सच्चा प्यार कानूनी कार्रवाई से नहीं नियंत्रित किया जा सकता
दो नाबालिगों या एक नाबालिग व वयस्क होने की कगार पर के दरम्यान सच्चा प्यार कानून या पुलिसिया कार्रवाई से नहीं नियंत्रित किया जा सकता।
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दिल्ली हाई कोर्ट ने किशोरों के प्रेम पर यह कहा। न्याय के तराजू को संतुलित करने के लिए हमेशा गणितीय आंकड़ों की जरूरत नहीं होती। अदालत ने कहा कभी-कभी जहां तराजू के एक पहलू पर कानून लागू होता है, वहीं दूसरे पहलू पर बच्चों, उनके माता-पिता, उनकी खुशी जीवन व भविष्य हो सकता है।
अदालत ने पति के खिलाफ अपहरण व रेप को लेकर दर्ज प्राथमिकी निरस्त कर दी और कहा कि प्राथमिकी निरस्त नहीं करने से वास्तविक न्याय विफल हो जाएगा। पति पर नाबालिग को भगाने व दुष्कर्म की यह एफआईआर 2015 में दर्ज की गई थी।
दोनों एक ही समुदाय के थे और धार्मिक रीति-रिवाज से प्रेम विवाह कर लिया था। आरोपी की गिरफ्तारी के वक्त लड़की पांच माह की गर्भवती थी। तीन साल जेल में रहने के बाद पति 2018 में जेल से बाहर आया, उन्हें फिर बेटी हुई। लड़की का कहना था, उसने स्वेच्छा व सहमति से संबंध बनाए।
जोड़े के वैवाहिक जीवन के नौ साल हो चुके हैं, वे खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं। फिर भी लगातार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। कानूनन नाबालिग का विवाह गलत होने के बावजूद अदालत ने बेहद व्यावहारिक, तर्कसंगत व परिवार के पक्ष में फैसला दिया। यह लड़की के परिवार के इगो का मसला ज्यादा प्रतीत हो रहा है जिन्होंने अपनी असहमति व नाराजगी में दंपति के आगे दिक्कतें खड़ी करने की ठान ली।
अपने समाज में बाल विवाह गैर-कानूनी होने के बावजूद बच्चों की ढेरों शादियां अभी भी परिवारों द्वारा कर दी जाती हैं। मगर जब यही बच्चे स्वेच्छा से जीवन साथी चुनने की जिद करते हैं तो पालकों का अहम चुटहिल हो जाता है और वे कानून की आड़ से जंग लड़ने लगते हैं।
आज के परिवेश में किशोर उन्माद, रोमांच, अति उत्साह व रूमानियत के चलते शारीरिक संबंध बना लेते हैं जिसका खमियाजा लड़की समेत समूचे कुनबे को चुकाना पड़ता है। अदालत का वक्त बर्बाद करने के लिए ऐसे परिवारियों पर जुर्माना लगाना जरूरी है। इस जोड़े को कम उम्र में शादी के साइड इफेक्ट्स के बारे में भी हिदायत दी जानी चाहिए।
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