राम मंदिर : सौहार्द बिगाड़ने की साजिश

Last Updated 06 Dec 2019 01:44:44 AM IST

अयोध्या विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध जमीयत-ए-उल्मा-ए-हिन्द ने पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है।


राम मंदिर : सौहार्द बिगाड़ने की साजिश

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी ऐसी ही याचिका दाखिल करने का मन बनाया है। परन्तु आल इंडियामजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लेमीन (एआईएमआईएम) के ओवैसी बंधुओं-सांसद असदुद्दीन ओवैसी और उनके छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी-ने मस्जिद-मंदिर विवाद पर मुसलमानों को भड़काने और अपनी राजनीति को चमकाने के लिए भड़काऊ भाषण देने शुरू कर दिए हैं, जिससे देश में शांति-व्यवस्था और धार्मिंक सौहार्द के बिगड़ने का  खतरा पैदा हो गया है।
नि:संदेह प्रत्येक भारतीय नागरिक को सुप्रीम कोर्ट में किसी भी फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार है परन्तु इस अधिकार का उपयोग करने से पहले याचिकाकर्ता को यह भी सोचना चाहिए कि वह  अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से बहुत पहले ये वादा कर चुके थे कि वह  अदालत के फैसले को स्वीकार करेंगे। इसीलिए सुन्नी वक्फ बोर्ड और एक मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने कोर्ट के फैसले को स्वीकार करते हुए इसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने से मना कर दिया था। परन्तु जमीयत-ए -उल्मा-ए-हिन्द और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने वादे को भूल कर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का मन बनाया। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तहादुल मुस्लेमीन (एआईएमआईएम ) के अकबरु द्दीन ओवैसी ने अपने बड़े भाई असदुद्दीन ओवैसी का अनुकरण करते हुए एक बार फिर भड़काऊ भाषण देने लगे हैं।

उन्होंने कहा कि  अयोध्या में विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद थी, है और कयामत तक रहेगी। इससे पहले असदुद्दीन ओवैसी भी अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताते हुए मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन देने के अदालती आदेश को दान करार दे चुके हैं। परन्तु संतोष की बात है कि उनके भड़काऊ भाषणों के बावजूद भारतीय मुसलमान उनके बहकावे में नहीं आए। यहां एक प्रश्न यह भी उठता है कि बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी को यदि बाबरी मस्जिद से इतना ही प्रेम था तो उन्होंने मस्जिद के पक्षकारों की ओर से एक वकील के रूप में मुकदमा क्यों नहीं लड़ा। सच बात तो ये है कि उन्हें मस्जिद के मुकदमे से नहीं बल्कि अपनी राजनीति को चमकाने से अधिक लगाव है। कटु सत्य यह है कि हिन्दू-मुलिम नेताओं को मंदिर-मस्जिद से प्रेम कम और राजनीतिक लाभ की चिंता अधिक है। कांग्रेस, सपा और  बीजेपी ने भी अयोध्या विवाद से सियासी फायदे उठाए और एआईएमआईएम ने भी इस मुद्दे से राजनीतिक लाभ उठाया। वास्तव में इन नेताओं ने बेरोजगारी, गरीबी, बीमारी, साफ पानी , अच्छी सड़क और बिजली की गंभीर समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने के लिए ही मंदिर-मस्जिद जैसे भावनात्मक मुद्दों को उछाला। सियासी पार्टयिां अपने इस उद्देश्य में बहुत हद तक सफल भी रहीं। यद्यपि  जमीयत-ए -उल्मा-ए-हिन्द एक धार्मिंक संगठन है मगर इसके पदाधिकारी भी राजनीतिक लाभ उठाते रहे हैं। मसलन इसके पूर्व अध्यक्ष मरहूम मौलाना असद मदनी और उनके पुत्र मौलाना मेहमूद मदनी विभिन सियासी पार्टयिो की ओर से  राज्य सभा के सदस्य रह चुके हैं। मुमकिन है भविष्य में इस संगठन का कोई पदाधिकारी फिर राज्य सभा पहुंच जाए। कुछ भी हो धर्म और मजहब के नाम पर राजनीति देश के हित में नहीं है। सांप्रदायिक दंगे भी राजनीतिक लाभ के लिए ही कराए जाते हैं। भले ही इन दंगों से देश को जान व माल का बहुत अधिक नुकसान ही क्यों न हो। परतंत्र भारत में अंग्रेजों ने ‘बांटो और राज करो’ के सिद्धांत पर अमल कर के वर्षो हम पर राज किया। अब देसी अंग्रेज इसी सिद्धांत पर अमल कर के जनता को मूर्ख बना रहे हैं और राज कर रहे हैं।
एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन धार्मिंक उन्माद बढ़ाकर ही हैदराबाद की मुस्लिम बहुल लोक सभा सीट से कई बार चुनाव जीत चुके हैं। उनकी पार्टी ने कुछ विधान सभा क्षेत्रों में भी चुनाव जीता है। किंतु यह भी कटु सत्य है कि उनकी पार्टी किसी भी राज्य में अपना मुख्यमंत्री या केंद्र में प्रधानमंत्री कभी नहीं बना सकती। अलबत्ता ओवैसी बंधू अपने भड़काऊ  भाषणों से मुसलमानों का अहित जरूर करते हैं। इसलिए मेरी सभी मुस्लिम संगठनों और नेताओं से यह अपील है कि वे अयोध्या फैसले पर अपनी सियासी रोटियां सेंक कर पहले से ही परेशान मुसलमान भाइयों को और दुखी  न करें और देश में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगड़ने का प्रयास न करें।

असद रजा


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