वैश्विकी : मालदीव पर रखनी होगी नजर
सऊदी अरब के शाह सलमान इब्न अब्दुल अजीज की इस माह होने वाली मालदीव यात्रा रद्द होने से भारत को फौरी तौर पर राहत मिली होगी.
डॉ. दिलीप चौबे, लेखक |
हालांकि सऊदी अरब के साथ भारत की किसी तरह की शक्ति-प्रतिस्पर्धा नहीं है, लेकिन मालदीव में चीन और सऊदी अरब की संयुक्त सक्रियता भारत के लिए चिंता का विषय है. इसलिए मालदीव की सामरिक, रणनीतिक अहमियत और भारत के साथ इसकी नजदीकियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता. शाह सलमान की प्रस्तावित मालदीव यात्रा का मुख्य एजेंडा उस समझौते पर दस्तखत करना था, जिसके तहत मालदीव को अपने फाफू द्वीप को 99 साल के पट्टे पर विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए सऊदी अरब को देने का प्रस्ताव था. इस परियोजना के तहत बंदरगाह, हवाई अड्डा और रिजॉर्ट का निर्माण किया जाना है, जो फाफू द्वीप को विस्तरीय शहर के तौर पर विकसित करेगा. परियोजना सफल होने पर पर्यटन की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी.
चीन भी दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी नीति को जारी रखते हुए मालदीव में अपना आधारभूत ढांचा खड़ा करने के लिए व्यापक स्तर पर निवेश कर रहा है. दरअसल, चीन और सऊदी अरब, दोनों ही मालदीव को मदद करने के लिए और बदले में मदद पाने के लिए आतुर दिख रहे हैं. इनका मुख्य लक्ष्य अपने-अपने संभावित सैनिक अड्डों के लिए रियायत पाना है. दोनों ही देश पूर्व अफ्रीकी देश जिबूती में स्वतंत्र सैनिक चौकियां स्थापित करके तेल, ऊर्जा और व्यापार मार्ग का विकास करना चाहते हैं. मालदीव में चीन और सऊदी अरब की सक्रियता दर्शाती है कि पर्यटन के लिए प्रसिद्ध यह देश क्षेत्रीय संघर्ष के लिए कितनी अहमियत रखता है. हिंद महासागर के तटवर्ती क्षेत्रों में स्थित मालदीव सामरिक दृष्टि से भारत के लिए विशेष अहमियत रखता है. भारत का समस्त जलमार्ग इसी महासागर से होकर गुजरता है.
यही जलमार्ग भारत को पूर्व एशिया, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से जोड़ता है. भारत इसे अपने राजनीतिक-आर्थिक प्रभाव वाला क्षेत्र मानता है. मालदीव चूंकि भारत के ठीक नीचे हैं, इसलिए वहां चीन जैसे प्रतिस्पर्धी देश की गतिविधियों को नई दिल्ली अपनी सुरक्षा के साथ जोड़कर देखता है. भारत श्रीलंका से भी यही अपेक्षा रखता है कि वह चीन को इस क्षेत्र में ऐसी कोई सुविधा प्रदान न करे, जिससे उसकी सुरक्षा प्रभावित हो. सत्तर के दशक में शीत-युद्ध के दौरान हिंद महासागर महाशक्तियों के शक्ति-प्रदर्शन का अखाड़ा बन गया था. इससे आजिज आकर भारत ने हिंद महासागर को शांति क्षेत्र घोषित करने की मांग उठाई थी. प्रकारांतर से श्रीलंका, बांग्लादेश, मॉरीशस आदि देशों ने भारत की मांग का समर्थन भी किया था.
मालदीव मुस्लिम बहुल देश है. सऊदी अरब के साथ इसके संपर्क बढ़ने से इस आशंका को बल मिलता है कि यहां कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें सिर उठा सकती हैं. ऐसी खबरें भी हैं कि मालदीव के सैकड़ों कट्टरपंथी नागरिक सीरिया जाकर आईएस के जिहाद में शामिल हो चुके हैं. 2010 में वहां इस्लाम के प्रचारक जाकिर नाइक का दौरा हुआ था. उनके भाषण से वहां के नागरिक आत्ममुग्ध थे. अत: भारत को मालदीव में विदेशी शक्तियों की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी.
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