सरोकार : जापान में सबसे बड़ा महिला विरोधी कौन?

Last Updated 14 Mar 2021 12:13:13 AM IST

जापान के परंपरावादी समाज में लिंगभेद एक सच्चाई है। इस मुद्दे को जापान के ही लोग बार-बार उठाते रहते हैं। हाल ही में नोअसेप्स नाम के एक ग्रुप ने जापान के मोस्ट सेक्सिएस्ट कमेंट ऑफ द ईयर नाम से एक ऑनलाइन वोट किया।


सरोकार : जापान में सबसे बड़ा महिला विरोधी कौन?

इसमें साल के सबसे बुरे महिला विरोधी बयानों को शामिल किया गया था। दिलचस्प यह है कि इसमें टॉप पर रहने वाली खुद महिला हैं। ये हैं जापान की सत्ताधारी पार्टी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद मिओ सुगिता। सुगिता ने एक मौके पर कहा था कि महिलाएं अक्सर झूठ बोलती हैं कि उनके साथ यौन हिंसा हुई है। इस ऑनलाइन वोट में टोक्यो 2020 ओलंपिक के पूर्व प्रमुख योशिरो मोरी दूसरे नम्बर पर हैं। पिछले ही महीने उन्होंने ओलंपिक की आयोजन समिति से इस्तीफा दिया है। इस्तीफे की वजह है कि उन्होंने मीटिंग्स में महिलाएं बहुत बोलती हैं, जैसा बयान दिया था। वैसे मोरी जापान के प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं। नोअसेप्स का मतलब है, नो टू ऑल सेक्सिएस्ट पब्लिक स्पीचेज। इस ग्रुप को शिक्षाविद् और एक्टिविस्ट्स ने बनाया है। इस वोट में पहले नम्बर पर आने वाली सुगिता एलजीबीटीक्यूप्लस लोगों को भी अपमानित करती रही हैं। उन्होंने एक बार कहा था कि सेम सेक्स कपल्स अनुत्पादक होते हैं क्योंकि बच्चों को जन्म नहीं दे सकते।
जापान में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मामला हमेशा से चिंता का विषय रहा है। वहां की सरकार का रवैया भी काफी स्त्री विरोधी है। सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी का इतिहास भी दागदार है। मोरी के इस्तीफे के बाद उस पर दबाव बना है कि स्त्री-पुरुष समानता को बढ़ावा दे। महिलाओं को पूरा प्रतिनिधित्व भी दे। इसी से मीटिंग्स में महिलाओं को बुलाया जा रहा है, पर बोलने नहीं दिया जा रहा। पिछले दिनों 12 सदस्यों वाली एक मीटिंग में पांच महिलाओं को बुलाया जरूर गया लेकिन इस शर्त के साथ कि चुपचाप बैठी रहेंगी। उनकी कोई राय हो तो लिखकर बता सकती हैं। इस प्रस्ताव का सोशल मीडिया पर खूब मजाक उड़ाया गया। कहा गया कि भले ही प्रधानमंत्री योशिहिदे सूगा ने अपनी कैबिनेट में दो महिलाओं को जगह दी है लेकिन सोच फिर भी नहीं बदली है। इसी से जापान को ‘डेमोक्रेसी विदआउट विमैन’ कहा जाता है।

जापान में लिंगभेद कितना गहरा है, इसे वहां की संसद के निचले सदन के संयोजन में देखा जा सकता है। वहां सिर्फ  9.9 फीसद सांसद महिलाएं हैं। राष्ट्रीय संसदों के विव्यापी संगठन अंतरसंसदीय संघ के अनुसार, यह आंकड़ा 25.1 फीसद के औसत से काफी कम है। विश्व आर्थिक मंच की 2020 की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि लिंग समानता की सूची में 153 देश हैं, और जापान का स्थान इस सूची में 121वां है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिहाज से यह अंतर सबसे अधिक है। पिछले वर्ष के मुकाबले जापान 11 स्थान फिसल भी गया है।
अब अपने देश की भी बात। भारत की संसद में महिलाओं की मौजूदगी 13 फीसद है। एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि इसके विपरीत राज्य विधानसभाओं के कुल 4,120 विधायकों में महिलाएं सिर्फ  9 फीसद हैं। 2002-2019 को महिला उम्मीदवारों के लिए सबसे बेहतर अवधि मानी जाता है। उसमें हर 12 विधायकों में से सिर्फ  एक महिला विधायक थी। हाल में 2020 में बिहार के विधानसभा चुनाव हुए हैं और 217 पुरु ष विधायक बने हैं, और सिर्फ  26 महिलाएं जीती हैं। इससे पहले 2015 में पुरु ष और महिला विधायकों की संख्या क्रमश: 215 और 28 थी।

माशा


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