सरोकार : इटली में भी घर का काम औरतों के ही जिम्मे

Last Updated 21 Mar 2021 12:24:42 AM IST

घर के काम को जेंडर से जोड़कर देखना, किसी एक समाज की प्रवृत्ति नहीं है। न ही यह किसी खास देश से जुड़ा हुआ है।


सरोकार : इटली में भी घर का काम औरतों के ही जिम्मे

अभी इटली से खबर आई है कि कैसे कोविड-19 के मामले में भी ऐसे ही स्टीरियोटाइप देखने को मिल रहे हैं। इटली के लॉम्बार्डी क्षेत्र के शहर मिलान की हेल्थ अथॉरिटी ने कोविड-19 के रिकवर होते मरीजों को प्रश्नावली भेजी। इरादा था कि रिकवर होने वाले मरीजों पर कोरोना वायरस क्या असर छोड़ जाता है। छोटे बड़े काम, जैसे शॉपिंग, टेलीफोन इस्तेमाल करने, वाहन चलाने या सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल करने में उन्हें कैसा महसूस हो रहा है। इन मरीजों को जांच के लिए फिर से अस्पताल बुलाया गया था। दिलचस्प यह है कि खाना पकाने, घर संभालने और कपड़े धोने से जुड़े सवाल सिर्फ औरतों से किए गए थे।
हुआ यह कि एक एक्टिविस्ट ग्रुप के एक प्रवक्ता को भी यह प्रश्नावली मिली। यह ग्रुप हर किस्म के भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करता है। जब उस प्रवक्ता को सवाल मिले, तो उसका माथा ठनक गया। उसने प्रश्नावली को अपने फेसबुक पेज पर डाला। पोस्ट के नीचे टिप्पणियों में इस प्रश्नावली की खूब आलोचना हुई। लोगों ने इसे ‘सेक्सिस्ट’ बताया। दरअसल, यह प्रश्नावली 1969 की एक अमेरिकी प्रश्नावली का इटैलियन अनुवाद था। तब अमेरिका में इसे बुजुर्ग लोगों के बीच बांटा जाता था ताकि पता लगाया जा सके कि क्या वे अपने रोजाना के कामों में अपने काम कर पाते हैं। लेकिन अमेरिका की उस प्रश्नावली में औरतों के लिए अलग से कोई सवाल नहीं होते थे। अब मिलान की हेल्थ अथॉरिटी ने इसे अनुवाद की गलती बताया है और कहा कि औरतों से भेदभाव करने का उसका कोई इरादा नहीं था। अब वह लोगों को यह प्रश्नावली नहीं दे रही।

वैसे दुनिया भर में घर के काम को औरतों से ही जोड़कर देखा जाता है। घर के काम यानी अनपेड वर्क। दुनिया भर में ज्यादातर अनपेड वर्क औरतें ही करती हैं- करीब 75%। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि इन्हें राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाए तो अनपेड केयर इकोनॉमी जीडीपी के 15 से 50% तक बैठेगी। भारत में ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक कोऑपरेशन एंड डवलपमेंट (ओईसीडी) के अध्ययन में पहले ही कहा जा चुका है कि पुरु षों के पास आराम के लिए एक दिन में औसत 703 मिनट होते हैं, तो औरतों के पास सिर्फ  221 मिनट। वह यह भी कहता है कि चूंकि यह अनपेड है इसीलिए ज्यादातर औरतों द्वारा किया जाता है। इसीलिए संगठन से जुड़े कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि होम मेकर्स जो काम करती हैं, उसे राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए। इसे नजरंदाज करके हम अर्थव्यवस्था में औरतों के योगदान को अंडरएस्टिमेट करते हैं। अनपेड वर्क को पेड बनाने का अभियान दुनिया भर में चल रहा है। वह भी कई सालों से।1972 में सेल्मा जेम्स ने इटली में इंटरनेशनल वेजेज फॉर हाउसवर्क कैंपेन शुरू किया था। कैंपेन का कहना था कि हाउसवर्क औद्योगिक गतिविधि का आधार होता है और इसीलिए इसे पेड होना चाहिए। इसके बाद यह कैंपेन ब्रिटेन और अमेरिका पहुंचा। हाल में 2014 में इटैलियन वकील और पूर्व सांसद गुइलिया बोंगिओर्नो ने प्रस्ताव रखा था कि होम मेकर्स को सैलरी मिलने से घरेलू हिंसा खत्म होने की उम्मीद की जा सकती है। अक्सर औरतें एक खराब रिलेशनिशप को इसीलिए ढोती रहती हैं कि उनके पास पैसे नहीं होते। पतियों पर निर्भर रहती हैं। इस लिहाज से भी सोचा जा सकता है और होम मेकर के रोल की कीमत तय हो सकती है।

माशा


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