विश्लेषण : जबरन मत थोपिए आधार
मोदी सरकार जोर-जबर्दस्ती से आधार (यूनिक आइडेंटिफिकेान नंबर) थोपने पर आमादा है.
विश्लेषण : जबरन मत थोपिए आधार |
वह हर तरह की सरकारी योजनाओं और सेवाओं के लाभ के लिए नागरिकों के लिए आधार नंबर का उपयोग अनिवार्य बना रही है. इसकी ताजातरीन मिसाल है मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना.
इसके जरिए बच्चों के लिए सरकारी स्कूलों में दोपहर का भोजन हासिल करने के लिए, आधार को अनिवार्य कर दिया गया है. इतना ही नहीं, इस योजना के परिपालन से जुड़े रसोइयों और तमाम स्टाफ के लिए भी आधार संख्या के साथ अपने नाम रजिस्टर कराना अनिवार्य कर दिया गया है. दोपहर का भोजन योजना पर आधार का थोपा जाना, बच्चों के भोजन के अधिकार पर ही हमला है. स्कूलों में भोजन हासिल करने के बच्चों के अधिकार पर कोई भी शर्त नहीं लगाई जा सकती है. अगर आधार संख्या के न होने के चलते किसी बच्चे को खाने से वंचित किया जाता है, तो यह शर्मनाक ही होगा.
हैरानी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के बार-बार दिए गए इसके आदेश को बड़ी नंगई से अनदेखा किया जा रहा है कि सरकारी सेवाओं और लाभों को हासिल करने के लिए आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने, जिसकी अध्यक्षता देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश कर रहे थे,15 अक्टूबर 2015 के अपने निर्णय में कहा था: ‘हम संघीय सरकार से आग्रह करते हैं कि वह, 23 सितम्बर 2013 से लगाकर इस अदालत द्वारा जारी किए गए सभी पिछले आदेशों का कड़ाई से पालन करे. हम यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि आधार कार्ड योजना एक शुद्ध रूप से स्वैच्छिक योजना है और इसे तब तक अनिवार्य नहीं किया जा सकता है, जब तक अदालत द्वारा इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया जाता है.’
सुप्रीम कोर्ट के एक अंतरिम आदेश में कहा गया था कि सरकार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और मिद्टी के तेल और रसोई गैस जैसे घरेलू ईधनों के वितरण को छोड़कर और किसी काम के लिए आधार संख्या का उपयोग नहीं कर सकती है. मोदी सरकार इस आदेश का उल्लंघन कर रही है और उसने आधार को मनरेगा, पेंशनों के वितरण और अन्य सरकारी योजनाओं के लिए अनिवार्य बना दिया है. इस श्रृंखला में ताजातरीन कदम है रेल मंत्रालय का फैसला कि रेलवे में वरिष्ठ नागरिकों को रियायत देने के लिए, 1 अप्रैल 2017 से आधार को अनिवार्य कर दिया जाएगा. रेल मंत्रालय ने इसका भी एलान किया है कि इसी वित्त वर्ष में आधार-आधारित ऑनलाइन टिकट प्रणाली भी शुरू की जाएगी. मनरेगा के लिए बायोमीट्रिक पहचान के अनिवार्य किए जाने का नतीजा यह हुआ है कि उंगली की छाप की पहचान के विफल रहने के चलते, बहुत से मजदूरों के दावे ठुकरा दिए गए हैं. वास्तव में शारीरिक श्रम करने वालों के मामले में अंगूठे और उंगलियों की छाप बदल जाने या घिस जाने की समस्या आम है.
इस तरह, मशीनों के उंगलियों की छाप से उनकी पहचान साबित न कर पाने के चलते, अनेक मजदूरों को उनकी वैध मजदूरी के भुगतान से ही वंचित कर दिया गया है. ऐसी ही समस्या सार्वजनिक वितरण व्यवस्था कार्डधारकों को राशन हासिल करने में आ रही है. राजस्थान में जहां सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए आधार पर आधारित बायोमीट्रिक पहचान की व्यवस्था पिछले साल ही शुरू की जा चुकी थी, हजारों की संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं कि राशन की दुकानों पर रखी गई ‘प्वाइंट ऑफ सेल’ मशीनें लाभार्थियों की उंगलियों की निशानी से पहचान करने में नाकाम रही हैं.
यह सचमुच बहुत ही दुखद होगा कि इन मशीनों के सही तरह से काम करने के चलते बच्चों को दोपहर के भोजन से ही वंचित रह जाना पड़े. इस तरह आधार योजना को थोपकर लोगों को उनकी हकदारियों से वंचित किया जा रहा है. जमा किए गए बायोमीट्रिक डाटा का जिस तरह से उपयोग किया जा रहा है, उसे लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं. यह डॉटा एकत्र करने का ठेका जिन अमेरिकी कंपनियों को दिया गया है, उन्हें इस डाटा तक बिना किसी रोक-टोक के पहुंच हासिल है. ये कंपनियां अमेरिकी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के साथ जुड़ी हुई हैं.
व्यक्तियों के डाटा की निजता संबंधी चिंताओं के चलते ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इसकी सिफारिश की थी कि आधार और उसके अनिवार्यतापूर्ण प्रयोग के पूरे मामले पर विचार करने के लिए एक वृहत्तर संविधान पीठ का गठन किया जाए. दुर्भाग्य से, उक्त फैसले के बाद 16 महीने गुजर चुके हैं, इसके बावजूद संविधान पीठ का गठन नहीं किया गया है. इस देरी का फायदा उठाकर, सरकार अपने पांव आगे बढ़ा रही है और आधार को तथ्यत: तो अनिवार्य ही किए दे रही है.
खबरों के अनुसार सरकार अगले कुछ ही हफ्तों में 50 और योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य करने की तैयारी कर रही है. अनेक कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाने की अपनी मुहिम की आलोचनाओं के सामने, केंद्र सरकार इधर-उधर करने का सहारा ले रही है. 7 मार्च 2017 को सरकार ने एक बयान के जरिए यह स्पष्टीकरण दिया कि आधार संख्या के अभाव में किसी को भी संबंधित लाभों से वंचित नहीं किया जाएगा और जब तक आधार संख्या नहीं दी जाती है, लाभ मिलते रहेंगे. इस तरह, दोपहर का भोजन योजना के तहत स्कूलों से लाभार्थी बच्चों की आधार संख्याएं इकट्ठी करने के लिए कह दिया गया है और अगर किसी बच्चे का आधार नंबर नहीं है, स्कूल अधिकारियों को उसके लिए आधार संख्या की व्यवस्था करनी होगी और जब तक उसका आधार नंबर नहीं आ जाता है, उसे इस योजना का लाभ मिलता रहेगा.
इससे तो स्कूल अधिकारियों पर ही बोझ बढ़ेगा और अंतत: बच्चों और उनके माता-पिता को ही आधार संख्या के लिए तंग किया जा रहा होगा. स्कूलों में बच्चों के लिए दोपहर का भोजन योजना के लिए आधार पहचान को अनिवार्य करने के आदेश को सरकार को फौरन वापस लेना चाहिए. उसे सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश का अक्षरश: पालन करना चाहिए कि जब तक इस मुद्दे पर अदालत का अंतिम फैसला नहीं आ जाता है, सरकारी योजनाओं और लाभों के लिए आधार को अनिवार्य नहीं बनाया जाए.
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