वैश्विकी : ..पर दिल्ली के लिए अभी समर शेष है
वैश्विक आतंकवाद पर अपनी पैनी नजर रखने वालों का एक तबका मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की रिहाई और अमेरिकी राष्ट्रीय हितों के बीच सेतु तलाश रहा है.
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समय-समय पर वैश्विक आतंकवाद के मसले पर अमेरिका के विचलन और वैश्विक राजनीति का यथार्थ स्थापना की पुष्टि कर रहे हैं.
आम तौर पर सभी देश अपने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल अपनी नीतियां गढ़ते हैं, भला अमेरिका इसका अपवाद कैसे हो सकता है! हाल के दिनों में अमेरिकी नीतियों में जो बदलाव दिखाई दे रहा है, उससे जाहिर होता है कि अफगानिस्तान में सक्रिय हक्कानी नेटवर्क पर उसकी नजर ज्यादा है. अमेरिका में रह रहे पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने इसका संकेत भी दिया है. हक्कानी नेटवर्क एक आतंकवादी गुट है, जो अफगानिस्तान की सरकार और वहां तैनात अमेरिकी सैनिकों के खिलाफ लड़ रहा है.
लश्कर-ए-तैयबा, अल कायदा और पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालीबान से इसका संबंध है. वैचारिक स्तर पर तालिबान से जुड़ा हुआ है, और अफगानिस्तान में शरीयत कानून लागू करना इसका राजनीतिक लक्ष्य है. अमेरिका अफगानिस्तान के मोच्रे पर हक्कानी नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए पाकिस्तान से उम्मीद बांध कर चल रहा है. यही वजह है कि उसने जमात-उद- दावा और लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के प्रति नरम रुख अख्तियार किया हुआ है.
मुंबई हमले में कुछ अमेरिकी नागरिक भी मारे गए थे. तब अमेरिका ने हाफिज सईद को पकड़ने के लिए एक करोड़ डॉलर का ईनाम रखा था. इसके बावजूद उसने इसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनाया. इसकी एक वजह यह समझ में आती है कि हाफिज में अमेरिका के खिलाफ ओसामा बिन लादेन की तरह किसी आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं दिया. यह बात छिपी नहीं है कि पाकिस्तान की सरकार और खुफिया एजेंसियां आतंकवाद को शह दे रही हैं. वहां की सरकार की ओर से हाफिज को पूरी तरह सुरक्षा मिली हुई है. अदालत में उसके खिलाफ पेश किये जाने वाले एजेंसियों की तरफ से पेश किये जाने वाले कमजोर सबूतों से भी यह सांठगांठ जाहिर होती है.
शायद यही वजह है कि हाफिज के मसले पर अमेरिका किसी तरह का जोखिम नहीं लेना चाहता. आतंकवाद के मसले पर उसकी इसी दोहरी नीति के चलते पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव नहीं बन पा रहा है. हाफिज की रिहाई से यह जाहिर है कि अमेरिका उसी के खिलाफ कार्रवाई करता है, जो उसके हितों को नुकसान पहुंचाता है. आखिर, उसने ओसाम को पाकिस्तान के भीतर घुसकर मार गिराया था. हालांकि हाफिज सईद के मामले में यह फिलहाल संभव नहीं दिखता है.
इसलिए अमेरिका अभी उसको ओसामा जैसा खतरनाक नहीं माना है. फिर भी हाफिज सईद की रिहाई भारतीय कूटनीति के लिए एक बड़ी चुनौती है. वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में चीन ने भी पाकिस्तान का साथ देकर भारतीय चुनौती को बढ़ा दिया है. इस कारण पाकिस्तान पर भारत का दबाव काम नहीं कर रहा है. ऐसे में यह मानकर चलना चाहिए कि भारत को अपने बलबूते ही आतंकवाद का समर लड़ना होगा. दिल्ली के हिस्से में लड़ाई अभी बाकी है.
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