AM IST

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन की पहली भारत यात्रा पेगासस जासूसी विवाद के साए में हो रही है।


वैश्विकी : विदेश मंत्री ब्लिंकन और पेगासस

अमेरिका और पश्चिमी देशों के सरकार पोषित संस्थानों और मीडिया ने पेगासस विवाद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक शख्सियत और भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली के विरु द्ध के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। घरेलू राजनीति ने आग में घी डालने का काम किया है। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के विरुद्ध इस अभियान में अमेरिका या किसी पश्चिमी देश की सरकार सीधे रूप से शामिल नहीं है, लेकिन उनकी ओर संदेह की उंगली अवश्य उठ रही है। ब्लिंकन की भारत यात्रा के सिलसिले में वाशिंगटन डीसी में आयोजित विदेश मंत्रालय की ब्रीफिंग में पेगासस और उसके जरिए मीडिया एवं कार्यकर्ताओं के विरु द्ध जासूसी किए जाने का मुद्दा शामिल नहीं था। हालांकि पत्रकारों के सवालों के जवाब में कार्यकारी सहायक विदेश मंत्री डीन थॉम्पसन ने इस संबंध में टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री ब्लिंकन प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर के साथ मुलाकात के दौरान भारत में मानवाधिकारों का मुद्दा अवश्य उठाएंगे। पेगासस के जरिए खुफियागिरी किए जाने के संबंध में उन्होंने कहा कि अमेरिकी सरकार और समाज इसे लेकर चिंतित है। वह चाहता है कि  प्रौद्योगिकी का ऐसे दुरुपयोग न किया जाए।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने इंडो-पेसिफिक में भारत की भूमिका, अफगानिस्तान की स्थिति और कोरोना महामारी से निपटने के उपायों को ब्लिंकन की यात्रा का मुख्य एजेंडा बताया है। लेकिन अमेरिकी अधिकारियों द्वारा मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का राग अलापे जाने से ये संकेत मिल रहे हैं कि दोनों देशों के बीच इस मुद्दे को लेकर तकरार भी हो सकती है। स्थिति कुछ ऐसी बन रही है जैसी मार्च के महीने में अलास्का में चीन के वरिष्ठ नेता यांग जीची और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेके सुलिवन के बीच भिड़ंत के रूप में सामने आई थी। अमेरिका ने जब चीन पर मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाया था तब चीन के नेता ने जबरदस्त पलटवार किया था। इस बात की संभावना कम है कि ब्लिंकन प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता के कथित उल्लंघन का मुद्दा उठाएंगे, लेकिन इतना जरूर है कि वह जयशंकर को लोकतंत्र और मानवाधिकारों का उपदेश अवश्य देंगे। यात्रा के दौरान या उसके तुरंत बाद देश-विदेश की मीडिया में यह बात प्रचारित की जाएगी कि अमेरिका मानवाधिकारों के मामले में भारत के साथ कोई नरमी नहीं बरतेगा। यह देखने वाली बात होगी कि विदेश मंत्री जयशंकर वार्ता के दौरान चीन के नेता जैसा आक्रामक रुख अपनाते हैं अथवा सफाई देने में ही लगे रहते हैं। कुल मिलाकर, भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में खटास के प्रारंभिक संकेत मिल रहे हैं।
अमेरिकी मीडिया और वहां के प्रमुख थिंक टैंक ब्लिंकन को सलाह दे रहे हैं कि वे बंद कमरों में नहीं, बल्कि सार्वजनिक रूप से मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करें। यह भारत विरोधी तबका तर्क दे रहा है कि चीन को काबू में रखने की नीति के नाम पर भारत को मानवाधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने की छूट नहीं दी जा सकती। अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी के बहुत से नेता और बुद्धिजीवी नई दिल्ली की तुलना बीजिंग से तथा भारतीय जनता पार्टी की तुलना चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से कर रहे हैं। हाल के दिनों में ट्विटर की नकेल कसने, पादरी स्टेन स्वामी की मृत्यु और पेगासस विवाद ने भारतीय विदेश नीति के सामने बड़ी चुनौती पेश की है।
भारत इस संदर्भ में अपनी विदेश नीति को संतुलित बनाने और नया रूप देने में लगा है। पिछले दिनों भारत ने अपने परंपरागत मित्र देश रूस के साथ संबंधों को और ऊंचे स्तर पर ले जाने की पहल की है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव का प्रतिकार करने में भारत रूस का संबल लेगा। संभावना है कि नई दिल्ली प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की शिखर वार्ता में भारतीय विदेश नीति के इस नये स्वरूप को दुनिया के सामने उजागर करेगी।

डॉ. दिलीप चौबे


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