गौरैया दिवस : मुश्किल है इनकी डगर
मौजूदा समय में गौरैया लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है. एक अनुमान के मुताबिक, गौरैयाओं की संख्या घटकर आज महज 20 हजार रह गई है, जो निश्चित रूप से चिंता की बात है.
गौरैया दिवस : मुश्किल है इनकी डगर |
बदलते परिवेश में घरों की जगह गगनचुंबी इमारतों ने ले ली है. आधुनिक स्थापत्य की बहुमंजिली इमारतों में गौरैया के रहने की कोई गुंजाइश नहीं है. इधर, मोबाइल टावरों से निकले वाली तरंगें उनकी जान लेने के लिए आमादा हैं. ये तंरगें गौरैया की दिशा खोजने वाली प्रणाली एवं उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं. ज्यादा तापमान भी गौरैया के लिए जानलेवा होती है.
गौरतलब है कि प्रदूषण, विकिरण, कटते पेड़ों आदि के कारण शहरों का तापमान तेजी से बढ़ रहा है. इन कारणों से गौरैया खाना और घोंसले की तलाश में शहरों से पलायन कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में भी इन्हें चैन नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि गांव-देहात तेजी से शहर में तब्दील हो रहे है. गौरैया बच सके, इसलिए हर वर्ष 20 मार्च को ‘गौरैया दिवस’ मनाया जाता है. इस दिवस को मनाए जाने का मकसद लोगों में इस नन्ही सी पक्षी की जान बचाने के प्रति जागरूकता लाना है. गौरैया को बचाने के लिए बिहार में इसे राजकीय पक्षी घोषित किया गया है.
घरेलू गौरैया, जिसका वैज्ञानिक नाम ‘पासर डोमेस्टिकस’ है, एक छोटी प्रजाति की पक्षी है, जिसका निवास स्थल खास तौर पर एशिया, अमेरिका, यूरोप आदि है. वैसे, कमोबेश यह पूरे विश्व में जहां भी इंसान रहते हैं, पाई जाती है. शहरी इलाकों में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसे हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो के नाम से जाना जाता है. इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है. आज भी यह विश्व में सबसे अधिक शहरों में पाई जाने वाली पक्षियों में से एक है. कुछ साल पहले तक लोग जहां भी घर बनाते थे, देर-सबेर गौरैया के जोड़े वहां रहने के लिए पहुंच जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है. इसका फसल में पाए जाने वाले कीटों को खत्म करने में अहम योगदान होता है, लेकिन फसल पर कीटनाशक दवाइयों का इस्तेमाल करने से इसके महत्त्व में कमी आई है. गौरैया का भोजन अनाज के दाने और मुलायम कीड़े हैं.
गौरैया के चूजे तो केवल कीड़ों का लार्वा खाकर जीते हैं. कीटनाशकों से कीड़ों के लार्वा मर जाते हैं. ऐसे में चूजों के लिए भोजन मिलना मुश्किल हो गया है. वैसे, ये कई तरह के अनाज, फूल, बीज आदि भी खाती हैं, लेकिन ये इनके जीने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के निर्देशन में गौरैया संरक्षण और प्रजनन के लिए बिहार में विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं. राज्य वन पर्यावरण विभाग ने राज्य के सभी सरकारी दफ्तरों और आवासों में लकड़ी के ‘गौरैया घर’ रखने का प्रस्ताव किया है. वन एवं पर्यावरण विभाग पहले चरण में इसकी शुरु आत पटना से करेगा, जहां लगभग 10 हजार सरकारी कार्यालयों और आवासों में काठ के गौरैया घर रखे जाएंगे. राज्य सरकार का मानना है कि अब घरों में आंगन का चलन समाप्त हो गया है. ऐसे में गौरैया को रहने के लिए ये उपाय मुफीद हो सकते हैं.
दूसरे चरण में राज्य के अन्य जिलों में इस प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाया जाएगा. इसके अलावा वन पर्यावरण विभाग राज्य भर में गौरैया संरक्षण के लिए जन जागृति अभियान चला रहा है. इस क्रम में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से गौरैया संरक्षण के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है. राज्य के सरकारी विद्यालयों में भी सेमिनार आयोजित कर गौरैया संरक्षण के प्रति बच्चों एवं शिक्षकों को जागरूक किया जा रहा है. कहा जा सकता है कि केवल एक राज्य विशेष के प्रयासों से गौरैया के अस्तित्व को नहीं बचाया जा सकता है. इस क्रम में पूरे देश में लोगों को गौरैया को बचाने के लिए आगे आना होगा. हालांकि, गौरैया के पुनर्वास के लिए घर ऐसे बनाए जाएं, जिनमें झरोखे, छत व आंगन हों, उनके खाने के लिए दाने की व्यवस्था हो, आंगन और छतों पर पौधे लगाए जाएं, घर की मुंडेर पर मिट्टी के बरतन में पानी रखा जाए, फसल में कीटनाशकों का प्रयोग न किया जाये आदि उपायों से गौरैया को बचाने की दिशा में हम कुछ हद तक कामयाबी जरूर हासिल कर सकते हैं.
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