डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा : मोदी के लिए बैटिंग
वह आया, देखा, विजयी हुआ-अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यस्त भारत दौरे के लिए शेक्सपियर की यह उक्ति पूर्णत: चरितार्थ कही जा सकती है।
डोनाल्ड ट्रंप का भारत दौरा : मोदी के लिए बैटिंग |
ट्रंप, जिनकी छवि एक सीईओ सरीखी है, ने अपने भारत दौरे (24 से 26 फरवरी) के दौरान इस छवि की छाप छोड़ी। अमेरिकी राष्ट्रपति के इस साल नवम्बर माह में होने वाले चुनाव में चालीस लाख भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं के समर्थन के तलबगार ट्रंप एक राजनेता के रूप में भारत आए थे और उन्होंने इस लिहाज से अच्छा प्रयास किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपने व्यक्तिगत उम्दा संबंधों के बल पर अपना लक्ष्य साधने के लिए उन्होंने दोनों पक्षों को साध लिया। मोदी को ‘मजबूत नेता’, ‘मजबूत वार्ताकार’ और ‘धार्मिक व्यक्ति’ कहकर उन्होंने अपना पक्ष मजबूत किया। इन शब्दों के जरिए उन्होंने राजनेता मोदी को जीत का पत्ता थमा दिया है, जिसके बल पर वह कभी भी जब चाहेंगे इस्तेमाल कर सकेंगे। छह महीने बाद बिहार में होने वाले चुनाव से अपने इस ब्लैंक ट्रंप चेक को भुनाना आरंभ कर सकते हैं।
महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि ट्रंप ने मोदी के प्रति इस प्रकार का सकारात्मक रुख दिखाया जैसा आम तौर पर वह दिखाते नहीं हैं। मोदी की सिटीजन्स अमेंडमेंट एक्ट (सीएए) या कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खात्मे जैसी विवादास्पद नीतियों या मोदी की आलोचना करने से वह बचे। इससे भारतीयों को सकारात्मक संदेश दिया। ट्रंप भारत आने वाले अमेरिकी इतिहास में पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति हैं, जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा था। पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जो भारत दौरे के उपरांत सीधे अमेरिका लौट गए। पाकिस्तान या पासपड़ोस के किसी अन्य देश नहीं गए। वाशिंगटन से चले और भारत दौरे के बाद बीच में कहीं रुके बिना सीधे वतन लौट गए। यह उल्लेखनीय बात है, और यकीनन इसके महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक संकेत हैं।
दरअसल, ट्रंप ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपना सामरिक महत्त्व साबित किया है। सीएए और नवम्बर, 1984 में हुए सिख-विरोधी दंगे के बाद पिछले दिनों राजधानी में हुए भीषण दंगे जैसे ज्वलंत मुद्दों पर तटस्थ रुख दिखाया। दिल्ली के दंगे को ‘मामूली हमले’ कहकर खारिज कर दिया। दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर उनकी मोदी से कोई बातचीत नहीं हुई। इतना ही नहीं, उन्होंने दिल्ली में हिंसा को भारत का आंतरिक मामला करार दिया। भारत रत्न जैसा कितना शानदार प्रदर्शन! ट्रंप का हरेम शब्द मोदी के कानों में रस घोलने वाला था। लेकिन बड़ा सवाल है : फायदा किसे होना है-ट्रंप को या मोदी को? अमेरिका को या भारत को? अपने दोबारा चुने जाने के लिए अभियान आरंभ करने से पूर्व ट्रंप को बढ़त मिल गई है। भारत इस काम में उनके लिए बेहद मददगार साबित हुआ। ट्रंप ने भी मोदी की कृतज्ञता मन से जताई। सीएए या दिल्ली के दंगे जैसे विवादास्पद मुद्दों पर चुप्पी साध कर। कट्टर इस्लाम पर उनके कथन से नई दिल्ली की खुशी का ठिकाना न रहा। कहा कि अमेरिका और भारत मिलकर इस बुराई के खिलाफ लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाएंगे।
