बैंकों के पास अभी भी ब्याज दर में कटौती की गुंजाइश: दास
भारत में बैंकों के पास अभी भी कर्ज पर ब्याज दरें कम करने की गुंजाइश है. नोटबंदी के बाद बैंकों में पहुंची भारी नकदी का लाभ कर्ज लेने वाले ग्राहकों तक पहुंचाने के लिये बैंकों को ब्याज दर में और कटौती करनी चाहिये.
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास (फाइल फोटो) |
आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने आज यह बात कही.
सरकार द्वारा पिछले साल नवंबर में 500 और 1,000 रूपये के नोटों को चलन से हटा लेने के बाद करीब 15 लाख करोड़ रपये के पुराने नोट बैंकों में जमा हुये. इससे भारी नकदी बैंकिंग तंत्र में पहुंच गई.
रिजर्व बैंक ने भी जनवरी 2015 से अब तक प्रमुख नीतिगत दर में 1.5 प्रतिशत कटौती की है. इससे बैंकों की धन की लागत में काफी कमी आई है.
दास ने जापान में एशियाई विकास बैंक (एडीबी) की 50वीं सालाना आम बैठक को संबोधित करते हुये कहा कि अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का असर कुछ समय के लिये ही रहा और चालू वित्त वर्ष में यह नहीं होगा.
भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि वर्ष 2016-17 में 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है.
दास ने कहा, ‘‘नोटबंदी का असर सीमित समय के लिये रहा और चालू वित्त वर्ष में इसका असर नहीं है .. नोटबंदी के बाद दरें कम हुई हैं, दरों में और कटौती की गुंजाइश बनी हुई है.
मुझे उम्मीद है कि और कटौती होगी. हमें रिण चक्र में फिर से तेजी आने के संकेत दिखने लगे हैं.’’
नोटबंदी के बाद बैंकों ने ब्याज दरों में 0.60 से 0.75 प्रतिशत तक कटौती की है, लेकिन जमीन पर फिलहाल दर कटौती का असर नहीं दिखाई दिया है. नोटबंदी के बाद भारी मात्रा में नकदी आने से बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में कटौती की है.
दास ने कहा कि भारत में आर्थिक सुधार जारी रहेंगे और वस्तु एवं सेवाकर :जीएसटी: लागू होने से भारतीय अर्थव्यवस्था के काम करने के तौर तरीकों में बदलाव आयेगा.
यह पूछे जाने पर क्या भारत में एक जुलाई से ही जीएसटी लागू होगा? जवाब में दास ने कहा ‘‘बिल्कुल.’’
जीएसटी में दस स्थानीय कर समाहित होंगे और भारत वस्तु एवं सेवाओं में व्यापार के लिये सुगम बाजार बनेगा.
दास ने स्पष्ट किया कि सरकार भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) ढांचे को और सरल बनायेगा और घरेलू अर्थव्यवस्था में वृद्धि की रफ्तार बनाये रखने के लिये विनिर्माण क्षेत्र
को बढ़ावा दिया जायेगा.
उन्होंने माना कि जिन कंपनियों का कामकाज दबाव में है उनमें रिण मांग नहीं बढ़ रही है लेकिन सूक्ष्म, लधु और मध्यम उद्योग क्षेत्र में ऋण मांग बढ़ी है. इसके अलावा आवास और
अन्य रिण के क्षेत्र में भी मांग बढ़ी है.
दास ने सुझाव दिया कि एशियाई देशों को संरक्षणवाद से दूर रहना चाहिये क्योंकि पिछले दो दशक के दौरान खुली व्यापार व्यवस्था से एशिया को फायदा हुआ है.
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