विभाजनकारी पिच पर नहीं

Last Updated 24 Apr 2024 01:27:05 PM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अलीगढ़ में भाषण बांसवाड़ा का विस्तार है। ये दोनों भाषण एक दिन के अंतराल पर हैं। दोनों की पिच एक है। कांग्रेस पर हमले के बहाने, बहुसंख्यकों में उसके शासन का डर बैठाना।


विभाजनकारी पिच पर नहीं

यह कहना कि ‘उनकी गाढ़ी कमाई से अर्जित संपत्तियां, यहां तक कि ‘स्त्रीधन कहे जाने वाले महिलाओं गहने-मंगलसूत्र-तक माओवादी की तरह छीन लिये जाएंगे।’ राष्ट्रीय संसाधन पर अल्पसंख्यकों, वे जो ‘घुसपैठिए’ हैं, वे ‘जिनके ज्यादा बच्चे’ हैं, का पहला हक होने’ की वकालत की याद दिला कर बहुसंख्यकों में उनके प्रति हिकारत पैदा कराना। प्रधानमंत्री अपने पक्ष में प्रचार के लिए स्वतंत्र हैं।

पर वे कांग्रेसी मैनिफेस्टो या 2006 में तात्कालिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश करने के लिए नहीं। वे भूल जाते हैं कि ऐसे भाषण विभाजनकारी कोटि में आते हैं। चुनाव में होने के बावजूद एक प्रधानमंत्री के रूप में इसकी उन्हें इजाजत नहीं है। कांग्रेस चुनाव आयोग से मिल कर उनके एवं पार्टी के विरु द्ध 17 शिकायतें की हैं। प्रधानमंत्री के भाषण से लगता है, कांग्रेस जैसे सत्ता में आ रही है। ऐसा पहले चरण के मतदान में गिरावट से उन्हें लगा है। हालांकि कम वोट भाजपा का निरस्तीकरण नहीं है। पर यह आरएसएस कार्यकर्ताओं के अनुत्साह को दर्शाता है।

दूसरी बात, कांग्रेस ने अपने मैनिफेस्टो में मोदी-राज में बढ़ी आर्थिक विषमताओं के आलोक में एक आयोग बैठाने की बात की है। सरप्लस भूमि-वितरण की बात की है। इसमें गलत क्या है? स्वयं प्रधानमंत्री एवं उनकी पार्टी और अन्य सारे दल इस तरह के कार्यक्रमों के साथ आने का वादा करते हैं। मनमोहन सिंह ने ‘देश के आर्थिक संसाधनों को हाशिए पर पड़े तमाम समुदायों को देने’ की बात कही थी। यह प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि देश के मुसलमान ‘घुसपैठिए’ नहीं हैं।

वे भी अन्य के जैसे देश के नागरिक हैं, राष्ट्रवादी हैं। उनकी जनसांख्यिकी दर हिन्दू जितनी है। बेशक, लोगों के कल्याण और उनकी पहचान को जोड़ने पर राजनीतिक और चुनावी बहस हो सकती है, लेकिन मोदी के भाषण इस पर व्यापक संदेश भेजने के उनके स्वयं के प्रयासों के विरु द्ध हैं, जो लाभार्थियों में जाति-समुदाय के आधार पर भेदभाव नहीं करता। वे खुद भारत की विविधता एक ‘बहुरत्नधारी वसुंधरा’ मानते हैं, लेकिन पूरे समुदाय को एक विरोधी के रूप में पेश करके, प्रधानमंत्री उस बहस को व्यापक करने की संभावनाओं को सिकोड़ देते हैं।



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