स्वच्छ पेयजल : जीवन का मौलिक अधिकार

Last Updated 21 Jan 2021 04:11:17 AM IST

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वच्छ जल को नागरिकों का मूल अधिकार मानते हुए कहा है कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के अंतर्गत सरकार की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक नागरिक को प्रदूषण-मुक्त स्वच्छ जल उपलब्ध करवाए।


स्वच्छ पेयजल : जीवन का मौलिक अधिकार

संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ-साथ अनेक राज्यों के उच्च न्यायालयों ने भी पीने के साफ पानी को जीवन का मौलिक अधिकार माना है। महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि स्वच्छ जल की वर्तमान स्थिति एवं सरकार की उदासीनता को देखते हुए क्या प्रत्येक नागरिक को पीने के साफ पानी का मौलिक अधिकार मिल सकेगा?
नगरीकरण और औद्योगिकीकरण का तेजी से होता प्रसार, वैश्विक तापमान में निरंतर होती वृद्वि, तेजी से घटते भूजल स्तर, पानी की मांग में निरंतर होती वृद्वि आदि ऐसे कारक हैं, जिनसे यह स्थिति और भी विकट होती जा रही है। संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार देश के 21 शहर जीरो ग्राउंड वॉटर लेवल पर पहुंच गए हैं यानी इन शहरों के पास पीने का खुद का पानी भी नहीं होगा। इन शहरों में बेंगलुरू, चेन्नई, दिल्ली, भोपाल और हैदराबाद जैसे शहर शामिल हैं। चेन्नई में ‘डे जीरो’ जैसे हालात देखने को मिले तो पानी की कमी के कारण स्कूल, रेस्तरां, होटल आदि तक बंद करने पड़े। जल स्त्रोतों की सुरक्षा के लिए पुलिस तैनात करनी पड़ी थी। महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी को पूरा करने के लिए उत्तर प्रदेश से ट्रेनों के जरिए पानी पहुंचाया गया था। भारत में लगभग 77 करोड़ लोग या तो जल की मात्रा या फिर गुणवत्ता की समस्या से जूझ रहे हैं। सरकार के आंकड़े बताते हैं कि भारत के केवल 16 प्रतिशत घरों में ही पाइप से पानी पहुंच पाता है। यह भी विडंबना ही है कि आज के तकनीकी युग में भारत के 22 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर या इससे भी अधिक दूर तक चलना पड़ता है, तो दूसरी ओर प्रदूषित जल के कारण भारत में प्रति वर्ष दो लाख लोगों की मौत हो जाती है।

नीति आयोग की  2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार जल संकट वाले 122 देशों की सूची में भारत का 120वां स्थान है। उधर, विश्व बैंक और यूनीसेफ के अघ्ययन बताते हैं कि भारत में न केवल जल अपर्याप्त है, बल्कि इसका अंसतुलन भी बहुत व्यापक है। संयुक्त राष्ट्र ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वर्ष 2025 तक भारत में जल त्रासदी उत्पन्न हो सकती है। पानी की कमी से अनेक सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याएं उठ खड़ी हो सकती हैं।  
यद्यपि केंद्र सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वजल योजना और 2024 तक हर घर को जल पहुंचाने की योजना पर कार्य कर रही है, लेकिन राज्यों और लोगों की सहभागिता के साथ ही इस संकट से बाहर निकला जा सकता है। राष्ट्रीय जल नीति के तहत सभी को मिलकर एक बड़े प्रयास के रूप में कार्य करना होगा। जल के संरक्षण के लिए सामुदायिक सहभागिता की भावना को प्रोत्साहित करना होगा। स्थायी समाधान के लिए स्थानीयता एवं प्राकृतिक आधार एवं उचित चरणबद्व तरीके से नीतियां बनानी होंगी। शोध कार्यों को प्रोत्साहन देना होगा। वृक्षारोपण को बढ़ावा देना होगा क्योंकि भूजल के स्तर को रिचार्ज करने का यह अच्छा विकल्प है, जिससे ग्लोबल वार्मिग, बाढ़, सूखा जैसी समस्याएं भी हल होंगी। इसके अलावा, प्रत्येक नगर पालिका एवं नगर निगम को इस बात के लिए उत्तरदायी बनाया जाए कि नदियों में गिरने वाले प्रदूषित जल का पहले संयत्रों द्वारा उपचार हो। कहना न होगा कि स्वस्थ मानव के विकास के लिए जल सुरक्षा प्रदान करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और कारगर नीतियों पर विशेष ध्यान देना होगा।
यदि हम समय रहते सचेत नहीं हुए और जल संरक्षण के तरीकों पर हमने सक्रियता से कार्य नहीं किया तो मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। अमेरिकी विज्ञान लेखक लोरान आइजली ने कहा था: ‘हमारी पृथ्वी पर अगर कोई जादू है, तो वह जल है’।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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