भूदान आंदोलन के प्रणेता थे विनोबा भावे

Last Updated 15 Nov 2010 09:21:06 AM IST

विनोबा भावे ने गांधी दर्शन एवं विचार को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था।


पुण्यतिथि 15 नवंबर पर विशेष


महात्मा गांधी के दर्शन एवं उनके विचारों को नयी ऊंचार्इ तक पहुंचाने की दिशा में उल्लेखनीय योगदान देने वाले विनोबा भावे उन सामाजिक विचारकों में थे जिन्होंने राष्ट्रपिता के विकास के माडल पर काम किया और भूदान आंदोलन के जरिए जमीन के पुनर्वितरण के लिए एक नयी दिशा दिखायी।

गांधी दर्शन को जितनी ऊंचार्इ तक विनोबा ने पहुंचाया,उतना शायद ही किसी अन्य ने। विनोबा के दर्शन में यह प्रमुखता से उभर कर सामने आता है कि जीवन निरपेक्ष नहीं है। उनकी दृष्टि में जीवन सापेक्ष है और साधना समाज में मौजूद चुनौतियों के संदर्भ में होनी चाहिए।

विनोबा की आध्यात्मिक विधाओं में यह प्रमुखता एवं स्पष्टता से परिलक्षित होता है। महात्मा गांधी से उनकी भेंट साबरमती आश्रम में हुर्इ थी। उसके बाद गांधीजी ने कहा था कि यह व्यक्ति हमें कुछ देने आया है न कि कुछ लेने। गांधीजी आध्यात्मिक मुद्दों पर विनोबा को सुप्रीम मानते थे। वास्तव में विनोबा आध्यात्मिक क्रांतिदृष्टा थे और उन्होंने गांधी दर्शन एवं विचार को आगे बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका निभायी।

आजादी के बाद उनका योगदान निखर कर सामने आया। बात चाहे भूदान आंदोलन की हो या बागियों के आत्मसमर्पण की या भाषा विवाद पर त्रिसूत्री विचार की।राही के अनुसार गांधीजी गांवों की पुनर्रचना करना चाहते थे और वह ग्राम गणराज्य विकसित करना चाहते थे। मेरे सपनों का भारत और ग्राम स्वराज्य जैसी पुस्तकों में गांधीजी ने अपने विचारों को व्यावहारिक रूप से प्रकट किया है।

विनोबा ने उनके विचार को आगे बढ़ाते हुए भूदान ग्राम की परिकल्पना की। जमीन के पुनर्वितरण से कर्इ समस्याएं समाप्त हो सकती हैं। वास्तव में गांधीजी के लिए विकास का जो पैमाना था, उसे विनोबा ने आगे बढ़ाया। यह बात दीगर है कि जमीन रोजगार का प्रमुख स्रोत है और इसमें सुधार से व्यापक बदलाव आ सकता है।

विनोबा बडे़ समन्वयवादी भी थे जिन्होंने समाज के विभिन्न लोगों को काम के प्रति प्रेरित कर समाज सुधार का कार्य किया। उन्होंने समाज में हर तबके के लोगों से सहयोग की बात करने के साथ ही ’जयजगत’ का नारा दिया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर 1895 को महाराष्ट्र के गोगाडे में एक चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह गांधी के विचारों से प्रेरित होकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए।

विनोबा ने अपने आंदोलन को सफल बनाने के लिए पूरे भारत का पैदल ही भ्रमण किया। इस अनोखे आंदोलन ने पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया।

इस आंदोलन ने ऐसे सामाजिक वातावरण का निर्माण किया जिससे देश में भूमि सुधार गतिविधि की शुरुआत हुर्इ। इस आंदोलन ने बडी संख्या में लोगों के जीवन को प्रभावित किया और इसके तहत पूरे देश में करीब लाखों लाख एकड़ भूमि दान में मिली जिसे जरुरतमंद भूमिहीन गरीबों में वितरित कर दिया गया।



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