राहुल गांधी की न्याय यात्रा में रामलला दर्शन

Last Updated 13 Jan 2024 01:28:51 PM IST

फाइनल है कि कांग्रेस राम लला के प्राण-प्रतिष्ठा-समारोह में नहीं जाएगी। पर उसके नेता राहुल गांधी की न्याय यात्रा, भाजपा इसे अन्याय यात्रा कहती है, शुरू होगी।


राहुल गांधी

कांग्रेस को एक प्रमुख पार्टी के रूप में इनके फैसले का अधिकार है। सत्ता या अन्य कोई दल-अगर वे अदालती फरमान नहीं हैं-उसे ऐसा करने से रोक नहीं सकते। आलोचना कर सकते हैं। कांग्रेस इनका उत्तर आक्रामकता से देने के लिए तैयार है।

इस मामले में सत्ताधारी पार्टी का यह भाव है कि मुस्लिम लीग के दबाव में अयोध्या जाने का न्योता ठुकरा कर कांग्रेस ने अपना राम-द्रोह दिखाया है, जो देश के बहुसंख्यक धर्मावलंबियों के प्रति उसका द्रोह है। इसका उसे चुनावी-राजनीतिक नुकसान होगा। यह जरा अजब है। अगर प्रतिद्वंद्वी को वोट का घाटा होने वाला है, तो होने दिया जाए। भाजपा इसकी चिंता क्यों कर रही है?

उसको कम और कमजोर विरोधी होने का फायदा ही मिलेगा। लोकतांत्रिक मान्यता और विश्वास भले यह हो कि इस पद्धति में ताकतवर विपक्ष चाहिए होता है, व्यवहार में सत्ता दल का इसके प्रति नकार का भाव ही ज्यादा रहता है। कांग्रेसविहीन विपक्ष या भाजपाविहीन विपक्ष इसी मानसिकता की प्रचलित अभिव्यक्तियां रही हैं।

कांग्रेस का मानना है कि वह भी राम भक्त है। इसके गवाह उसके नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का राममंदिर का ताला खुलवाना और दिल्ली के रामलीला मैदान में राम-सीता की आरती उतारतीं सोनिया गांधी के प्रकाशित चित्र हैं। इतना ही नहीं, गांधी परिवार का हर सदस्य हिन्दू रीति-रिवाजों को निभाता भी रहा है।

बस, पार्टी 22 जनवरी के समारोह में नहीं जाना चाहता। भाजपा से इतर कारणों से यह उन लोगों को अधिक नागवार गुजर रहा है, जो सच में लोकतांत्रिक समाज में सशक्त विपक्ष की चिंता करते हैं। उन्हें धार के विरुद्ध तैरती कांग्रेस का यह कदम डुबाने वाला लगता है।

एक मायने में ऐसा हो भी सकता है पर भाजपा के उकसावे में कांग्रेस को उसके धर्मनिरपेक्ष वोटों-मुसलमानों-में अविसनीय बना देना है-देखो, यह भी राममय हुई। कांग्रेस को इसमें नुकसान अधिक दिखता है। वह फिलहाल छिटकाव में ही अधिक सेफ महसूस करती है।

यात्रा-क्रम में अयोध्या दर्शन होगा, जैसी पहली भारत यात्रा में हिन्दू धर्मस्थलों में पूजा-पण्राम किया जाता रहा है-तेलंगाना, हिमाचल और कर्नाटक जिसके सुफल हैं लेकिन मॉस स्तर पर बनी अवधारणा का अपना लाभ-नुकसान है। यह व्यापक फलक वाले चुनाव में अधिक साफ दिखता है।



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