उन्होंने दावा किया कि उनके प्रशासन के सख्त रुख से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) का ‘शत-प्रतिशत सफाया’ हो चुका है। यह भी कहा कि सीमा पार सक्रिय आतंकी गुटों के खात्मे के लिए उनका प्रशासन पाकिस्तान के साथ मिलकर काम कर रहा है। ‘हमें इस दिशा में खासे सफल होने के संकेत मिलने लगे हैं’। हालांकि ट्रंप ने अपने दौरे के दौरान मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की और पूरा ध्यान रखा कि किसी मुद्दे पर मोदी सरकार की कोई आलोचना न करें तो यह भी ध्यान रखा कि विपक्ष को भी अच्छा संकेत दें। बीते दशकों में भारत के आर्थिक पावर हाउस के रूप में उभरने की बात कहकर उन्होंने विपक्ष की भी एक तरह से सराहना की। इतना ही नहीं, उन्होंने बीते दशकों में 21 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी से उबारने के लिए भारत की प्रशंसा भी की। हालांकि ट्रंप का दौरा छह माह बाद होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में दोबारा जीत हासिल करने के विशुद्ध राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए था, लेकिन अमेरिका का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंतव्य-चीन पर नकेल कसना-भी उनके दौरे के केंद्र में बना रहा। चीन को लेकर ट्रंप ने बड़ी कुशलता से अपना पत्ता खेला। जैसे कि बीते दशकों में भारत के आर्थिक शक्ति बनने की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत का यह उभार शांतिपूर्ण और सहज रहा है, जबकि एक अन्य आर्थिक ताकत ‘जोर-जबरदस्ती’ के बल पर उभरी। इस संदर्भ में ‘एक अन्य ताकत’ का उल्लेख चीन के लिए ही पढ़ा जा सकता है।
उन्होंने चतुष्कोणीय रणनीति का जिक्र करते हुए जोर देकर कर कहा कि भारत को आगे बढ़ते हुए अपनी भूमिका निभानी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय राजनय में चतुष्कोणीय से आशय चार-देशों के सामरिक प्रयासों से है। ये देश हैं-अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत (संभावित) जो मिलकर चीन के विस्तारवादी नजरिए पर लगाम कसने के लिए एकजुट हो रहे हैं। ट्रंप ने ब्ल्यू डॉट नेटवर्क (बीडीएन) का भी उल्लेख किया। यह एक सामरिक मुद्दा है, जो ट्रंप के भारत दौरे के उपरांत जारी संयुक्त बयान से जाहिर होता है। इसमें उन्होंने भारत के अपील की है कि भारत को बीडीएन में बढ़-चढ़कर शिरकत करनी चाहिए। माना जाता है कि बीडीएन चीन की महत्त्वाकांक्षी परियोजना बीआरआई (बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव) का जवाब होगा। हालांकि बीआरआई के विपरीत बीडीएन ढांचागत परियोजनाओं को सत्यापित करने वाला प्राधिकार मात्र है। इसमें बीआरआई की तरह ढांचागतर या अन्य परियोजनाओं के लिए ऋण या वित्त पोषण नहीं किया जाना।
बीआरआई में 73 देश सहयोगी हैं, जबकि बीडीएन में अभी मात्र तीन देश-अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ही हैं। अमेरिका चाहता है कि भारत इस मंच का चौथा सदस्य बन जाए। भारत बीआरआई में शामिल नहीं होने की घोषणा कर चुका है, लेकिन अभी तक बीडीएन पर उसने अपना रुख साफ नहीं किया है। पूरी संभावना है कि भारत आने वाले समय में बीडीएन का हिस्सा बन सकता है। ट्रंप की सराहना करनी होगी कि उन्होंने चीन का सामना करने के लिए अच्छे से मंसूबा जताया है। जो सामरिक नीति जरूरी होगी उसे जाहिर किया है। इसी के साथ, उन्होंने चीन का नाम भी नहीं लिया और अपने मन की बात कह दी। भारत आने के उपरांत रणनीतिक खेल में किसका पलड़ा ऊपर रहा? भारत दावे के साथ कह सकता है कि रणनीतिक रूप से उसे फायदा हुआ है, और इसके लिए वह तमाम कारण गिना सकता है। महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि ट्रंप ने मेजबान को संकट में नहीं डाला, बल्कि भारत और मोदी की प्रशंसा कशीदे पढ़े।
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