मानवाधिकार का प्रचार जरूरी
मानवाधिकारों का हनन आज भी आम बात है. मानवाधिकार संविधान का एक अहम हिस्सा है.
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देश में कहीं भी जाईए. गौर से देखने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ेंगी। आपको सभी जगह कहीं ना कहीं मानवाधिकारों का हनन होते दिखाई पड़ेगा.
सबसे ताज्जुब यह है कि जिनके कंधों पर इसके रोकने की जिम्मेदारी है.
वहीं सबसे अधिक इसके दोषी मिलते है.
ऐसा लगता है कि जैसे इन अफसरों ने इस शब्दों को चरितार्थ कर रखा है कि घोड़ा घास से यारी करेगा तो कैसे चलेगा.
मानवाधिकार के बारे में अपेक्षित जानकारी न होना है, एक बड़ा मुद्दा है. ऐसा उन सभी लोगों का मानना है जो इन अधिकारों के लिए काम करते हैं.
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइटस इनिशिएटिव की निदेशक माजा दारूवाला ने कहा, आए दिन बाल श्रम, लोगों के साथ मार-पीट, पुलिस थाने में लोगों के साथ दुर्व्यवहार, पुलिस हिरासत में मौत की खबरें आती रहती हैं.
अगर देश में वास्तविक रूप से मानवाधिकारों की रक्षा करनी है तो सबसे पहले पुलिस वालों, वकीलों, न्यायाधीशों आदि को इसके बारे में बताना होगा.
उन्होंने कहा देश में चाहे किसी भी स्तर पर पुलिस, सुरक्षा बलों, वकीलों,न्यायाधीशों या शिक्षकों की नियुक्ति हो, उन्हें उनके प्रशिक्षण के दौरान मानवाधिकार के बारे में बताया जाना चाहिए, पढ़ाया जाना चाहिए.
ऐसा इसलिए जरूरी है ताकि वे जब काम करें तो इस बात को समझ सकें कि उनके किस काम से लोगों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है.
खास तौर से हमारे शिक्षकों के साथ ऐसा होना चाहिए.
मानवाधिकार मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत भूषण भी कहते हैं कि पुलिसवालों, वकीलों और सभी सरकारी या गैर-सरकारी संस्थानों में काम करने वाले
लोगों को प्रशिक्षण के समय मानवाधिकार के बारे में जानकारी देनी चाहिए.
दारूवाला ने कहा फिलहाल हमारे यहां काम कर रहे पुलिसवाले, सेना के जवानों यहां तक कि शिक्षकों को भी मानवाधिकार के बारे में जानकारी नहीं है.ऐसे में हम उनके इसकी रक्षा के लिए बहुत अपेक्षा नहीं कर सकते.
अगर उन्हें उनके प्रशिक्षण के समय इसके बारे में पढ़ाया जाए और नौकरी के बीच में भी इसके बारे में उनकी परीक्षा ली जाए तो मानवाधिकार हनन के मामलों कम हो जाएंगे.
उन्होंने कहा अगर कोई नौकरी के बीच में हुई परीक्षा पर खरा नहीं उतरता है तो उसे सुधरने का मौका देना चाहिए.
अगर फिर भी वह नहीं सुधरता तो उसे नौकरी से हटा दिया जाना चाहिए ताकि दूसरों को इससे सबक मिल सके.
प्रशांत का कहना है, अगर हम प्रशिक्षण के समय कर्मचारियों को, पुलिसवालों और सेना के लोगों को मानवाधिकार के बारे में बताएंगे तो जानकारी होने से इसके हनन के मामले काफी कम हो जाएंगे.
दारूवाला मानती हैं कि मानवाधिकार आयोग को कुछ शक्तियां मिलनी चाहिए ताकि वह गलतियों करने वालों को सजा दे सके या फिर उन पर जुर्माना लगा सके.
ऐसा होने पर मानवाधिकार हनन के मामलों पर लगाम लग सकती है.
प्रशांत का मानना है कि भारतीय मानवाधिकार आयोग को दंड देने और जुर्माना लगाने की पूरी शक्ति होनी चाहिए ताकि लोग उससे डरें और मानवाधिकारों के हनन के मामलों में कमी आए.
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