बतंगड़ बेतुक : खेलिंगे, लड़िंगे, मरिंगे, मारिंगे

Last Updated 14 Mar 2021 12:38:00 AM IST

झल्लन हमें देखते ही बोला, ‘ददाजू, खेलबो, लड़बो, रार ठानबो और जीतबो, नहीं तो मरबो या मारबो।’ हमने कहा, ‘क्या तू बंगाल से आ रहा है जो वहां के नारे उठा के ला रहा है?’


बतंगड़ बेतुक : खेलिंगे, लड़िंगे, मरिंगे, मारिंगे

झल्लन बोला, ‘नाहिं ददाजू, ये नारे हमने पहले उठा लिये हैं और इन नारों को लेकर हम बंगाल का टिकट कटा लिये हैं। वहां जाएंगे और अपने नारों पर नयी धार धरेंगे, चाहे कुछ भी हो पर लड़ के इस बार आर-पार करेंगे।’ हमने कहा, ‘लड़ने के लिए बंगाल जाने की क्या जरूरत है, यहीं किसी को ताल ठोंक दे और जीत के लिए सारी ताकत झोंक दे।’ झल्लन बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, यहां हम अकेले किसी के आगे ताल ठोंकेंगे तो अगला हमें बहुत ठोंकेगा, तब हमें कुटने से कौन रोकेगा? और ददाजू, लड़ाई का असली मजा तो लड़ाई के मैदान में आता है, मैदान से बाहर लड़ो तो सब बेमजा हो जाता है।’ हमने कहा, ‘तो बंगाल तुझे लड़ाई का मैदान नजर आ रहा है जो लड़ने का मजा लेने वहां जा रहा है? वहां क्या करेगा, लड़ाई दुर्गावाहिनी टीएमसी और जयश्रीराम सेना बीजेपी के बीच है, तू वहां किसके पक्ष में लड़ेगा?’
झल्लन बोला, ‘यही शशोपंज है ददाजू जो हम दूर नहीं कर पा रहे हैं, किसकी तरफ से लड़ें यह समझ नहीं पा रहे हैं। जयश्रीराम सेना कह रही है कि वह दीदी दुर्गा का मठ गिराकर रहेगी और उधर दुर्गावाहिनी कह रही है कि वह श्रीराम सेना को देश की राजधानी से हटाकर रहेगी। श्रीराम सेना दुर्गावाहिनी को कटमनिया लुटेरा बता रही है, बंगाल के विकास का अवरोध जता रही है, गरीबों का दुश्मन दिखा रही है, दूसरी ओर दुर्गावाहिनी जयश्रीराम सेना को झूठी, अफवाहबाज बता रही है जो गरीबों के लिए घड़ियाली आंसू बहा रही है, किसानों को सता रही है और अपने कटखनेपन से पुन: बंगभंग कराने जा रही है। इधर के सैनिक शहीद माने जा रहे हैं तो उधर के सैनिक बेमौत मारे जा रहे हैं और उधर के सैनिक शहीद हो रहे हैं तो इधर के सैनिक अपनी मौत का मातम मना रहे हैं। लड़ाई भयंकर चल रही है और पल्ले पड़-पड़ के भी हमारी समझ के पल्ले नहीं पड़ रही है। पर ददाजू, हम बौरिया गये हैं कि इधर जायें या उधर जायें, आप से दरख्वास्त है कि आप अपनी राय बताएं और हमें लड़ने का सही रास्ता दिखाएं।’

हमने कहा, ‘इधर तो वहां नया पंगा हो गया है, दीदी पर हमला हुआ है और दुर्गावाहिनी का कहना है कि हमला जयश्रीराम सेना ने किया है और उधर जयश्रीराम सेना कह रही है कि दीदी हार से डर गयी हैं सो सहानुभूति पाने के लिए उन्होंने दुर्घटना को हमला बताया है, हमले का सिर्फ नाटक रचाया है।’ झल्लन बोला, ‘वही तो ददाजू, इधर से देखें तो दुर्घटना में हमलावरी नजर आ रही है और उधर से देखें तो हमलावरी में दुर्घटना नजर आ रही है। हम असमंजस में हैं कि किससे हमदर्दी रखें और किसे गरियाएं, जिससे हमदर्दी है उसे गरियाएं या जिसे गरियाना चाहते हैं उससे हमदर्दी दिखाएं।’
हमने कहा, ‘तू चुपचाप भी तो रह सकता है जो हो रहा है उसे नजरअंदाज भी तो कर सकता है।’ झल्लन बोला, ‘यहीं आप गलत हो ददाजू, पूरे देश में युद्धनाद हो रहा है और कोई इधर से तो कोई उधर से लड़ने को बेताब हो रहा है। ऐसे में हम चुपचाप होकर रह जायें यह तो सही नहीं होगा, हमारे राष्ट्रधर्म का निर्वाह भी नहीं होगा, और ददाजू, हमारे दिल में लड़ाई की जो ललक उठ रही है उसका क्या करेंगे, सो सोचे हैं कि चाहे जिससे लड़ें पर लड़कर रहेंगे।’ हमने कहा, ‘पर तुझे ये तो तय करना पड़ेगा कि किसके पक्ष में और किसके विपक्ष में लड़ेगा या हवा में ही तलवार भांजता रहेगा।’
झल्लन बोला, ‘वही तो ददाजू, यहीं तो हम आपसे सहारा मांग रहे हैं, अपनी भटकती नाव का किनारा मांग रहे हैं। हम लड़ने तो जरूर जा रहे हैं पर इससे लड़ें या उससे लड़ें यही तय नहीं कर पा रहे हैं। वैसे हम सोचें हैं कि जीतने वाले की तरफ से लड़ें और हारने वाले से जा भिड़ें।’ हमने कहा, ‘तो तुझे क्या लगता है, वहां कौन किस पर भारी पड़ेगा जिसके पक्ष में तू लड़ेगा?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, कह तो रहे हैं कि यहीं तो हम अटक जाते हैं और हार-जीत का फैसला करने से पहले ही भटक जाते हैं। जब दीदी दुर्गा शेरनी सी दहाड़ती हैं तो लगता है कि श्रीराम सेना और उसके नायकों-महानायकों को कच्चा खा जाएंगी, उनकी हड्डियां तक चबा जाएंगी। जब श्रीराम सेना के नायक-महानायक बोलने को उठते हैं तो सारे दिग-दिगंत डोलने लगते हैं, लगता है बंगाल में जो कभी नहीं हुआ वो इस बार हो जाएगा, उत्तर का बंगाल दक्षिण और पूरब का बंगाल पश्चिम हो जाएगा।’ हमने कहा, ‘वो सब ठीक, पर खुद को निसंशय तो कर, किससे लड़ेगा यह तो तय कर।’
झल्लन बोला, ‘सुनो ददाजू, तय कर पायें या न कर पायें पर खेलिंगे, लड़िंगे, उखाड़िंगे, पछाड़िंगे, जीतिंगे या न जीतिंगे पर मरिंगे और मारिंगे, और जा मुलुक कू चैन ते नाहिं बैठन दिंगे।’

विभांशु दिव्याल


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