सरोकार : खबरों में महिलाएं कहीं नहीं हैं
पिछले हफ्ते अमेरिका की ब्रॉडकास्टिंग कंपनी एबीसी ने यह बताया कि उसने लिंग समानता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है।
सरोकार : खबरों में महिलाएं कहीं नहीं हैं |
मार्च में उसके न्यूज कवरेज में नजर आने वाले जितने पुरुष थे, उतनी ही महिलाएं भी थीं। यह कुछ अलग हुआ है। दुनिया भर में खबरों में अधिकतर पुरुष नजर आते हैं, औरतों की संख्या बहुत कम होती है। समाज में लिंग भेद का जीता-जागता उदाहरण खबरों की दुनिया में भी नजर आता है। इंटरनेशनल विमेन्स मीडिया फाउंडेशन ने विश्व भर में न्यूज कवरेज पर अध्ययन किए हैं। इनसे पता चलता है कि इनमें 70 फीसद से अधिक पुरुषों का जिक्र होता है, और महिलाओं का 30 फीसद से भी कम। इसके अलावा खबरों में जिन एक्सपर्ट्स की राय ली जाती है, उनमें 80 फीसद से भी ज्यादा पुरुष होते हैं।
वैसे खुद मीडिया में इस बात को समझा भी गया है। बीबीसी ने इसके लिए 2017 में ही काम करना शुरू कर दिया था। उसने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था- 50:50 इक्वालिटी प्रोजेक्ट। एबीसी ने इसे दिसम्बर, 2018 में शुरू किया। फिर ब्लूमबर्ग ने ऐसी ही एक पहल की, लेकिन इन कार्यक्रमों के बावजूद ग्लोबल मीडिया मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट का कहना है कि इस दिशा में जो काम हो रहा है, उसकी रफ्तार बहुत धीमी है। खबरों में महिलाओं की मौजूदगी अब भी बहुत कम है। उन्हें खबरों में जगह नहीं दी जाती। इस सिलसिले में पर्थ, ऑस्ट्रेलिया की करटिन यूनिवर्सिटी की जर्नलिज्म डिस्पलिन लीड कैथरीन शाइन ने एक रिसर्च की है। बातचीत में बहुतों ने कहा कि वे न्यूज स्टोरी का हिस्सा तो बनना चाहती हैं, लेकिन लोग उनसे संपर्क नहीं करते। इसी से उन्हें उन लोगों से बातचीत करने में हिचक होती है।
इससे पहले ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया में उच्च पदों पर बैठे पत्रकारों, संपादकों और एग्जीक्यूटिव्स ने यह माना था कि दशकों से उनकी इंडस्ट्री औरतों के साथ दोयम दरजे का व्यवहार करती है। न्यूज सोर्स और न्यूजमेकर्स, दोनों स्तरों पर महिलाओं को स्टीरियोटाइप किया जाता है, और अलग-थलग भी किया जाता है। उसके अपने यूनियन मीडिया, इंटरटेनमेंट एंड आर्ट्स अलायंस ने इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स के साथ एक रिपोर्ट तैयार की थी। वह भी 1996 में। इसमें कहा गया था कि न्यूजरूम में हर स्तर पर महिलाओं को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है, और ऐसा करना जारी है। इस पर 2010 में लेखिका एवं मीडिया रिसर्चर एंजेला रोमानो ने एक रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट में उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के सभी न्यूज प्लेटफार्म्स पर जिन न्यूज स्टोरीज का अध्ययन किया था, उनमें महिला सोर्स सिर्फ 24 फीसद थे। इसके अलावा जिन खबरों का स्रोत महिलाएं थीं, उनमें भी उनका जिक्र सिर्फ पत्नी, मां, बेटी, बहन के तौर पर किया गया था, या फिर वे पीड़ित थीं। यूएन विमेन ने 2019 में एक रिपोर्ट में कहा था कि महिला पत्रकारों को भारत में प्रमुख संगठनों में पयराप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। ‘भारतीय मीडिया में लैंगिक असमानता’ नाम की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं का प्रतिनिधित्व अखबार और टेलीविजन के मुकाबले ऑनलाइन मीडिया में बेहतर है। अखबारों में स्थिति बेहद खराब है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन पोर्टलों में 26.3 फीसद शीर्ष नौकरियों में महिलाएं हैं, जबकि टीवी चैनलों में 20.9 प्रतिशत और पत्र-पत्रिकाओं में 13.6 प्रतिशत महिलाएं नेतृत्व वाले पदों यानी प्रधान संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख या इनपुट-आउटपुट संपादक हैं।
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