प्रदूषण की भेंट चढ़ती गंगा

Last Updated 09 Jun 2011 12:43:28 AM IST

पिछले कुछ वर्षों में गंगा को स्वच्छ बनाने हेतु अनेक परियोजनाएं लागू की गई हैं लेकिन इसका प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा हैं.


गंगा के प्रदूषण को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट भी अनेक बार दिशा-निर्देश जारी कर चुके हैं लेकिन इस बाबत अभी तक नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा है. गौरतलब है कि गंगा के किनारे अनेक शहर, कस्बे और गांव स्थित हैं. प्रतिदिन इस आबादी का लगभग 1.3 बिलियन लीटर अपशिष्ट गंगा में गिरता है. गंगा के आस-पास स्थित सैकडों फैक्ट्रियां भी गंगा को प्रदूषित कर रही हैं. एक अनुमान के अनुसार प्रतिदिन लगभग 260 मिलियन लीटर औद्योगिक अपशिष्ट गंगा में जहर घोल रहा है. गंगा में फेंके जाने वाले कुल कचरे में लगभग अस्सी फीसद नगरों का कचरा होता है जबकि पंद्रह फीसद औद्योगिक कचरा.

जहां एक ओर नागरीय कचरा विभिन्न तौर-तरीकों से गंगा के प्राकृतिक स्वरूप को नष्ट कर रहा है वहीं औद्योगिक कचरा विभिन्न रसायनों के माध्यम से गंगा को जहरीला बना रहा है. पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या विस्फोट के कारण गंगा किनारे की आबादी तेजी से बढ़ी है. विडम्बना यह है कि किनारे बसी इस आबादी ने भी गंगा को साफ-सुथरा रखने की कोई सुध नहीं ली बल्कि इसे प्रदूषित ही किया. पिछले दिनों जब वाराणसी में गंगा के नमूनों की जांच की गई तो प्रति 100 मिलीलीटर जल में हानिकारक जीवाणुओं की संख्या 50 हजार पाई गई जो नहाने के पानी के लिए सरकार द्वारा जारी मानकों से 10 हजार फीसद ज्यादा थी. इस प्रदूषण के कारण ही आज हैजा, पीलिया, पेचिश और टाइफायड जैसी जल-जनित बीमारियां बढ़ती जा रही है. एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 80 फीसद स्वास्थ्यगत समस्याएं और एक तिहाई मौतें जल-जनित बीमारियों के कारण ही होती हैं.

गौरतलब है कि ऋषिकेश से इलाहाबाद तक गंगा के आस-पास लगभग 146 औद्योगिक इकाइयां स्थित हैं. इनमें चीनी मिल, पेपर फैक्ट्री, फर्टिलाइजर फैक्ट्री, तेलशोधक कारखाने तथा चमड़ा उद्योग प्रमुख हैं. इनसे निकलने वाला कचरा और रसायनयुक्त गंदा पानी गंगा में गिरकर इसके पारिस्थितिक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा रहा है . इन फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट में मुख्य रूप से हाइड्रोक्लोरिक एसिड, मरकरी, भारी धातुएं, तथा कीटनाशक जैसे खतरनाक रसायन होते हैं. ये रसायन मनुष्यों की कोशिकाओं में जमा होकर बहुत सी बीमारियां उत्पन्न करते हैं.

गंगा किनारे होने वाले दाह-संस्कार, श्रद्वालुओं द्वारा विसर्जित फूल और पालीथिन भी गंगा को बीमार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि गंगा को स्वच्छ करने की योजना के तहत वर्ष 1985 से 2000 के बीच गंगा एक्शन प्लान एक और दो के क्रियान्वयन पर लगभग एक हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं लेकिन गंगा अभी भी प्रदूषण की मार झेल रही है. गंगा को स्वच्छ  रखने के लिए 3 मई 2010 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी तथा उत्तराखंड सरकार को गंगा में पर्याप्त पानी छोड़ने और गंगा के आस-पास पालीथिन को प्रतिबन्धित करने का आदेश दिया था लेकिन अभी भी इन क्षेत्रों में पालीथिन पर रोक नहीं लगाई जा सकी है.

वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड के अनुसार गंगा विश्व की उन दस नदियों में से एक है जिन पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है. गंगा में मछलियों की लगभग 140 प्रजातिया पाई जाती हैं. हाल ही में हुए एक अध्ययन में पता चला है कि गंगा को स्वच्छ बनाने में सहायक मछलियों की अनेक प्रजातियां प्रदूषण के कारण विलुप्त हो चुकी हैं. हमें यह समझना होगा कि केवल सरकारी परियोजनाओं के भरोसे ही गंगा को स्वच्छ नहीं बनाया जा सकता बल्कि इसके लिए एक जन-जागरण अभियान की जरूरत है.

रोहित कौशिक
लेखक


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment