उत्तराखंड : रंग लाते विकास के प्रयास
उत्तराखंड का अल्मोड़ा कुमायूं संस्कृति का गढ़ रहा है. परंतु यह पूरा क्षेत्र मूलभूत सुविधाओं वंचित रहा है, जिससे विकास की दर यहां काफी धीमी रही है.
उत्तराखंड : रंग लाते विकास के प्रयास |
इसलिए ग्रामीण आर्थिक विकास में सरकार के अन्य कार्यक्रमों के अलावा, नाबार्ड की तरफ से भी स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम व किसान क्लब शुरू किये गए हैं. जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि स्वयं सहायता समूह ऐसी योजना है, जिसमें 10 से 20 ग्रामीण पुरु ष व महिलाएं एक समूह बना कर अपनी आय से अपनी सुविधानुसार बचत कर एक सामूहिक निधि बनाते हैं. इसी बचत से वे आपसी सहमति अनुसार तय ब्याज और अवधि के लिए अपने समूह के सदस्यों को आर्थिक सहायता देते हैं, जिसका उपयोग सदस्य विभिन्न प्रकार के प्रयोजन तथा उत्पादक कार्यों के लिए करते हैं. इस कार्यक्रम में महिलाओं का योगदान अधिक रहा है.
इसके तहत महिलाओं को समूह चलाने, खाता संचालन, बैठकें और आंतरिक ऋण वितरण का समुचित प्रशिक्षण दिया जाता है. समूह के बनने और उसके अपने कार्य में दक्ष होने अर्थात परिपक्व होने के उपरांत जरूरी था कि उन्हें आय सृजक आर्थिक गतिविधियों से जोड़ा जाय. इसके लिए उन्हें कौशल विकास और बाजार व्यवस्था इत्यादि पर समुचित प्रशिक्षण दिया जाना भी आवश्यक था. नाबार्ड ने इस दौरान अपनी कुछ कौशल विकास योजनाओं जैसे आरईडीपी, एसडीपी इत्यादि के जरिये जनपद में लगभग सभी विकास खंडों में गैर सरकारी संगठनों की मदद से कई प्रशिक्षण और कार्यशालाएं करवाई जाती हैं.
अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी जनपद में मुख्य रूप से ग्रामीण महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई, बुनाई, अचार एवं बड़ी बनाना, ऐपण कलाकारी, सब्जी उत्पादन, पॉली हाउस की स्थापना, वर्मी कंपोस्टिंग, दन-कालीन बनाना इत्यादि क्रिया-कलापों पर पांच दिनों से लेकर दो माह तक का गहन प्रशिक्षण दिया जाता है. इन प्रशिक्षणों में यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि इनमें सरकारी संस्थाएं जैसे डीआरडीए, संबंधित विभाग, बैंक शाखाएं एवं लीड बैंक इत्यादि प्रतिभागिता करें ताकि प्रशिक्षणार्थियों को सभी पहलुओं की जानकारी प्राप्त हो सके.
महिला किसानों के लिए अपनी उपज का उचित मूल्य मिल पाना और बाज़ार की व्यवस्था करना एक चुनौती है पर इसके लिए ग्रामीण बाज़ार योजना के तहत कई उत्पादक महिला समूहों को गैर सरकारी संगठनों के नेतृत्व में ग्रामीण दुकान किराए पर लेने और अन्य व्यवस्थाओं हेतु समुचित अनुदान की व्यवस्था की गई. आरंभ में यह निश्चित किया गया कि जनपद में सभी ब्लॉक स्तर पर हर समूह को कम से कम एक दुकान दी जाए. बाज़ार व्यवस्था का प्रबंध करने से समूहों को काफी लाभ हुआ तथा उन्हें अपने उत्पाद का उचित मूल्य भी मिला. बैंकों, नाबार्ड और गैर सरकारी संगठनों के सामूहिक प्रयासों से स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम को काफी गति मिली है. समूहों के प्रयासों को देखते हुए बैंकों ने उन्हें दो से तीन लाख तक का ऋण भी देने लगे हैं. यह इस कार्यक्रम की बड़ी उपलब्धि है.
इसके अलावा, किसान क्लब की भी शुरु आत की गई है, जिसके माध्यम से किसान मिल-बैठकर सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं की पूरी जानकारी लेकर उनका लाभ उठाते हैं. एक जागरूक किसान ही विज्ञान की नवीनतम प्रौद्योगिकी अनुसंधानों एवं बैंक की ऋण योजनाओं का फायदा उठाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकता है. इसलिए किसान क्लब का उद्देश्य ‘ऋण के माध्यम से विकास, तकनीकी स्थानांतरण, जागरूकता एवं क्षमता निर्माण’ है. इसमें उचित प्रौद्योगिकी, कृषि के अच्छे तरीकों, ऋण का सही उपयोग एवं विपणन कौशल अपनाते हुए उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि कर किसानों की आय में बढ़ोत्तरी करने पर विशेष बल दिया जाता है. इस कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केंद्र एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों को भी समय-समय पर शामिल किया जाता है ताकि ग्रामीणों को उन्नत खेती का भरपूर लाभ मिल सके. बैंकों की इसमें खुली दिलचस्पी के नतीजे दिखने लगे हैं.
इन दोनों कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से अल्मोड़ा जनपद में सरकारी विभागों तथा बैंकों के बीच तालमेल बढ़ा है. कृषि एवं अन्य क्षेत्रों में बैंकों के ऋणों में भी समुचित वृद्धि हुई है. अच्छे तालमेल की वजह से दोनों कार्यक्रम प्रगति पर हैं. इनकी सफलता से अल्मोड़ा ही नहीं, अपितु उत्तराखंड के कई भागों में वास्तव में नई चेतना का सृजन हुआ है.
(आलेख में व्यक्त लेखक के विचार निजी हैं)
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