सरकार को चुनौती
भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी को बेल्जियम में गिरफ्तार कर लिया गया। चोकसी और उसके भतीजे नीरव मोदी पर पंजाब नैशनल बैंक से तकरीबन साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपयों के गबन का आरोप है।
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मोदी अभी लंदन की जेल में है और भारत प्रत्यर्पित किए जाने के खिलाफ कानूनी जंग लड़ रहा है। इस घोटाले में उसकी पत्नी एमी और भाई निशाल भी मुख्य अभियुक्त हैं। चोकसी मुंबई की अदालत में हलफनामा दे कर भारत आने में अक्षमता जाहिर कर चुका है। वह कैंसर का मरीज है, जिसका इलाज बेल्जियम में चल रहा है। भारतीय एजेंसियां प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के साथ मिल कर प्रत्यर्पण का प्रयास कर रही हैं।
बैंक ने 2018 में पहली बार मोदी, चोकसी और अन्य अधिकारियों के खिलाफ 280 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगाया था। जांच के बाद यह देश का सबसे बड़ा बैंकिंग घोटाला निकला। इसमें बैंक अधिकारियों की मिलीभगत भी पाई गई। हालांकि मोदीकाल में होने वाले बैंक घोटालों में यह अकेला नहीं है। सरकारी दस्तावेज के अनुसार 2012-16 के दरम्यान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बाइस हजार करोड़ रुपये से अधिक का चूना लगाया जा चुका है।
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के 429, आईसीआईसीआई के करीब 455, स्टैंर्डड बैंक के 244 और एचडीएफसी बैंक के 237 के करीब धोखाधड़ी के मामले पकड़े जाने की पुष्टि हुई है। मोदी के इस घोटाले के बाद पीएनबी ने अपने बीस कर्मचारियों को निलंबित भी किया था। बैंकों के इस गोरखधंधे में बैंककर्मियों की मिली-भगत पकड़ी गई है। इसी दरम्यान देश से भाग चुके आर्थिक अपराधी विजय मल्या पर भी बैंकों को साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने के खिलाफ चार्जशीट फाइल की गई थी।
कहने में दोष नहीं है कि प्रत्यर्पण संधि के बावजूद कानूनी प्रक्रिया बेहद जटिल होती है, और आरोपियों को स्वदेश लाने में सालों लग जाते हैं। चोकसी का मामला भी अभी फेडरल पब्लिक जस्टिस और फॉरेन अफेयर्स की निगरानी में होगा। सरकार किस हद तक दोषी को वापस लाने की कवायद करती है, यह तो वक्त ही बताएगा।
धोखाधड़ी के इस धन की वसूली और सजा देने में लगने वाले समय की चर्चा अभी बेमानी है क्योंकि सार्वजनिक बैंकों में इतने बड़े आर्थिक घोटालों में सरकार की भूमिका भी संदिग्ध ही पाई जाती रही है। भ्रष्टाचार पर प्रहार करने की बातें करने वाले सत्ताधारी दल को इसे चुनौती की तरह देखना चाहिए।
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