प्राथमिकताएं बदलिए

Last Updated 13 Nov 2024 11:39:26 AM IST

बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के तीन महीने बाद भी राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता का दौर जारी है।


प्राथमिकताएं बदलिए

अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन के समर्थन से सत्ता की बागडोर संभालने वाले मोहम्मद यूनुस प्रभावशाली ढंग से चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता यूनुस राजनीति में लोकतांत्रिक और मानवतावादी मूल्यों की स्थापना नहीं कर पा रहे हैं।

अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर रहे यूनुस प्रतिशोध की राजनीति में लिप्त हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने उनके कारनामों की जांच करने के बाद उन्हें हाशिये पर कर दिया था। अब यूनुस को शेख हसीना से प्रतिशोध लेने का अवसर मिला है।

उनकी अंतरिम सरकार अपदस्थ प्रधानमंत्री हसीना और प्रशासन के अन्य लोगें को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल से मदद मांगने की तैयारी में है। सरकार का विश्वास है कि विरोध प्रदर्शनों के दौरान करीब 753 लोग मारे गए।

इस घटना को यूनुस ने मानवता के विरुद्ध अपराध करार दिया है और हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं के विरुद्ध 60 से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई गई हैं दूसरी ओर, हसीना के देश छोड़ने के तीन महीने बाद उनकी पार्टी अवामी लीग एकजुट होने के प्रयास कर रही है।

इसी क्रम में अवामी लीग ने रविवार को ढाका के नूर हुसैन स्कवायर पर विरोध मार्च निकालने का आह्वान किया था। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ताओं ने सरकार और पुलिस प्रशासन की शह पर अवामी लीग के नेताओं और समर्थकों की पिटाई की।

लोकतंत्र में जितना महत्त्वपूर्ण सत्ता पक्ष होता है, उतना ही विपक्ष भी होता है। अगर देश में लोकतंत्र स्थापित करना है तो यूनुस की सरकार को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचार से विश्व समुदाय चिंतित है।

अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मतदान से पहले दीवाली के अवसर पर कहा था कि ‘मैं हिन्दुओां, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बर्बर हिंसा की निंदा करता हूं, जिन पर बांग्लादेश में भीड़ द्वारा हमला किया जा रहा है और लूटपाट की जा रही है।’

जाहिर है कि  दुनिया के एक बड़े नेता की इस टिप्पणी से बांग्लादेश और यूनुस की छवि कलंकित हुई है। बांग्लादेश में शांति और राजनीतिक स्थिरता आवश्यक है। राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से न तो लोकतंत्र स्थापित होगा और न देश बचेगा।



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