अदालतें सोच-समझकर करें टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 06 Jan 2024 01:05:04 PM IST

किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर काबू रखने की सलाह देने वाले कोलकत्ता हाईकोर्ट के निर्णय पर सर्वोच्च अदालत ने कड़ी टिप्पणी की।


अदालतें सोच-समझकर करें टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने कहा आदेश के कुछ हिस्सों में की गई टिप्पणियों में समस्या है। हमने इन सभी को चिह्न्ति किया है।

सबसे बड़ी अदालत ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा मामला केवल टिप्पणियों का नहीं बल्कि आदेश में कई और बातें भी दर्ज की गई हैं। ऐसे विचार आते कहां से हैं, हमें पता नहीं, कह कर अदालत ने स्पष्ट किया कि हर बात को हम देखेंगे।

यह मामला अपहरण कर महिला से जबरन विवाह व पॉस्को कानून में सजायाफ्ता की सुनवाई का था, जिसमें पीठ ने कहा हर किशोरी का कर्तव्य है कि शारीरिक अखंडता, सम्मान व आत्ममूल्य की रक्षा करे।

पश्चिम बंगाल सरकार ने बताया कि उसने भी इस आदेश को चुनौती दी है। पहले ही सर्वोच्च अदालत ने हाईकोर्ट की इन टिप्पणियों को बेहद आपत्तिजनक व पूर्णत: अनावश्यक बताया था। यह अतिसंवेदनशील मसला है, जो भविष्य के लिए बड़ी मिसाल बन सकता है।

हैरत की बात है कि सम्मानित अदालत द्वारा महिला के चरित्र का ऐसा विश्लेषण किया गया। हमारी पितृसत्तात्मक व्यवस्था की जकड़न को लचीला व व्यावहारिक बनाने में अदालतों की बड़ी भूमिका रही है। बीते कुछ सालों में अदालतों ने कड़े निर्णयों व महिलाओं को न्याय देने के लिहाज से कानून बनाने के निर्देश सरकारों को दे कर इतिहास रचा है।

महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक पक्षपात, दैहिक व मानसिक शोषण, रूढ़ियों की आड़ में हो रहे अत्याचारों पर सख्त टिप्पणियां कर न्यायाधीशों ने बड़ी मिसाल कायम की हैं। यौनेच्छाओं या यौनोन्माद पर काबू किसी भी सभ्य नागरिक को रखना ही चाहिए।

मगर इसे केवल महिलाओं पर थोपा जाना हमारी रूढ़िवादी मानसिकता का द्योतक कहा जाएगा। दैहिक शुचिता की आड़ में हमारी सामाजिक व्यवस्था स्त्रियों के अधिकारों का हमेशा हनन करती रही है। स्वयं सबसे बड़ी अदालत की यह सख्ती तमाम अन्य अदालती निर्णयों को ना सिर्फ प्रभावित करेगी बल्कि फैसलों में की जाने वाली स्त्रीविरोधी तल्ख टिप्पणियों से भी गुरेज किया जा सकेगा। कोर्ट की सख्ती से दैहिक शुचिता के प्रति पूर्वाग्रहीत विचारधारा में बदलाव दिखेगा।



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