कला-संगीत : सुनहरी आभा और विवादी सुर

Last Updated 16 May 2021 12:12:04 AM IST

कोरोना के कारण सारे ही आयोजन बंद हैं। विख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के जन्मशताब्दी की धूम भी देश-विदेश में जिस प्रकार होनी चाहिए थी, नहीं हो सकी।


कला-संगीत : सुनहरी आभा और विवादी सुर

वे इस मामले में अग्रणी थे कि उन्होंने हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को विदेश में लोकप्रिय किया। उनके बाद कलाकारों के विदेश में कार्यक्रमों का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह बढ़ता ही गया। हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के प्रतिष्ठित कलाकार वर्ष के कई महीने विभिन्न देशों में बिताते हैं, वहां उनके शिष्य-शिष्याएं और व्यापक प्रशंसक वर्ग भी है। इन सबके लिए पंडित रविशंकर का आभारी होना चाहिए।
पंडित रविशंकर की जन्म शताब्दी पिछले महीने (सात अप्रैल) समाप्त हो गई। सार्वजनिक उत्सव बहुत नहीं हो सके, लेकिन रचना जगत में भी ऐसे अवसरों के उत्सव होते ही हैं और कई बार तिथियों के बाद भी उनका क्रम बना रहता है। संगीत नाटक अकादमी (दिल्ली) और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी (लखनऊ) ने अपनी पत्रिकाओं के अंक उन पर एकाग्र किए हैं। पंडित रविशंकर पर ढेरों लेखों, साक्षात्कारों और चित्रों से युक्त ‘संगना’ और ‘छायानट’ के ये विशेषांक जल्द ही पाठकों तक पहुंचने वाले हैं। इसी वर्ष एक उपन्यास भी आया है जो बाबा अलाउद्दीन खान, उनकी बेटी अन्नपूर्णा देवी और बेटे अली अकबर खान के जीवन को केंद्र में रखकर चलता है। हालांकि रणोन्द्र के इस ‘गूंगी रुलाई का कोरस’ नामक उपन्यास में इन कलाकारों के नाम बदले हुए हैं, लेकिन कई सारी घटनाएं ऐसी हैं, जिन्हें आसानी से पहचाना और सच्ची घटनाओं से जोड़कर देखा जा सकता है। उपन्यास के ऐसे ही कई हिस्से पंडित रविशंकर के अन्नपूर्णा देवी और बेटे शुभेन्द्र से लेकर रिश्ते को भी है। सितार के जरिए भारतीय संगीत को एक नये ढंग से व्याख्यायित करने वाले रविशंकर सच्चे अथरे में सांस्कृतिक राजदूत थे। उन्हीं के माध्यम से भारतीय संगीत विश्व के ढेर सारे देशों में लोकप्रिय हो सका। पाश्चात्य संगीत से जुगलबंदी की भी उन्होंने नई मिसालें बनाई। बहुत सारे विदेशी कलाकारों के साथ बजाया लेकिन भारतीय संगीत की गरिमा कम नहीं होने दी। जुबिन मेहता, येहूदी मेन्यूहिन जैसे कलाकारों के साथ उनकी जुगलबंदी को खूब याद किया जाता है। उनकी लोकप्रियता ऐसी थी कि व्यापक विदेशी समुदाय हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का दीवाना बन गया। भारतीय कलाकारों का बड़ा वक्त विदेश में बीतने लगा, अकादमियां खुलने लगीं, ढेर सारा पैसा आने लगा। यह दीवानगी आज तक बनी हुई है। पंडित रविशंकर ने कई सारे शिष्य तैयार किए।

कर्नाटक संगीत के बहुत सारे रागों और तालों को हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में लोकप्रिय किया, नये राग बनाए, फिल्मों में सगीत दिया। वे बहुत ही प्रयोगशील और हमेशा कुछ-न-कुछ नया करते रहने वाले कलाकार थे, लेकिन पहली पत्नी अन्नपूर्णा देवी और बेटा शुभेन्द्र शंकर पंडित रविशंकर के जीवन के वे अध्याय हैं जो किसी दाग की तरह उनकी आभा को कम करते हैं। रविशंकर बाबा के शिष्य थे और वहीं उनका अन्नपूर्णा देवी से विवाह हो गया। दोनों के साथ कार्यक्रम होने लगे। कहते हैं कि अन्नपूर्णा देवी को अधिक प्रशंसा मिलने लगी और यहीं पंडित रविशंकर के मन में ईष्र्या का जन्म हुआ। अन्नपूर्णा देवी ने सार्वजनिक प्रदर्शन बंद कर दिए। फिर भी रिश्ता सुधर न सका और फिर दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया। इस पूरी कथा के साथ आप बासु चटर्जी की फिल्म ‘अभिमान’ को याद कर सकते हैं। अन्नपूर्णा देवी की प्रतिभा का संगीत जगत कायल था। उस्ताद अमीर खान ने एक बार कहा था, अन्नपूर्णा देवी में बाबा अलाउद्दीन खान 80 प्रतिशत, अली अकबर में 70 प्रतिशत और रविशंकर में 40 प्रतिशत हैं। खुद अन्नपूर्णा देवी के भाई उस्ताद अली अकबर खान मानते थे, रविशंकर, पन्नालाल घोष और मुझे एक तरफ तथा अन्नपूर्णा देवी को दूसरी तरफ रखें तो भी अन्नपूर्णा देवी का संगीत अधिक श्रेष्ठ माना जाएगा।
याद करते चलें कि पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, नित्यानंद हल्दीपुर जैसे विख्यात कलाकार, समाज से खुद को बिल्कुल काट लेने वाली अन्नपूर्णा देवी के ही शिष्य हैं, लेकिन यह अन्नपूर्णा देवी से पंडित रविशंकर के रिश्ते का अंत नहीं था। रविशंकर और अन्नपूर्णा देवी के अलग होने पर शुभेन्द्र मां के साथ ही रह गए थे और मां ने उन्हें संगीत की विधिवत शिक्षा शुरू कराई थी। यह संगीत सुनकर पं. रविशंकर ने बेटे को अमेरिका ले जाने की योजना बनाई लेकिन मां तैयार नहीं थी क्योंकि अभी कुछ वर्षो की शिक्षा शेष थी। ऐसे घटनाक्रम हुए कि शुभेन्द्र पिता के साथ अमेरिका चले गए, तालीम अधूरी रह गई। कई वर्षो बाद पुणो में पिता के साथ हुए कार्यक्रम में उनकी इस बात के लिए आलोचना हुई कि उनका संगीत अब पहले जैसा नहीं रहा। शुभेन्द्र यह तय कर लौटे कि वे फिर हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत को फिर समय देंगे लेकिन ऐसा हो न सका। बीमार हुए और फिर 50 की उम्र में ही उनका निधन हो गया। पंडित रविशंकर को याद करते हुए हमें इन सारी बातों की भी याद आती है!

आलोक पराड़कर


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