पर्यावरण : अरावली पहाड़ी का बिगड़ रहा स्वरूप
राजस्थान के करीब 15 जिलों में आज भी अरावली की पहाड़ियां अवैध खनन का दंश झेल रही हैं। इन जिलों में अरावली पर्वतमाला का 80 प्रतिशत हिस्सा है।
पर्यावरण : अरावली पहाड़ी का बिगड़ रहा स्वरूप |
कुछ जगह लीज के नाम पर खनन हो रहा है, तो कुछ जगह बिना लीज अन्य जगहों से पहाड़ को खोखला किया जा रहा है। खरेखड़ी, बंदिया, नारेली के पास, किशनगढ़, मसूदा, पुष्कर, विजयनगर, टोंक, भीलवाड़ा आदि स्थानों पर अवैध खनन के मामले आए दिन सामने आ रहे हैं। खासकर ग्रामीण क्षेत्र के पास अरावली की पहाड़ियों में अवैध खनन ज्यादा हो रहा है। यहां पंचायतों का रवैया तो अलग रहता ही है, ग्रामीण भी खामोश रहते हैं।
अजमेर के निकट खरेखड़ी में भी अवैध खननकर्ता गोशाला में आर्थिक मदद एवं संचालन के नाम पर बेरोकटोक खनन करते हैं। सेंट्रल एम्पार्वड कमेटी (सीईसी) की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 1967-68 के बाद राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली पर्वत श्रृंखला का 25 प्रतिशत हिस्सा समाप्त हो गया है। अरावली पर्वत क्षेत्र से लगे जंगलों में 371 तरह के औषधीय पेड़-पौधों की प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से कई विलुप्त होने के कगार पर हैं।
उल्लेखनीय है कि प्री-क्रैम्बियन काल में बनी अरावली की पहाड़ियां एक वलित पर्वत श्रृंखला है। अरावली शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों-‘अरा’ और ‘वली’ से मिलकर के बना है, जिसका अर्थ होता है- ‘चोटियों की रेखा’। लेकिन कुछ संदर्भ कहते हैं कि अरावली दरअसल, आडावली का अपभ्रंश है और आडावली इसलिए क्योंकि यात्रा करते वक्त ये पहाड़ियां यात्रियों के आड़े आती थीं। भारत की भौगोलिक संरचना में अरावली प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला मानी गई है और विश्व में भी प्राचीनतम है।
यह पर्वत श्रृंखला राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में बांटती है। इसका सर्वोच्च पर्वत शिखर सिरोही जिले में गुरु शिखर (1727 मीटर) है, जो माउंट आबू में है। इस पर्वत श्रृंखला की कुल लंबाई गुजरात से दिल्ली तक 692 किमी. है। इसकी औसत ऊंचाई लगभग 930 मीटर है तथा इसकी दक्षिण की ऊंचाई और चौड़ाई सर्वाधिक है। यह पर्वतमाला प्राकृतिक संसाधनों एवं खनिज से परिपूर्ण है, और पश्चिमी मरुस्थल के विस्तार को रोकने में मदद करती है। बाना, लूनी, साखी एवं साबरमती जैसी नदियों का उद्गम भी है।
अगर अरावली की पर्वतमाला नहीं बची तो इसके माध्यम से मिलने वाले ढेरों खनिजों सीसा, तांबा, जस्ता आदि के लाभ से हमें वंचित होना पड़ेगा। इससे निकलने वाली बाना, लूनी, साखी, साबरमती, केन, बेतवा, धसान, सिंध, पार्वती, काली सिंधु, बनास और सबसे अधिक पुरानी और अधिक महत्त्व की चर्मण्वती जैसी नदियां देखने को नहीं मिलेंगी। यही नहीं, इन पहाड़ियों के पश्चिम में विशाल थार मरुस्थल स्थित है।
अरावली पर्वत श्रृंखला का संरक्षण न सिर्फ राजस्थान, बल्कि पूरे देश के लिए अहम है। इस पर्वत श्रृंखला में बाघों से लेकर बघेरे, भालू, लकड़बग्घे, भेड़िये, सियार, लोमड़ी जैसे मांसाहारी, तो सांभर, नीलगाय, चीतल, चिंकारा, चौसिंगा, कृष्णमृग, जंगली सूअर जैसे शाकाहारी जीव भी पाए जाते हैं। ये पहाड़ियां भूजल को रिचार्ज में भी मदद करती हैं, जो हर वर्ष इस क्षेत्र में तपती गर्मी के महीनों के दौरान होने वाली पानी की कमी को देखते हुए महत्त्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसा रास्ता निकालना होगा कि अरावली का संरक्षण किया जाए, खनन को कम नुकसानदायक बनाया जाए। अरावली की तबाही को अब खुली आंखों से न देखा जाए।
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