सरोकार : ब्रिटेन में अश्वेत बनाम भारत में दलित महिलाएं
यूनाइटेड किंगडम के दौरान प्रसव के दौरान जितनी श्वेत महिलाओं की मृत्यु होती है, उससे कहीं ज्यादा अश्वेत महिलाएं मौत का शिकार होती हैं।
सरोकार : ब्रिटेन में अश्वेत बनाम भारत में दलित महिलाएं |
पता चला है कि स्वास्थ्य के लिहाज से उन पर चार गुना ज्यादा जोखिम होता है। जाहिर है कि एशिया महाद्वीप के बनिस्बत गरीब होने के कारण एशियाई मूल की महिलाओं को भी दोहरा खतरा होता है। मातृ मृत्यु दर और नवजात के स्वास्थ्य पर केंद्रित ब्रिटेन की एक हालिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस साल कोरोना वायरस के कारण यह असमानता यकीनन और बढ़ने वाली है। रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े 2016 से 2018 के बीच के हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इस अवधि के दौरान यूनाइटेड किंगडम में अश्वेत महिलाओं में मातृ मृत्यु दर 34 थी, एशियाई महिलाओं में 15 और ेत महिलाओं में यह दर 8 थी। मातृ मृत्यु दर प्रति एक लाख जीवित जन्म पर निकाली जाती है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अश्वेत महिलाएं अधिकतर वंचित समूहों वाली हैं। जाहिर है कि उन्हें पूरा पोषण और उचित देखभाल नहीं मिलती। इसीलिए उन्हें कई बार गर्भावस्था या प्रसव के दौरान मौत से जूझना पड़ता है। रिपोर्ट में उन तमाम तरीकों की तलाश की गई है, जिनकी मदद से सभी सामाजिक वगरे में मातृ मृत्यु दर को कम किया जा सके।
यूनाइटेड किंग्डम और संयुक्त राज्य अमेरिका में अश्वेत महिलाओं की जो स्थिति है, अपने यहां दलित महिलाओं का भी वही हाल है। इसकी असलियत देखनी है तो 2018 की संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट को पढ़ा जा सकता है-‘टर्निग प्रॉमिसेस इन टू एक्शन-जेंडर इक्वॉलिटी इन द 2030’ एजेंडा नाम की इस रिपोर्ट कहा गया था कि एक सवर्ण महिला की तुलना में एक दलित महिला करीब 14.6 साल कम जीती है। ‘इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ दलित स्टडीज’ के 2013 के एक शोध का हवाला देते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया था कि जहां अगड़ी जाति की एक महिला की औसत उम्र 54.1 साल है, वहीं एक दलित महिला औसतन 39.5 साल ही जीती है।
इस रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण दलित महिलाओं को उचित साफ-सफाई न मिलना, पानी की कमी और समुचित स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। इसअंतर के लिए आर्थिक स्थिति और जगह/परिवेश जैसे पहलू भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। उदाहरण के लिए किसी ग्रामीण घर की 20-24 साल की लड़की की शादी 18 साल की उम्र से पहले होने की आशंका शहर में रहने वाली लड़की की तुलना में पांच गुना ज्यादा होती है। शहरी परिवेश की महिला की तुलना में ग्रामीण महिला के कम उम्र में मां बनने, अपने पैसे का उपयोग न कर सकने या खर्च के बारे में जानकारी न होने की आशंकाएं भी कम ही रहती हैं। रिपोर्ट में कहा गया था कि महिला के गरीब होने की आशंका तब और बढ़ जाती है, अगर उसके पास कोई जमीन नहीं हो और वह अनुसूचित जाति से संबंध रखती हो। इसके अलावा, महिला का कम शिक्षित होना और सामाजिक वर्गीकरण में उसकी स्थिति भी यह तय करती है कि यदि वह कहीं वेतन पर काम करती है, तो वहां भी उसे शोषण का सामना करना होगा। जनगणना के आंकड़े कुछ अन्य तथ्यों को भी पेश करते हैं। दलितों में शिशु लिंग अनुपात, 2001 में प्रति 1,000 लड़कों पर 938 से गिरकर 2011 में 933 हो गया है। इसका मतलब हुआ कि अधिकांश दलित लड़कियों का या तो गर्भपात किया जा रहा है, या ठीक प्रकार ध्यान न दे पाने के कारण उनकी मृत्यु हो रही है।
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