पक्षियों की मौत : वजह और भी हैं

Last Updated 15 Jan 2021 12:26:06 AM IST

इस बार पक्षियों के मरने की शुरुआत कौओं से हुई-कौआ एक ऐसा पक्षी है जिसकी प्रतिरोध क्षमता सबसे मजबूत कहलाती है।


पक्षियों की मौत : वजह और भी हैं

कौए भी  मध्य प्रदेश के मालवा के मंदसौर-नीमच व उससे सटे राजस्थान के झालावाड़ जिले में मरे मिले। जान लें इन  इलाकों में प्रवासी पक्षी कम ही आते हैं। उसके बाद हिमाचल प्रदेश में पोंग झील में प्रवासी पक्षी मारे गए और फिर केरल में पालतू मुर्गी व बतख। हमारे यहां कई सालों से इस मौसम में र्बड-फ्लू का शोर होता है और अभी तक किसी इंसान के इससे मारे जाने की खबर मिली नहीं। हां, मुर्गी पालन में लगे लोगों को भारी नुकसान होता है।

यह तो स्पष्ट है कि इसी मौसम में पक्षियों के मरने की वजह हजारो किलोमीटर दूर से जीवन की उम्मीद के साथ आने वाले वे पक्षी होते हैं, जिनकी पिछली कई पुश्तें, सदियों इस मौसम में यहां आती थीं। चूंकि ये तो सदियों से आते रहे हैं व उनके साथ नभचरों के मौत का सिलसिला कुछ ही दशकों का है तो जाहिर है कि असली वजह उनके प्राकृतिक पर्यावास में लगातार हो रही छेड़छाड़ व बहुत कुछ जलवायु परिवर्तन का असर भी है। यह सभी जानते हैं कि आर्कटिक क्षेत्र और उत्तरी ध्रुव में जब तापमान शून्य से चालीस डिगरी तक नीचे जाने लगता है तो वहां के पक्षी भारत की ओर आ जाते हैं ऐसा हजारों साल से हो रहा है, ये पक्षी किस तरह रास्ता  पहचानते हैं, किस तरह हजारों किलोमीटर उड़ कर आते हैं, किस तरह ठीक उसी जगह आते हैं, जहां उनके दादा-परदादा आते थे, विज्ञान के लिए भी अनसुलझी पहेली की तरह है।

इन पक्षियों के यहां आने का मुख्य उद्देश्य भोजन की तलाश, तथा गर्मी और सर्दी से बचना होता है। यह संभव है कि उनके इस लंबे सफर में पंखों के साथ कुछ जीवाणु आते हों, लेकिन कोरोना संकट ने बता दिया है कि किस तरह घने जंगलों के जीवों के इंसानी बस्ती के लगातार करीब आने के चलते जानवरों में मिलने वाले वायरस इंसान के शरीर को प्रभावित करने के मुताबिक खुद को ढाल लेते हैं। अभी तो इन पक्षियों के वायरस दूसरे पक्षियों के डीएनए पर हमला करने लायक ताकतवर बने हैं और इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि इनकी ताकत इंसान को नुकसान पहुचाने लायक भी हो जाए। ऐसे में इस बारे में सतर्कता तो रखनी ही होगी। विदित हो मरने वाले पक्ष्यिों की पहले गर्दन लटकने लगी, उनके पंख बेदम हो गए, वे न तो चल पा रहे थे और न ही उड़ पा रहे थे। शरीर शिथिल हुआ और प्राण निकल गए।

फिलहाल तो इसे ‘र्बड-फ्लू’ कहा जा रहा है, लेकिन संभावना है कि जब वहां के पानी व मिट्टी के नमूने की गहन जांच होगी तब असली बीमारी पता चलेगी क्योंकि इस तरह के लक्षण ‘एवियन बटुलिज्म’ नामक बीमारी के होते है। यह बीमारी क्लोस्ट्रिडियम बटुलिज्म नाम के बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। यह बीमारी आमतौर पर मांसाहारी पक्षियों को ही होती है। इसके बैक्टीरिया से ग्रस्त मछली खाने या इस बीमारी का शिकार हो कर मारे गए पक्षियों का मांस खाने से इसका विस्तार होता है। संभावना यह भी है कि पानी व हवा में क्षारीयता बढ़ने से तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करने वाली बीमारी ‘हाईपर न्यूट्रिनिया’ से कुछ पक्षी, खासकर प्रवासी पक्षी मारे गए हों। इस बीमारी में पक्षी को भूख नहीं लगती है और इसकी कमजोरी से उनके प्राण निकल जाते हैं। पक्षी के मरते ही जैसे ही उसकी प्रतिरोध क्षमता शून्य हुई, उसके पंख व अन्य स्थानों पर छुपे बैठे कई किस्म के वायरस सक्रिय हो जाते हैं व दूसरे पक्षी इसकी चपेट में आते हैं।

इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि दूषित पानी से मरी मछलियों को दूर देा से थके-भूखे आए पक्षियों ने खा लिया हो व उससे एवियन बटुलिज्म के बीज पड़ गए हों। यह सभी जानते हैं कि एवियन बटुलिज्म का प्रकोप तभी होता है जब विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक कारक समवर्ती रूप से होते हैं। इसमें आम तौर पर गर्म पानी के तापमान, एनोक्सिक (अक्सीजन से वंचित) की स्थिति और पौधों, शैवाल या अन्य जलचरों के प्रतिकूल परिस्थिति का निर्माण आदि प्रमुख हैं। यह सर्वविदित है कि धरती का तापमान बढ़ना और जलवायु चक्र में बदलाव से भारत बुरी तरह जूझा रहा है। पर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनील पक्षी उनके प्राकृतिक पर्यावास में अत्यधिक मानव दखल, प्रदूषण, भोजन के अभाव से भी परेशान है। सनद रहे हमारे यहां साल-दर-साल प्रवासी पक्षियों  की संख्या घटती जा रही है। प्रकृति संतुलन और जीवन-चक्र में प्रवासी पक्षियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इनका इस तरह से मारा जाना असल में अनिष्टकारी है। अब पक्ष्यिों को रोका या टोका तो जा नहीं सकता, हमें ही अपने पर्यावास, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनो को नैसर्गिक रूप में अक्षुण्ण रखने पर गंभीर होना होगा।

पंकज चतुर्वेदी


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